देश के ख्यातिलब्ध कार्टूनिस्ट हरीश चंद्र शुक्ला ‘काक’ नहीं रहे। 16 मार्च 1940 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के पुरा गांव में जन्मे काक ने बुधवार सुबह गाजियाबाद में अंतिम सांस ली। उनके परिवार ने इसकी पुष्टि की है। शोकाकुल उनके पुत्र सुभव शुक्ला ने बताया कि उनका अंतिम संस्कार आज दोपहर गाजियाबाद में हिंडन नदी के तट पर बने श्मशान घाट पर कर दिया गया। वो अपने परिवार के साथ वैशाली में रहते थे।
काक देश के उन दुर्लभ कार्टूनिस्ट्स में से एक हैं, जिन्होंने हिंदी भाषा के प्रमुख समाचार पत्रों जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण और राजस्थान पत्रिका आदि से जुड़कर कार्टून जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई। उन्होंने व्यंग्य की अनोखी शैली ईजाद की। काक ने राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और जटिल राजनीतिक विषयों को सरलता से आम आदमी से जोड़कर अपने कार्टून में प्रस्तुत किये।
कार्टूनिस्ट क्लब ऑफ इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष काक के लिए उनके कार्टूनों का स्वर्णिम काल 1983 से 1990 के बीच रहा। इस दौर में अधिकतर पाठक अखबार पढ़ने से पहले उनके कार्टून देखते थे और फिर खबर पढ़ते थे।
सुभव ने अपने पिता के फेसबुक अकाउंट पर लिखा, ”भारी मन से मैं अपने पिता प्रख्यात कार्टूनिस्ट काक (हरीश चंद्र शुक्ला) के निधन की सूचना दे रहा हूं। वह 01 जनवरी. 2025 की सुबह हमें छोड़कर चले गए। उन्हें सुबह पांच बजे अचानक कार्डियक अरेस्ट हुआ। उन्हें तत्काल मैक्स हॉस्पिटल वैशाली ले जाया गया। वहां उन्होंने आखिरी सांस ली। उनका निधन हमारे जीवन में एक गहरा खालीपन छोड़ गया है।ॐ शांति।”
काक मूलतः मैकेनिकल इंजीनियर और उनके पिता शोभानाथ शुक्ला प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। कार्टूनिस्ट काक को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें 2003 में हिंदी अकादमी दिल्ली ने काका हाथरसी सम्मान प्रदान किया। 2009 में कार्टून वॉच के महोत्सव में उन्हें डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किया।