Etah : स्वच्छ भारत के नारे फीके, डॉक्टर के लिए A.C की सुविधा लेकिन मरीजों के लिए शुद्ध पानी तक नहीं

Etah : यह विडंबना ही कही जाएगी कि करोड़ों रुपये के बजट और योजनाओं की बरसात के बावजूद भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, मलावन आज अपनी प्यास बुझाने के लिए एकमात्र हैंडपंप पर निर्भर है। स्वास्थ्य सेवाओं का केंद्र जो स्वयं जीवन बचाने का प्रतीक है वहीं स्वच्छ पेयजल जैसी आधारभूत सुविधा से वंचित है। यह न केवल प्रशासनिक उदासीनता का प्रतीक है, बल्कि हमारे विकास मॉडल पर भी गहरा प्रश्नचिह्न अंकित करता है।

जहाँ डॉक्टरों के लिए वातानुकूलित कक्ष (A.C.) की सुविधा मौजूद है, वहीं दूर-दराज़ के गाँवों से आए मरीज और उनके परिजन प्यास बुझाने के लिए स्वच्छ पानी की तलाश में भटकते हैं। यह स्थिति केवल असमानता नहीं, बल्कि संवेदनहीनता का जीवंत उदाहरण है। जिस स्थान पर स्वास्थ्य और स्वच्छता का सबसे अधिक ध्यान रखा जाना चाहिए, वहीं गंदे या अनुपलब्ध पानी के कारण बीमारियाँ फैलने का खतरा उत्पन्न हो रहा है यह प्रशासनिक सोच की गहराई को स्वयं बयान करता है।

स्वास्थ्य मंत्रालय और स्थानीय निकायों द्वारा हर वर्ष करोड़ों रुपये ‘स्वस्थ भारत’, ‘स्वच्छ भारत’ जैसे नारों पर खर्च किए जाते हैं, परंतु ज़मीनी हकीकत यह है कि इन नारों की गूँज सिर्फ़ दीवारों पर लिखे शब्दों तक सिमट कर रह गई है। योजनाओं की फाइलें वातानुकूलित कमरों में सरकती रहती हैं और धरातल पर स्थिति जस की तस बनी रहती है। मलावन स्वास्थ्य केंद्र की यह स्थिति केवल एक केंद्र की नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की नाकामी का प्रतिबिंब है।

यदि स्वास्थ्य केंद्रों की प्राथमिक आवश्यकताएँ जैसे शुद्ध पानी, स्वच्छ शौचालय और स्वच्छ वातावरण ही अधूरी रहेंगी, तो आधुनिक उपकरणों और एयर कंडीशनरों से भरे अस्पताल भी जनस्वास्थ्य की असल समस्या का समाधान नहीं कर पाएँगे। विकास का अर्थ केवल भवन निर्माण या बजट व्यय नहीं, बल्कि उस धन का आमजन के जीवन में वास्तविक सुधार के रूप में परिवर्तित होना है।

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