Etah : जलेसर की पीतल की झंकार को मिला GI टैग, कला को मिली वैश्विक पहचान

Etah : उत्तर प्रदेश के एटा जनपद स्थित तहसील जलेसर की पहचान आज देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में भी गूंज रही है। जलेसर की पीतल से बनी घंटियाँ, घुंघरू और शिल्पकृतियाँ सदियों से भारतीय संस्कृति, संगीत और धार्मिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा रही हैं। अब इस धरोहर को भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिलने के बाद इसकी झंकार को वैश्विक पहचान मिल गई है।

जलेसर के कारीगर कई पीढ़ियों से पारंपरिक ढलाई और नक़्क़ाशी की अनोखी कला को जीवित रखे हुए हैं। यहां बनने वाली घंटियाँ और घुंघरू अपनी मधुर ध्वनि और कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध हैं। देशभर के मंदिरों, संगीत संस्थानों और शास्त्रीय नृत्य मंचों पर इनका विशेष उपयोग होता है।

तहसील जलेसर के थाना सकरौली क्षेत्र के गांव गहला निवासी लोकेश सिंह जादौन एवं अजय प्रताप सिंह उर्फ भोले चौहान ने बताया कि “जलेसर कारीगरों के बुजुर्ग पीढ़ियों से यह कला करते आ रहे हैं। GI टैग मिलने से अब हमारे जलेसर क्षेत्र को पहचान मिल रही है। इससे हमारे क्षेत्र के कारीगरों की नई पीढ़ी भी इस परंपरा से जुड़ने के लिए प्रेरित हो रही है। यह हमारे क्षेत्र जलेसर के कारीगरों के पूर्वजों की विरासत है।”

इसी गांव गहला के मोहित प्रताप सिंह जादौन ने बताया कि जलेसर की पीतल को गलाकर घंटियों में ढालने की यह प्रक्रिया आज भी अधिकतर हाथों से ही की जाती है। जलेसर की घंटियों की झंकार अब सिर्फ बाजार तक सीमित नहीं रही। जलेसर के लिए अब विदेशों से भी ऑर्डर आने लगे हैं। यदि केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार सहयोग दें तो यह कला हजारों लोगों को रोजगार दे सकती है। इसके उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी नई पहचान और मांग मिली है।

जलेसर क्षेत्र के अन्य स्थानीय लोगों ने बताया कि जलेसर की यह झंकार अब केवल परंपरा की नहीं, बल्कि ‘मेड इन एटा’ की गौरवगाथा बन चुकी है, जो उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश की सांस्कृतिक विरासत को दुनिया तक पहुंचा रही है।

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