
धर्मशाला : तिब्बत में चीन का लगातार बढ़ता सैन्यीकरण हिमालयी पारिस्थितिकी, क्षेत्रीय जलवायु और जल सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन रहा है। यह खुलासा स्टॉकहोम स्थित इंस्टीट्यूट फॉर सिक्योरिटी एंड डेवलपमेंट पॉलिसी (ISDP) की ताज़ा रिपोर्ट में किया गया है।
सैन्य विस्तार और पर्यावरण पर असर
रिपोर्ट के अनुसार, तिब्बती पठार पर एशिया के सबसे बड़े ग्लेशियर और पर्माफ्रॉस्ट (जमी हुई भूमि) मौजूद हैं, लेकिन चीन की सैन्य गतिविधियां इस नाज़ुक पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हैं। सैटेलाइट तस्वीरें दिखाती हैं कि पर्माफ्रॉस्ट इलाकों में सड़कें, हवाई पट्टियां, सुरंगें और सैन्य अड्डे बनाए जा रहे हैं। इससे भूमि का क्षरण बढ़ रहा है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन तेज हो रहा है, जो वैश्विक जलवायु अस्थिरता को और बढ़ाता है।
PLA की तैनाती
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ के मुताबिक, तिब्बत क्षेत्र में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के 70,000 से 1,20,000 सैनिक मौजूद हैं, जिनमें से 40,000–50,000 अकेले तिब्बत में तैनात हैं। यह नेटवर्क चीन की सैन्य और आर्थिक रणनीति का हिस्सा है।
वैश्विक जल और जैव विविधता पर खतरा
पिछले तीन दशकों में तिब्बती पठार की भूमि का तापमान लगातार बढ़ा है, जिससे पर्माफ्रॉस्ट कमजोर हो रहा है। रिपोर्ट चेतावनी देती है कि इसका असर सिर्फ तिब्बत तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया की जल सुरक्षा और जैव विविधता पर भी गंभीर असर डालेगा।