
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि प्लास्टिक की बोतल से बच्चों को दूध पिलाना उनकी सेहत और मानसिक विकास पर नकारात्मक असर डाल सकता है। एक हालिया अध्ययन में सामने आया है कि बोतल से दूध पीने वाले बच्चों का आईक्यू स्तर स्तनपान करने वाले बच्चों की तुलना में 8 से 10 अंक तक कम हो सकता है। इसके साथ ही, इन बच्चों में मोटापे का खतरा भी अधिक रहता है, जो आगे चलकर कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।
प्लास्टिक की बोतलें और बच्चों की सेहत
आजकल अधिकतर घरों में शिशुओं को दूध पिलाने के लिए प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग किया जाता है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह आदत बच्चों के लिए हानिकारक हो सकती है। स्वीडन की कार्लस्टेड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कार्ल गुस्ताफ बोर्नहैग का कहना है कि प्लास्टिक बनाने में इस्तेमाल होने वाला रसायन बिस्फेनॉल एफ (Bisphenol F) बच्चों की मस्तिष्कीय क्षमता और तंत्रिका विकास को प्रभावित कर सकता है।
उनका यह भी कहना है कि भ्रूण अवस्था में इस रसायन के संपर्क में आने से बच्चों का आईक्यू स्तर सात साल की उम्र तक घट सकता है।
माइक्रोप्लास्टिक और रसायनों से खतरा
गर्म पानी से बोतल धोने या धूप में रखने से प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक रसायन दूध या पानी में घुल सकते हैं। इससे माइक्रोप्लास्टिक और खतरनाक रसायन बच्चों के शरीर में पहुंचकर दीर्घकालिक बीमारियों को जन्म दे सकते हैं।
संक्रमण का बढ़ता खतरा
बोतलों की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान न देने पर उनमें बैक्टीरिया पनप सकते हैं, जिससे बच्चों को पेट संबंधी संक्रमण होने का खतरा रहता है। ई.कोलाई, साल्मोनेला, स्ट्रेप्टोकोकस जैसे हानिकारक बैक्टीरिया बच्चों की आंतों को प्रभावित कर सकते हैं।
भारत में हुए शोध का निष्कर्ष
झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में 100 शिशुओं पर किए गए एक अध्ययन में भी यह बात सामने आई है कि बोतल से दूध पीने वाले बच्चों का आईक्यू स्तर कम होता है। अध्ययन की अगुवाई कर रहे डॉ. ओमशंकर चौरसिया के अनुसार, इस तरह के बच्चों में मोटापा और बौद्धिक कमजोरी जैसी समस्याएं अधिक पाई गईं।
विशेषज्ञों की सलाह
- बच्चों को दूध पिलाने के लिए कटोरी-चम्मच का प्रयोग करें।
- बोतल का उपयोग बहुत आवश्यक होने पर ही करें और इसे अच्छे से साफ करें।
- शिशु के विकास और सेहत से संबंधित कोई भी संदेह होने पर चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।