kajal soni
दिल्ली में 5 फरवरी 2025 को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी माहौल पूरी तरह से गरमाया हुआ है। पिछले कुछ महीनों में राजनीतिक समीकरणों में तेज बदलाव देखे गए हैं, खासकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच गठबंधन को लेकर। आठ महीने पहले दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते दोस्ती के थे, लेकिन अब सियासी दरारें सामने आ रही हैं। राहुल गांधी, जो लोकसभा चुनाव 2024 में अरविंद केजरीवाल के समर्थन में थे, अब उन्हीं पर तीखे हमले कर रहे हैं। इस बदलाव ने दिल्ली की राजनीति को नए मोड़ पर ला खड़ा किया है, और यह सवाल उठता है कि यह बदलाव राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है या सत्ता के नए गणित का परिणाम?
दोस्ती से दुश्मनी तक का सफर
2023 में जब केंद्र सरकार को चुनौती देने के लिए विपक्षी दलों ने मिलकर ‘इंडिया’ गठबंधन बनाया, तब राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल एक मंच पर थे। दोनों नेताओं ने केंद्र की नीतियों की कड़ी आलोचना की और लोकसभा चुनाव 2024 में दिल्ली में सीटों के बंटवारे पर सहमति बनाई। राहुल गांधी ने खुले तौर पर कहा था कि वे केजरीवाल को वोट देंगे, और बदले में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता कांग्रेस का समर्थन करेंगे। ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच एक मजबूत गठबंधन बन सकता है। लेकिन चुनावी नतीजों के बाद समीकरण बदल गए। कांग्रेस और आप दोनों ही दिल्ली में अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन करने में सफल हो पाए, जिसके बाद कांग्रेस ने दावा किया कि उसके कार्यकर्ताओं ने आप का समर्थन किया, लेकिन बदले में आम आदमी पार्टी ने किसी तरह का सहयोग नहीं किया। यही बात दोनों दलों के रिश्तों में दरार का कारण बनी।
क्यों बदले कांग्रेस के तेवर?
दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन शुरुआत से ही मजबूरी था, न कि स्वाभाविक मेल। आम आदमी पार्टी दिल्ली में सत्ता में है, जबकि कांग्रेस बीते कई वर्षों से संघर्ष कर रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद पार्टी को एहसास हुआ कि अगर उसने विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का समर्थन जारी रखा, तो पार्टी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। कांग्रेस की नीतियों में बदलाव और नए राजनीतिक समीकरणों के तहत पार्टी ने अलग राह चुनने का फैसला किया। इसी के तहत कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल पर सीधा हमला करने के लिए राहुल गांधी को मोर्चे पर उतारने का निर्णय लिया। राहुल गांधी के भाषणों में अब भाजपा से ज्यादा अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी निशाने पर हैं।
केजरीवाल पर सीधा वार
राहुल गांधी के तीखे हमले ने दिल्ली की राजनीति में हलचल मचा दी है। 31 जनवरी 2025 को दिए अपने भाषण में उन्होंने अरविंद केजरीवाल को झूठा, भ्रष्टाचारी और दलित-पिछड़ा विरोधी बताया। उन्होंने यह भी कहा कि केजरीवाल ने सिर्फ झूठे वादों के जरिए जनता को ठगा है। यह वही राहुल गांधी हैं जिन्होंने 2015 में केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद इसे लोकतंत्र की हत्या बताया था, लेकिन अब वही कांग्रेस नेता उनके भ्रष्टाचार पर खुलेआम हमला कर रहे हैं। इस बयान ने यह साबित कर दिया कि कांग्रेस अब पूरी तरह से अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी है।
संदीप दीक्षित को मैदान में उतारने का बड़ा संदेश
कांग्रेस ने अपने चुनावी रणनीति के तहत एक बड़ा दांव खेलते हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को मैदान में उतारा है। संदीप दीक्षित का दिल्ली की राजनीति में गहरा प्रभाव है, और उनकी पहचान शीला दीक्षित के कार्यकाल में शहर में हुए विकास कार्यों से जुड़ी हुई है। कांग्रेस के इस कदम से यह साफ हो गया कि पार्टी अब पूरी ताकत से आम आदमी पार्टी को चुनौती देने के मूड में है। संदीप दीक्षित के चुनावी मैदान में उतरने से यह संदेश भी दिया गया है कि कांग्रेस दिल्ली की सियासत में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है।
भा.ज.पा. के लिए क्या मायने रखता है यह झगड़ा?
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच यह सियासी लड़ाई भाजपा के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। अगर दोनों पार्टियां एकजुट होतीं, तो भाजपा को गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ता। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। दोनों दलों के बीच दरार का फायदा भाजपा उठाने में लगी है। भाजपा यह जानती है कि यदि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन टूटता है, तो वह दिल्ली में अपनी स्थिति को मजबूत कर सकती है। इस समय भाजपा को यह अवसर मिल सकता है कि वह अपने वोट बैंक को और भी मजबूत करे और दिल्ली की राजनीति में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराए।
जनता का क्या रुख?
दिल्ली के मतदाता अब इस राजनीतिक घटनाक्रम पर असमंजस में हैं। कुछ का मानना है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का अलग-अलग लड़ना भाजपा के लिए फायदे का सौदा हो सकता है, जबकि कुछ का मानना है कि कांग्रेस का अलग लड़ना लोकतंत्र के लिए बेहतर है, क्योंकि इससे विपक्ष और भी मजबूत होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली के मतदाता इस चुनावी लड़ाई में किसे चुनते हैं।
क्या फिर बदलेगी रणनीति?
राजनीति में कुछ भी स्थिर नहीं रहता, और किसी भी पार्टी की रणनीति बदल सकती है। जिस तरह से आठ महीने पहले राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल एकजुट थे, वैसे ही भविष्य में यह समीकरण फिर से बदल सकते हैं। फिलहाल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के रिश्तों में कड़वाहट चरम पर है और इसका सीधा असर दिल्ली विधानसभा चुनाव पर पड़ने वाला है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की यह सियासी जंग किस करवट बैठती है और इसका फायदा किसे मिलता है—भा.ज.पा., कांग्रेस, आम आदमी पार्टी या फिर किसी और को।