प्रदूषण से जंग : क्या दिल्ली में गिरेगी ‘कृत्रिम बर्फ’? आर्टिफिशियल रेन के बाद नई तकनीक पर मंथन…जानें वैज्ञानिकों की राय

नई दिल्ली । दिल्ली हर साल नवंबर-दिसंबर में घने कोहरे, शीत लहर और दमघोंटू प्रदूषण से जूझती है। इन परेशानियों से पार पाने कृत्रिम समाधानों पर विचार किया जाता है। माना जा रहा है कि प्रदूषण से निपटने के लिए 29 अक्टूबर 2025 को क्लाउड सीडिंग के जरिए दिल्ली में आर्टिफिशियल रेन (कृत्रिम बारिश)कराई जाएगी। अब सवाल उठता है कि क्या इसी वैज्ञानिक तकनीक से दिल्ली में आर्टिफिशियल स्नोफॉल (कृत्रिम बर्फबारी) भी हो सकती है?

कृत्रिम बर्फबारी की तकनीक मौजूद है, लेकिन इसके साथ कई तरह की साइंटिफिक कॉम्प्लेक्सिटी जुड़ी हुई हैं। इसका सफल क्रियान्वयन प्राकृतिक और मौसमी परिस्थितियों पर निर्भर करता है, जो दिल्ली के लिए एक बड़ी चुनौती है। कृत्रिम बारिश और कृत्रिम बर्फबारी, दोनों ही प्रक्रियाएं मूल रूप से क्लाउड सीडिंग के सिद्धांत पर आधारित हैं, लेकिन उनकी परिस्थितियां अलग-अलग हैं। कृत्रिम बर्फबारी की प्रक्रिया उन ठंडे मौसम वाले क्षेत्रों में सफल होती है, जहां प्राकृतिक रूप से बर्फ बनने के लिए जरूरी तापमान और नमी मौजूद होती है।

दिल्ली अपेक्षाकृत गर्म, समतल और घनी आबादी वाला महानगरीय क्षेत्र है। यहां कृत्रिम बर्फबारी तकनीक को बड़े पैमाने पर लागू करना बहुत जटिल और महंगा काम होगा। यह सिर्फ बादलों में केमिकल्स को इंजेक्ट करने तक सीमित नहीं है, बल्कि विशिष्ट वायुमंडलीय और थर्मोडायनामिक बैलेंस की भी मांग करता है।

क्लाउड सीडिंग के जरिए कृत्रिम बर्फबारी करवाने के लिए 3 प्रमुख प्राकृतिक शर्तें पूरी करना जरूरी है, जो फिलहाल दिल्ली के लिए मुश्किल लगाती है।

पहली बर्फबारी के लिए जरूरी है कि बादल के अंदर और जमीन पर भी तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे होना चाहिए। दिल्ली में दिसंबर और जनवरी की सबसे ठंडी रातों में भी यह तापमान बमुश्किल 4 डिग्री सेल्सियस से 5 डिग्री सेल्सियस तक गिरता है, जो बर्फ के कणों को जमीन तक आने से पहले ही पिघला देगा।

इतना ही नहीं बादलों में -4 डिग्री सेल्सियस से -20 डिग्री सेल्सियस के बीच अधिशीतित जल यानी बहुत ठंडे पानी की बूंदें पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए। इसके अलावा आसमान में इसतरह के बादलों की उपस्थिति जरूरी है, जिसमें बर्फ बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी मौजूद हो।

दिल्ली में क्या चुनौतियां हैं?

दिल्ली की भौगोलिक स्थिति समतल है और यहां का न्यूनतम तापमान बर्फबारी के लिए पर्याप्त रूप से कम नहीं होता। बड़े महानगरीय क्षेत्र में कृत्रिम बर्फबारी करवाने का खर्च बहुत अधिक होगा, जबकि इसकी सफलता की दर दिल्ली के गर्म वातावरण के कारण कम रहेगी। कृत्रिम बर्फबारी के लिए स्की रिसॉर्ट्स में इस्तेमाल की जाने वाली ‘स्नोमेकिंग’ तकनीक (पानी को महीन फुहारों में बदलकर कम तापमान पर बर्फ के कण बनाना) को खुले शहर में लागू नहीं किया जा सकता।

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