
- मंत्री जयवीर वाराणसी की देव दीपावली में दिखेगी ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की झलक
लखनऊ। देव दीपावली पर जब पूरी काशी गंगा तट पर दीयों की रौशनी में नहाएगी, तब शहर एक बार फिर “मिनी भारत” की झलक पेश करेगा। इस बार की देव दीपावली में वाराणसी के घाट केवल धार्मिक आस्था से ही नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता से भी आलोकित होंगे। इस साल देव दीपावली 5 नवंबर को मनाई जाएगी. वहीं गंगा किनारे जगमगाते लाखों दीप इस बार देश की विविध परंपराओं का जीवंत चित्र बनेंगे।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि वाराणसी की देव दीपावली में दिखेगी ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की झलक दिखेगी। हर घाट अपनी विशिष्ट पहचान के साथ अलग-अलग संस्कृति का रंग बिखेरेगा- कहीं मराठी परंपरा झलकेगी, कहीं दक्षिण भारत की रीतियां, कहीं मैथिल ब्राह्मणों के द्वारा दीपों की साज-सज्जा, तो कहीं गुजराती रंगोली और थालियों की साज-सज्जा आकर्षण का केंद्र बनेगी। काशी की यह देव दीपावली वैश्विक स्तर पर “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना को साकार करती दिखाई देगी और देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए एक नया अनुभव बनेगी। इसके लिए पर्यटन विभाग ने तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
काशी के पंच तीर्थों में गिने जाने वाले पंचगंगा घाट पर इस बार भी मराठी संस्कृति की अलग छटा दिखेगी। यहां के मराठी मोहल्ले के परिवार पारंपरिक तरीके से दीये सजाने और गंगा आरती करने की तैयारियों में जुटे हैं। इसी घाट के पास बसे नेपाली लोगों के मोहल्ले में भी सजावट की तैयारियां चल रही हैं। नेपाली परिवार अपनी पारंपरिक शैली में दीये जलाकर गंगा तट को रोशन करेंगे। दोनों संस्कृतियों का यह संगम देव दीपावली की रात पंचगंगा घाट को विशेष बना देगा।
गौरीकेदार घाट पर इस बार दक्षिण भारतीय संस्कृति का रंग गहराने वाला है। गौरी केदारेश्वर मंदिर परिसर में दीप सज्जा, भक्ति संगीत और पारंपरिक पूजा की तैयारियां जोरों पर हैं। यहां पर दक्षिण भारत के अधिकतर लोग रहते हैं। ऐसे में गौरीकेदार घाट पर दक्षिण भारतीय परंपराओं की छटा देखने को मिलेगी।
पुराने गुजराती मोहल्ले में भी दीप सज्जा शुरू हो चुकी है। चौक, ठठेरी बाजार और मणिकर्णिका के आसपास स्थित मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जा रहा है। गुजराती समुदाय पारंपरिक वेशभूषा में पूजा-अर्चना करेगा और रंगोली से सजे दीयों की थालियाँ इस इलाके को खास बनाएंगी। यहां पर गुजराती परंपरा के अनुसार दीपसज्जा देखने को मिलेगी।
गंगा तट के दशाश्वमेध घाट और राजेन्द्र प्रसाद घाट के आसपास मैथिल ब्राह्मणों की पूजा-पद्धति से दीप जलते दिखेंगे। इस बार इऩ घाटों पर दीयों की संख्या और सजावट दोनों ऐतिहासिक होंगी। देव दीपावली की शाम जब गंगा के दोनों तट लाखों दीपों से जगमगाएंगे, तब यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता का अनूठा उत्सव होगा। यहां मैथिली संस्कृति की झलक दिखाई देगी।
देव दीपावली भारत की आत्मा का उत्सव है। काशी के घाटों पर देश के हर कोने की परंपरा एक साथ दमकती है। मराठी, दक्षिण भारतीय, गुजराती, मैथिल और नेपाली संस्कृतियों का यह संगम काशी को ‘मिनी भारत’ बना देता है। सरकार का प्रयास है कि ऐसी परंपराओं को प्रोत्साहित कर काशी को वैश्विक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में और सशक्त किया जाए। इसके अलावा संयुक्त निदेशक पर्यटन, दिनेश कुमार ने बताया कि देव दीपावली 2025 पर पर्यटन विभाग की ओर से 10 लाख दीप जलाए जाएंगे, जबकि शेष घाटों की स्थानीय समितियां अपने स्तर पर दीये जलाएंगी। उन्होंने कहा कि हर घाट पर समितियां सक्रिय हैं और सभी मिलकर इस आयोजन को ऐतिहासिक बना रही हैं। आस-पास के जिलों जैसे मिर्जापुर, जौनपुर, गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर, प्रयागराज के अलावा दक्षिण भारत, गुजरात और अन्य राज्यों से हजारों श्रद्धालु और विदेशी पर्यटक भी आने वाले हैं। ऐसे में पर्यटन विभाग तैयारियों को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।










