
Motipur, Bahraich : कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग से सटे गाँवों की महिलाएँ और बच्चे हर रोज़ दहशत में जीते हैं। खेतों में काम करना हो या जंगल किनारे से होकर पानी और चारा लाना हर कदम मौत का इंतज़ार कर रहा है। बीते पाँच वर्षों में यहाँ लगभग 47 लोगों की मौत और करीब दो सौ से अधिक लोग घायल हो चुके हैं। अकेले अप्रैल 2022 से जून 2023 के बीच ही 19 ग्रामीणों ने अपनी जान गंवाई और लगभग 70 लोग घायल हुए। इनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल हैं।
ग्रामीण बताते हैं कि अब तो दिन ढलते ही गाँव के लोग घरों से निकलने से डरते हैं। महिलाएँ कहती हैं कि खेत में काम करने जाना किसी जुए से कम नहीं है। कई बार जंगल से लौटते समय बाघ अचानक हमला कर देता है। हाल ही में धर्मापुर रेंज के हरखापुर गाँव में 26 वर्षीय युवक इन्दल की बाघ हमले में मौत हो गई। इससे पहले एक 10 वर्षीय बालक को बाघ उठा ले गया था। वहीं, 65 वर्षीय बुज़ुर्ग और एक महिला किसान की भी इसी तरह जान जा चुकी है।
तार फेंसिंग निकली नाकाम
मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए सरकार ने कतर्नियाघाट वन क्षेत्र की परिधि पर तार फेंसिंग कराई थी। लेकिन यह व्यवस्था पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। कई जगह फेंसिंग जर्जर हो चुकी है और कई हिस्सों में जंगली जानवर आसानी से उसे लाँघकर गाँवों में घुस जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि फेंसिंग केवल दिखावा है, ज़मीनी स्तर पर इससे कोई राहत नहीं मिली।
आधी आबादी सबसे अधिक खतरे में
महिलाओं और बच्चों को सबसे अधिक खतरा है। महिलाएँ रोज़ लकड़ी, चारा और पानी लाने के लिए जंगल किनारे से होकर गुजरती हैं, वहीं बच्चे खेलते-खेलते या स्कूल जाते समय अक्सर असुरक्षित हो जाते हैं। यही वजह है कि ग्रामीण इस समस्या को आधी आबादी के लिए मौत का इंतज़ार” बताते हैं।
ग्रामीणों की माँग
ग्रामीणों का कहना है कि मज़बूत फेंसिंग, नियमित गश्त और पीड़ित परिवारों को पर्याप्त मुआवज़ा दिए बिना इस संकट का समाधान संभव नहीं है। उनका कहना है कि वन्यजीव संरक्षण ज़रूरी है, लेकिन इंसानों की सुरक्षा उससे कहीं अधिक प्राथमिकता होनी चाहिए।
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