
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में सोमवार को चिलचिलाती धूप और उमस ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया। दोपहर के वक्त हीट इंडेक्स 43 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया, यानी वह तापमान जो इंसान के शरीर को वास्तव में महसूस होता है। अधिकतम तापमान 35.6 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 23.9 डिग्री दर्ज किया गया। हवा में नमी का स्तर 92 से 53 फीसदी तक रहा, जिसने लोगों को और बेचैन कर दिया। मौसम विभाग का कहना है कि मंगलवार को हल्की बारिश हो सकती है, लेकिन 10 सितंबर के बाद बारिश का सिलसिला थम जाएगा और गर्मी फिर से दिल्लीवालों को झुलसाएगी। हीट इंडेक्स दरअसल एक ऐसा पैमाना है, जो तापमान और नमी दोनों को जोड़कर यह बताता है कि बाहर कितनी गर्मी “महसूस” हो रही है। उदाहरण के तौर पर, जब तापमान 35 डिग्री हो और नमी अधिक हो, तो शरीर को यह 43 डिग्री से ज्यादा लग सकता है।
यानी, हीट इंडेक्स उस असल “झुलस” का पैमाना है जिसे इंसान झेलता है। ग्रीनपीस इंडिया की एक ताज़ा रिपोर्ट ने राजधानी के लिए चौंकाने वाला खुलासा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 12 वर्षों से जून, जुलाई और अगस्त के महीनों में मौतों का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है। इसका सीधा कारण है गर्मी और उमस में लंबे समय तक रहना। रिपोर्ट बताती है कि यूनिवर्सल थर्मल क्लाइमेट इंडेक्स जो यह मापता है कि शरीर गर्मी को किस तरह महसूस करता है। इन महीनों में लगातार उच्च स्तर पर दर्ज हो रहा है। यानी, भले ही पारा चरम तक न पहुंचे, लेकिन उमस और तापीय तनाव इतना अधिक हो जाता है कि लोग बीमार पड़ जाते हैं या मौत का शिकार हो जाते हैं।
दिल्ली में जून से अगस्त के बीच होने वाली “अज्ञात मौतों” का आंकड़ा बेहद डराने वाला है। 2019 में इस अवधि में 5,341 मौतें हुई थीं। यह संख्या 2022-24 के दौरान बढ़कर 11,819 तक पहुंच गई। जून का महीना सबसे खतरनाक साबित हो रहा है, जब लगातार सबसे ज्यादा मौतें दर्ज होती हैं।
2023 के लैंसेट काउंटडाउन की रिपोर्ट भी इस खतरे को रेखांकित करती है। इसमें कहा गया है कि 2000-2004 की तुलना में 2018-2022 के दौरान 65 वर्ष से ऊपर के बुजुर्गों में गर्मी से मौतों का आंकड़ा 85% तक बढ़ गया। रिपोर्ट चेतावनी देती है कि अगर वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ा, तो गर्मी से होने वाली मौतें 370% तक बढ़ सकती हैं। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में सबसे कमजोर और हाशिए पर खड़े लोग – यानी बेघर – हीट वेव का सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। ग्रीनपीस रिपोर्ट बताती है कि 11 से 19 जून 2024 के बीच महज 9 दिनों में 192 बेघर लोगों की मौत हीट स्ट्रोक से हुई। यह पिछले दो दशकों में सबसे बड़ा आंकड़ा है।
ये आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि शहर में व्यवस्थागत विफलता है। यानी, सबसे कमजोर तबके को बचाने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई। राहत शिविर, ठंडे पानी की उपलब्धता, आश्रय गृह या चिकित्सा सुविधाएं पर्याप्त नहीं रहीं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2022 के आंकड़े भी बताते हैं कि हाल के वर्षों में देशभर में 9% से अधिक मौतें हीट या सन स्ट्रोक से जुड़ी हुई हैं। इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित आयु वर्ग 30 से 60 साल का है। यानी, यह समस्या सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं, बल्कि कामकाजी आबादी को भी अपनी चपेट में ले रही है। रिपोर्ट यह भी संकेत देती है कि गर्मी का असर अब मानसून सीजन तक खिंच गया है। पहले जहां मानसून के आते ही गर्मी से राहत मिलती थी, वहीं अब जुलाई और अगस्त जैसे महीने भी तपिश और उमस से भरपूर महसूस होते हैं।
यह बदलाव जलवायु संकट का एक खतरनाक संकेत है। दिल्ली की तपती गर्मी अब सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बन चुकी है। हर साल बढ़ते आंकड़े इस बात का प्रमाण हैं कि जलवायु परिवर्तन अब हमारे दरवाजे पर दस्तक नहीं दे रहा, बल्कि अंदर प्रवेश कर चुका है। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में राजधानी ही नहीं, बल्कि पूरे देश को हीट वेव से होने वाली मौतों का खामियाजा भारी कीमत पर चुकाना होगा