
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का महत्व: फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार, इस दिन गणेश की आराधना से सभी कष्ट समाप्त होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके साथ ही, इस दिन विशेष मंत्रों का जाप करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
तिथि और शुभ मुहूर्त:
- चतुर्थी तिथि की शुरुआत: 15 फरवरी, शनिवार, रात्रि 11:53 मिनट से
- चतुर्थी तिथि का समापन: 17 फरवरी, सोमवार, रात्रि 2:15 मिनट तक
- उदया तिथि के अनुसार व्रत: 16 फरवरी, शनिवार को
- शुभ मुहूर्त:
- ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 05:16 मिनट से प्रातः 06:07 मिनट तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 02:28 मिनट से दोपहर 03:12 मिनट तक
- गोधूलि मुहूर्त: सायं 06:09 मिनट से सायं 06:35 मिनट तक
- अमृत काल: रात्रि 09:48 मिनट से रात्रि 11:36 मिनट तक

विशेष मंत्रों का जाप:
- ॐ गं गणपतये नमः
इस मंत्र का जाप करने से सभी प्रकार के विघ्न दूर होते हैं और व्यक्ति जो भी कार्य प्रारंभ करना चाहता है, उसमें सफलता प्राप्त होती है। - ॐ वक्रतुण्डाय हुं
इस मंत्र का जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन से संकटों का नाश होता है। - ॐ एकदंताय नमः
भगवान गणेश के इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति की बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है, जिससे हर कार्य में सफलता मिलती है। - ॐ लंबोदराय नमः
इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन में धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है, साथ ही आर्थिक स्थिति भी बेहतर होती है। - ॐ विघ्ननाशाय नमः
यह मंत्र भगवान गणेश के विघ्नहर्ता रूप की पूजा करता है। इस मंत्र का जाप करने से जीवन की सभी बाधाएं समाप्त होती हैं और व्यक्ति को शांतिपूर्ण जीवन मिलता है।















