मोहन भागवत के बयान पर भड़के दिग्विजय सिंह, कहा– हिंदू धर्म की तुलना आरएसएस से कर आस्था का अपमान

भोपाल : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान पर पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने कड़ा प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि भागवत ने आरएसएस जैसे अपंजीकृत संगठन की तुलना हिंदू धर्म से करके करोड़ों सनातन धर्मावलंबियों की आस्था का अपमान किया है।

दिग्विजय सिंह ने कहा कि बेंगलुरु में आरएसएस के शताब्दी समारोह में मोहन भागवत द्वारा दिया गया बयान—“अगर आरएसएस अपंजीकृत है, तो हिंदू धर्म और इस्लाम भी अपंजीकृत हैं”—अज्ञान और अहंकार से भरा है। उन्होंने कहा कि “हिंदू धर्म कोई संस्था नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से चली आ रही जीवन परंपरा है, जिसे किसी संगठन से नहीं जोड़ा जा सकता।”

सिंह ने कहा कि वे स्वयं सनातन धर्म के अनुयायी हैं और शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी से दीक्षा प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि भागवत को देशवासियों, संतों और शंकराचार्यों से माफी मांगनी चाहिए।

पूर्व सीएम ने आरोप लगाया कि “संघ और उसके कई नेता मुसलमानों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले बयान देते हैं, जिससे देश की एकता को खतरा है।” उन्होंने सवाल उठाया कि “जब संघ पंजीकृत नहीं है, तो उसे आयकर से छूट कैसे मिली और गुरु दक्षिणा की राशि किस खाते में जाती है?”

दिग्विजय सिंह ने कहा कि संघ न तो आजादी की लड़ाई में शामिल हुआ और न ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ा। उन्होंने कहा कि संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने जेल तो काटी, लेकिन बाद में संगठन ने अपने कार्यकर्ताओं को ब्रिटिश सेना में शामिल होने की सलाह दी।

उन्होंने यह भी कहा कि 1925 में बने अन्य संस्थान जैसे ब्रह्म समाज, आर्य समाज और रामकृष्ण मिशन पंजीकृत हुए, लेकिन आरएसएस ने आज तक पंजीकरण नहीं कराया। सिंह ने कहा कि इस संगठन के आर्थिक लेनदेन और कोविड काल के दौरान किए गए खर्चों की जांच होनी चाहिए।

गांधी जी की हत्या का जिक्र करते हुए दिग्विजय ने कहा, “नाथूराम गोडसे संघ से जुड़ा था, यह खुद उसके भाई ने स्वीकार किया था। जब संगठन के पास सदस्यता फॉर्म ही नहीं है, तो वह कैसे दावा कर सकता है कि गोडसे उसका सदस्य नहीं था?”

उन्होंने कहा कि “भारत की ताकत विविधता में है, न कि विभाजन में। संघ प्रमुख को स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रेरणा लेकर सभी मतों का सम्मान करना चाहिए।”

मोहन भागवत का बयान:
कर्नाटक में आयोजित ‘100 इयर्स ऑफ संघ जर्नी – न्यू होराइजन्स’ कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा था कि “संघ की शाखा में मुस्लिम, ईसाई और हिंदू सभी आते हैं। हम सब भारत माता के पुत्र हैं — यही संघ की कार्यशैली है।”

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