
- ऋग्वेद में मिलता है केन नदी के तट पर मां सिंहवाहिनी के मंदिर का वर्णन
- द्वापर युग में अज्ञातवास में पांडवों ने की थी मां सिंहवाहिनी की आराधना
- चंदेलवंशीय राजाओ ने केन नदी के तट पर की थी मंदिर की पुर्नस्थापना
बांदा। शहर के कटरा मोहल्ले में स्थापित मां सिंहवासिनी का दरबार वैसे तो पूरे साल भक्ताें की आवाजाही से गुलजार रहता है, लेकिन नवरात्र के मौके पर यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है और देवी भक्त मां की आराधना करके अपने मनोवांछित फल प्राप्त करने को साधना करते हैं। सिंहवाहिनी मंदिर की स्थापना के इतिहास को लेकर कई किंवदंतियां चर्चित है।
जानकार बताते हैं कि मां सिंहवाहिनी की स्थापना ऋग्वेद काल में केन नदी के तट पर की गई थी। हालांकि बाद में चंदेलवंशीय राजाओं के 831 ई. और राजा कीरत सिंह के 1746 ई. में मंदिर की पुर्नस्थापना किए जाने का उल्लेख मिलता है। वहीं मां सिंहवाहिनी की मूर्तियां में गुप्त साम्राज्य की कलाकृतियों की भी झलक देखने को मिलती है। हालांकि मंदिर की स्थापना को लेकर कोई प्रमाणिक साक्ष्य तो उपलब्ध नहीं है लेकिन बुजुर्गों की परिपाटी और चर्चित किंवदंतियों के अनुसार मंदिरों को हजारों वर्ष पुराना माना जा रहा है। इतिहास और वेद-पुराणों के जानकाराें की मानें तो कर्म, भक्ति और ज्ञान की त्रिविध बहाने वाली मां सिंहवाहिनी के मंदिर की स्थापना को लेकर ऋग्वेद मंे भी वर्णन मिलता है। पुराणों में मिले उल्लेख के अनुसार ऋग्वेद काल में बसु नाम के प्रतापी राजा ने जब बांदा को अपनी राजधानी बनाया तो उन्होंने केन नदी के तट पर मां सिंहवाहिनी के दरबार की स्थापना कराई थी। वहीं द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडवों के मां सिंहवाहिनी की आराधना करने के भी प्रमाण मिलते हैं। बताते हैं कि द्वापर युग मंे बांदा का पूर्व नाम िवराटनगर था। मंदिर के पुजारी बृजलाल श्रीमाली बताते हैं कि इतिहासकारों का मत है कि मंदिर की पुर्नस्थापना चंदेलवंश के राजाओं ने कराई थी। बताते हैं कि चंदेलवंश के राजा विद्याधर, कीर्तिमान, गुमान सिंह आदि अपनी राजधानी महोबा से कालिंजर जाते समय केन नदी के छुलछुलिया घाट से गुजरते थे और मां सिंहवाहिनी के दरबार में हाजिरी के बाद ही आगे बढ़ते थे। वहीं त्रिपुरी के चेदिवंशीय राजा, मौर्य युग, गुप्तकाल और प्रतिहार राजाओं का भी मां सिंहवाहिनी मंदिर से ऐतिहासिक सरोकार का उल्लेख मिलता है। चंदेलवंश की पुत्री रानी दुर्गावती की वीरता को भी मां सिंहवाहिनी का वरदान प्राप्त था।
मां खुशियों से भरतीं हैं भक्ताें की झाेली
मां सिंहवाहिनी के पुरातन इतिहास और मां की महिमा को लेकर मंदिर समिति के प्रबंधक प्रद्युम्न कुमार लालू दुबे बताते हैं कि वास्तव में मां की महिमा अपरंपार है। मां सिंहवाहिनी के दरबार में भक्तों के मन की मुरादें पूरी होती हैं और भक्तों की झोली खुशियों से भरती है। बताते हैं कि नवरात्र के नौ दिनों तक मंदिर कमेटी की ओर से कन्या भोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें मां के भक्त बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। प्रबंधक लालू दुबे का कहना है कि इतिहासकारों का मत है कि यहां कभी पांडवों ने भी आकर मां सिंहवाहिनी की आराधना की थी। नवरात्रि के नौ दिनों तक मंदिर में मां के भक्तों की कतार लगी रहती है और भक्त मां के दरबार में शीश नवाकर मनचाहा वरदान मांगते हैं।