नई दिल्ली । पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का गुरुवार रात निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे। उन्होंने रात 9.51 मिनट पर एम्स में अपनी अंतिम सांस ली। दिल्ली के ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट (एम्स) प्रशासन ने उनके निधन की पुष्टि की है।
डॉ मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को गाह, पाकिस्तान में हुआ था। 1947 में विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आया। मनमोहन सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से डी. फिल. की डिग्री ली। डॉ सिंह के परिवार में उनकी पत्नी गुरशरण कौर और तीन बेटियां उपिंदर सिंह, दमन सिंह और अमृत सिंह हैं।
मनमोहन सिंह की पुस्तक ‘इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ’ भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है। डॉ सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर भी काफी ख्याति अर्जित की। वे पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनामिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वे संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन सचिवालय में सलाहकार भी रहे और 1978 तथा 1990 में जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे। 1971 में डॉ सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये। इसके तुरन्त बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे। भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डॉ सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है।
मनमोहन सिंह का सियासी सफरमनमोहन सिंह का सियासी सफर 1990 के दशक में शुरू हुआ, जब वो तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री बने। इस दौरान उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को उदार बनाने में अहम भूमिका निभाई। ऐसे सुधारों को लागू किया जिससे निजी उद्यम को बढ़ावा मिला। साल 1991 में देश के सामने आए गंभीर आर्थिक संकट को कम करने में उन्होंने अहम किरदार निभाया। माना जाता है कि उनकी नीतियों ने उनकी प्रतिष्ठा को मजबूत किया। वित्त मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता में लौटने से पहले वो राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे।उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में आर्थिक संकट से जूझते देश को नई आर्थिक नीति का उपहार दिया।
प्रधानमंत्री के रूप में डॉ सिंह का कार्यकाल
डॉ मनमोहन सिंह साल 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। वह पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और पीएम नरेन्द्र मोदी के बाद चौथे सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहे। डॉ मनमोहन सिंह भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री थे। वो जवाहरलाल नेहरू के बाद पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर से चुने जाने वाले पहले प्रधानमंत्री भी थे। वर्ष 2004 में जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बनें तो उन्होंने सामाजिक-आर्थिक विकास पर केंद्रित सरकार का नेतृत्व किया। उनकी नेतृत्व मेंं देश की जीडीपी का औसत 8 से 9 प्रतिशत रहा। हालांकि, उनके शासन काल में सरकार पर विभिन्न घोटालों के आरोप भी लगे लेकिन मनमोहन सिंह व्यक्तिगत रूप से हमेशा पाक साफ रहे।
पुरस्कार और सम्मानः
डॉ मनमोहन सिंह को मिले कई पुरस्कारों और सम्मानों में सबसे प्रमुख है, भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण, जो उन्हें वर्ष 1987 में मिला। इसके अलावा, भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार (1995), वर्ष के वित्तमंत्री के लिए एशिया मनी अवार्ड (1993 और 1994), वर्ष के वित्तमंत्री के लिए यूरो मनी अवार्ड (1993), कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एडम स्मिथ पुरस्कार (1956), कैम्ब्रिज के सेंट जॉन्स में विशिष्ट प्रदर्शन के लिए राइट पुरस्कार (1955)। मनमोहन सिंह को जापानी निहोन किजई शिम्बुन एवं अन्य कई विश्वविद्यालयों द्वारा मानद उपाधियों प्रदान की गई हैं।