
औरैया। उत्तर प्रदेश के औरैया जिले से लगभग 4 किलोमीटर दूर बीहड़ क्षेत्र में स्थित देवकली मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि इतिहास के कई अनछुए पन्नों को समेटे हुए एक प्राचीन सिद्धपीठ है। यमुना नदी के किनारे बसे इस मंदिर की पौराणिकता, स्थानीय जनश्रुतियों और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ी अनेक कथाएं आज भी लोगों को आकर्षित करती हैं।
कर्ण से लेकर कृष्णदेव तक जुड़ा है इतिहास
द्वापर युग में कर्ण की राजधानी करनखेड़ा (कनारगढ़) से लेकर महाराज कृष्णदेव द्वारा संवत 202 ईस्वी में देवगढ़ में किला और मंदिर निर्माण की कथा यहां की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दर्शाती है। कृष्णदेव द्वारा स्थापित महा कालेश्वर मंदिर ही वर्तमान देवकली मंदिर का प्रारंभिक स्वरूप था।
राजा विशोक देव और रानी देवकला की अद्वितीय श्रद्धा
संवत 1210 ईस्वी में राजा विशोक देव का विवाह कन्नौज के राजा जयचंद की बहन देवकला से हुआ। संतान प्राप्ति की कामना लिए जब दंपत्ति गंगा स्नान कर लौट रहे थे, तब वर्तमान देवकली स्थल पर उन्होंने रात्रि विश्राम किया। इसी स्थान को रानी देवकला ने अपनी भावी राजधानी बनाने की इच्छा जताई। जब महल निर्माण शुरू हुआ, तो आंगन में एक रहस्यमयी शिवलिंग (पत्थर की लाट) निकली, जिसे स्वयं महामाया मंगला काली ने रानी को दर्शन देकर देवगढ़ महाकालेश्वर बताया।
देवकली नाम ऐसे पड़ा
रानी देवकला की मृत्यु के बाद राजा विशोक देव ने संवत 1265 ईस्वी में शिवलिंग की स्थापना करते हुए भव्य मंदिर बनवाया और अपनी रानी की स्मृति में इसका नाम देवकली मंदिर रखा।
शेरशाह सूरी का हमला और श्राप की कथा
कहा जाता है कि बाद में शेरशाह सूरी ने मंदिर पर हमला किया और पश्चिमी गुंबद को ध्वस्त करवा दिया। इस पर राजा विशोक देव की आत्मा ने उसे श्राप देकर अंधा कर दिया। इससे त्रस्त होकर शेरशाह ने यमुना किनारे एक मंदिर बनवाया और भगवान राम, लक्ष्मण व सीता की मूर्तियां प्रतिष्ठित कीं।
आस्था का केंद्र, अद्भुत मान्यताएं
आज भी देवकली मंदिर में सावन के हर सोमवार को भव्य मेले का आयोजन होता है। यहां हज़ारों श्रद्धालु महाकालेश्वर का अभिषेक कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना करते हैं। मंदिर की स्थापना और उससे जुड़े कई रहस्य शोधकर्ताओं और श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का विषय बने हुए हैं।
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