
लखनऊ। निजीकरण का विफल प्रयोग उत्तर प्रदेश की गरीब जनता पर न थोपा जाय। संघर्ष समिति की अपील है निजीकरण रोकने के लिए मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना चाहिए।विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले, निजीकरण के प्रयोग को उत्तर प्रदेश की जनता पर न थोपने की मांग को लेकर बिजली कर्मचारियों ने लगातार 270 वें दिन निजीकरण के विरोध में विरोध में अवकाश के बावजूद व्यापक जनसंपर्क जारी रखा।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील करते हुए कहा है कि उनके मार्गदर्शन में बिजली कर्मचारियों ने रिकॉर्ड विद्युत आपूर्ति की है और लाइन हानियां में कमी कर उसे राष्ट्रीय मानक के नीचे कर दिया है। बिजली के क्षेत्र में निजीकरण का प्रयोग एक विफल प्रयोग है। प्रांत के स्तर पर सबसे पहले वर्ष 1999 में उड़ीसा में विद्युत वितरण का निजीकरण किया गया था। निजीकरण का यह प्रयोग उड़ीसा के सबसे अधिक औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्र में एक वर्ष में ही विफल हो गया। अमेरिका की एईएस कंपनी एक वर्ष बाद ही काम छोड़कर भाग गई और उसने महा चक्रवात के दौरान टूटे बिजली के ढांचे का पुनर्निर्माण करने से इनकार कर दिया। रिलायंस पावर अन्य तीन विद्युत वितरण निगमों में काम करता रहा। फरवरी 2015 में उड़ीसा के विद्युत नियामक आयोग ने बेहद खराब परफॉर्मेंस के चलते रिलायंस पावर के भी तीनों लाइसेंस रद्द कर दिये।
उड़ीसा में यह दूसरी विफलता थी। पड़ोसी प्रांत बिहार में गया, भागलपुर और समस्तीपुर में अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी के नाम पर निजीकरण का प्रयोग किया गया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसके पूरी तरह असफल रहने के चलते इसे एक साल बाद ही रद्द कर दिया। महाराष्ट्र में औरंगाबाद, जलगांव, नागपुर और झारखंड में रांची और जमशेदपुर में निजीकरण के विफल प्रयोग निरस्त किए जा चुके है। उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा और आगरा में निजीकरण का प्रयोग असफल रहा है। ग्रेटर नोएडा में आए दिन किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं की शिकायतें सामने आ रही है। ग्रेटर नोएडा में निजी कंपनी का लाइसेंस निरस्त कराने हेतु स्वयं उत्तर प्रदेश सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ रही है।
यह भी पढ़ें: मथुरा : 5 लाख एकड़ की ज़मीन अब 5 लाख गज में बिक रही है – मंत्री लक्ष्मीनारायण










