जलवायु परिवर्तन से भारत के बच्चों की पढ़ाई हो रही प्रभावित : डॉ. साधना पांडे, शिक्षा प्रमुख, यूनिसेफ इंडिया

नई दिल्ली। असम राज्य में एक दस वर्षीय लड़की कोरोबी मेधी शिक्षिका बनने का सपना देखती है, और स्कूल उसका एकमात्र सहारा है। एक दिन जब बाढ़ के बढ़ते पानी ने उसके स्कूल को अपनी चपेट में ले लिया, उसकी कक्षा पानी में डूब गई, उसकी किताबें नष्ट हो गईं, तो उसके लिए स्कूल जाना असंभव हो गया। उसके सपने धरे के धरे रह गए।

भारत में कोरोबी की कहानी लाखों बच्चों द्वारा साझा की जाती है, जहां जलवायु के झटके लगातार शिक्षा मे रुकावट डालते हैं। यह केवल छूटी हुई शिक्षा के बारे में नहीं है – यह स्थिरता, सामाजिक संपर्क, सीखने और बढ़ने के लिए सुरक्षित स्थानों को खोने के बारे में है।

ऐसी रुकावटें कमज़ोर वर्ग के बच्चों, खासकर लड़कियों के लिए मुश्किलों को बढ़ाती हैं। बार-बार, थोड़े समय के लिए स्कूल से बाहर रहने से सीखने के अंतराल बढ़ते हैं और स्कूल छोड़ने का जोखिम बढ़ता है। बच्चों को अक्सर घर पर रहते हुए घरेलू जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं, और उन्हें वापिस स्कूल लौटने के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

जलवायु परिवर्तन कोई दूर का खतरा नहीं है; यह पूरे भारत में लाखों बच्चों के जीवन को प्रभावित करता है। बाढ़ के पानी से गांव डूब जाते हैं, अत्याधिक गर्मी से शहर तपने लगते हैं और चक्रवाती तूफान किनारे से बहुत दूर बस्तियों को तबाह कर देते हैं, और इन सभी कारणों से बच्चों की शिक्षा पर बहुत बुरा असर पड़ता है। ये सिफ़र् मौसम संबंधित घटनाएं नहीं हैं बल्कि ये सीखने, विकास और भविष्य मे आने वाले अवसरों में बाधाएँ पैदा करती हैं।

यूनिसेफ के बच्चों के क्लाइमिट रिस्क इंडेक्स में भारत 163 देशों में से 26वें स्थान पर है, जलवायु परिवर्तन के प्रति इसकी संवेदनशीलता से इनकार नहीं किया जा सकता। यह संकट मूल रूप से बाल अधिकारों का मुद्दा है, और मौसम की इन खतरनाक घटनाओं के बावजूद सीखना जारी रखने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग करता है।

क्या होगा अगर बच्चे सीखना जारी रखें, चाहे कुछ भी हो? क्या होगा अगर बाढ़, चक्रवात या गर्मी की लहर का मतलब बच्चे की शिक्षा का अंत न हो? यह दृष्टिकोण यूनिसेफ इंडिया की बच्चों की निर्बाध शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

कोविड महामारी के दौरान हमें बिना तकनीक या कम तकनीक वाले तथा उच्च तकनीक वाले कई तरीकों का पता चला जिससे बिना रुके सीखना जारी रह सकता है, बशर्ते इसे अनिवार्य माना जाए और संसाधन उपलब्ध कराए जाएँ। रेडियो, टीवी, सामुदायिक शिक्षण केंद्र, ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म, शैक्षिक वीडियो और इंटरैक्टिव ऐप बच्चों को कभी भी, कहीं भी पढ़ने मे मदद करते हैं। ऐसे कई उदाहरण है जैसे बिहार में, ‘सुरक्षित शनिवार’ कार्यक्रम में डिजिटल उपकरणों का उपयोग किया जाता है, जो 8.4 मिलियन से ज्यादा बच्चों को आपदा से लड़ने की तैयारी सिखाने के साथ-साथ उन्हें अकादमिक रूप से ट्रैक पर रखते हैं। जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन केरल में पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं, जिसमें डिजिटल सामग्री दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचती है। गुजरात के स्व-गतिशील स्कूल सुरक्षा पाठ्यक्रम को हज़ारों स्कूलों ने अपनाया है।

यूनिसेफ इंडिया समावेशी शिक्षा के लिए कम लागत वाले, कम तकनीक वाले समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, पाठ्यक्रम के लिए डिजिटल उपकरणों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए सरकार को सहयोग प्रदान करता है। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर्यावरण शिक्षा को प्राथमिकता देती है, पाठ्यक्रम में स्थिरता और जलवायु कार्रवाई को एकीकृत करती है। यूनिसेफ और अन्य संस्थाओं ने इन विषयों को राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे में शामिल करने के लिए सरकार के साथ काम किया है, जो जलवायु साक्षरता और सतत कार्यों को बढ़ावा देने के लिए भारत के मिशन लाइफ के साथ संरेखित है।

वैश्विक स्तर पर, बच्चे और किशोर क्लाइमिट एक्शन की मांग करने में सबसे आगे रहे हैं। जबकि ज्ञान और कौशल पाठ्यक्रम के माध्यम से प्रदान किए जाते हैं, सह-पाठ्यचर्या और पाठ्येतर गतिविधियां समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं जो छात्रों को जीवन की कठिन परिस्थितियों से निपटने और उनके समुदायों की मदद करने के लिए सशक्त और तैयार करती हैं।

स्कूलों में इको क्लब छात्रों को वृक्षारोपण, अपशिष्ट प्रबंधन और ऊर्जा संरक्षण जैसी गतिविधियों में शामिल करते हैं, जो अक्सर परिवारों और समुदायों तक पहुंचती हैं। बिहार में, इको क्लबों पर बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के साथ यूनिसेफ की साझेदारी ने 75,000 से अधिक स्कूलों को फायदा मिला। उत्तर प्रदेश ने जलवायु परिवर्तन पर बच्चों के सम्मेलन की मेजबानी की, जिसने स्कूलों में किशोर मंचों के माध्यम से राज्यव्यापी अभियानों को प्रेरित किया और महाराष्ट्र में, यूथ फॉर क्लाइमेट एक्शन कार्यक्रम ने स्कूली पाठ्यक्रम में जलवायु पाठों को एकीकृत किया, जिससे सैकड़ों-हज़ारों युवाओं को संगठित किया गया है।

जैसे-जैसे जलवायु घटनाओं की आवृत्ति और गंभीरता बढ़ती है, हमें और अधिक प्रयास करने चाहिए। प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने से लेकर, जलवायु-स्मार्ट निर्माण और अनुकूलन के माध्यम से स्कूल के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, आपदाओं के लिए बच्चों और स्कूलों की लचीला बनाने तथा हरित अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए देश की मानव पूंजी को बढ़ाने तक, हम जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम कर सकते हैं और रोक सकते हैं।

जब हम कोरोबी और उसके जैसे लाखों बच्चों के बारे में सोचते हैं, तो हमारे मिशन का पैमाना और जरूरत स्पष्ट हो जाती है। बच्चे केवल आंकड़े नहीं हैं – वे ताकत और लचीलेपन का प्रतिनिधित्व करते हैं। जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव उनके भविष्य को परिभाषित कर सके, यह उन्हे स्वीकार नहीं।
जलवायु संबंधी बाधाओं से बच्चों की सुरक्षा के लिए सरकारों, विकास भागीदारों, सिविल सोसाइटी, माता-पिता, शिक्षकों और छात्रों द्वारा किए जाने वाले एक सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। शिक्षा केवल ज्ञान के बारे में नहीं है; यह आशा के बारे में है। और आशा को कभी भी बाधित नहीं किया जाना चाहिए।

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