
लखनऊ : ज़्यादातर दंपत्ति अपनी माता पिता बनने की यात्रा धैर्य और एक भरोसे के साथ शुरू करते हैं कि ‘सब अपने आप हो जाएगा।’ शुरुआत में यह सोचना बिल्कुल स्वाभाविक लगता है, लेकिन जब वो इंतज़ार लम्बा हो जाए और तब भी लगातार उम्मीद करना, वो मुश्किल को बढ़ा सकता है। आपकी प्रजनन क्षमता के बारे में साफ़-साफ़ जानना, सिर्फ़ अनुमान लगाने और अच्छे की उम्मीद करने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। डॉ. श्रेया गुप्ता, फर्टिलिटी विशेषज्ञ, बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ, लखनऊ का कहना है कि फर्टिलिटी की जाँच करवाने का मतलब यह नहीं है कि आप प्राकृतिक गर्भधारण की उम्मीद छोड़ रहे हैं; बल्कि इससे आप उसी कोशिश को ज़्यादा समझदारी और सही दिशा के साथ कर पाते हैं।
समय क्यों महत्वपूर्ण है
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कितने दंपत्ति दो, तीन, यहाँ तक कि पाँच साल तक खुद से कोशिश करने के बाद ही फर्टिलिटी क्लिनिक तक पहुँचते हैं। आँकड़े भी यही बताते हैं: इनफर्टिलिटी से जूझ रहे दंपत्तियों पर हुए एक अध्ययन में पाया गया कि मेडिकल निदान मिलने से पहले औसतन 3.2 साल बीत जाते हैं, जिनमें लगभग 2 साल केवल अपने स्तर पर गर्भधारण की कोशिश में निकल जाते हैं। जैविक रूप से यह समय बहुत मायने रखता है बढ़ती मातृत्व आयु और अंडाणु में अण्डों की घटती संख्या, उम्र से प्रभावित होते शुक्राणु, थायरॉइड या मेटाबॉलिज़्म में बदलाव, या एंडोमेट्रियोसिस और बंद ट्यूब जैसी छिपी समस्याएँ ये सब चुपचाप आगे बढ़ती रहती हैं।
ऐसी समस्याएँ बिना फर्टिलिटी जाँच के दिखाई नहीं देतीं। इसलिए सामान्य तौर पर यह समझदारी है कि अगर कोई दंपत्ति लगभग 12 महीने तक नियमित, असुरक्षित संबंध के बावजूद गर्भधारण नहीं कर पा रहा हो (और अगर महिला की उम्र 35 वर्ष या उससे अधिक हो तो 6 महीने में ही), तो विशेषज्ञ की मदद ज़रूर लेनी चाहिए।
‘स्वाभाविक प्रयास’ किन बातों को छिपा देता है
जब दंपत्ति बिना किसी जाँच के ही गर्भधारण की कोशिशें जारी रखते हैं, तो अक्सर वे उन छिपी हुई दिक्कतों को पहचान ही नहीं पाते जो रास्ते में रुकावट बन रही होती हैं। कई फर्टिलिटी समस्याएँ तो किसी भी तरह के साफ़ संकेत या चेतावनी के बिना ही चुपचाप बढ़ती रहती हैं।
● फैलोपियन ट्यूब का ब्लॉक होना, जिससे अंडाणु और शुक्राणु का मिलना ही नहीं हो पाता
● ओव्यूलेशन की गड़बड़ियाँ, जिनके कोई साफ लक्षण नज़र नहीं आते
● शुक्राणु से जुड़ी समस्याएँ, जैसे कम गति या असामान्य आकार
● गर्भाशय की दिक्कतें, जैसे पॉलिप या फाइब्रॉइड
● थायरॉइड गड़बड़ी, इंसुलिन रज़िस्टेंस या बढ़ा हुआ प्रोलैक्टिन
● अंडाणु में अण्डों की कम संख्या, भले ही मासिक धर्म बाहर से बिल्कुल सामान्य लगे
अक्सर फर्टिलिटी विशेषज्ञों का यह अनुभव है कि जब तक कोई दंपति पहली बार क्लिनिक तक पहुँचता है, तब तक वे समस्याएँ, जिन्हें शुरू में साधारण इलाज से संभाला जा सकता था, अब अधिक जटिल और उन्नत उपचार की मांग करने लगती हैं। इसका सीधा असर सफलता की दर, लागत और शारीरिक बोझ – तीनों पर पड़ता है।
शुरुआती जाँच परिदृश्य कैसे बदल देती है
जब कोई दंपत्ति फर्टिलिटी जाँच करवाता है जैसे एएमएच टेस्ट, वीर्य परीक्षण, अल्ट्रासाउंड, थायरॉइड की जाँच तो वे प्राकृतिक गर्भधारण को छोड़ नहीं रहे होते, बल्कि उसके लिए खुद को सबसे बेहतर मौका दे रहे होते हैं। शुरुआती जाँच से उन कारणों की पहचान हो जाती है जिन्हें ठीक किया जा सकता है, चाहे वह साधारण हार्मोनल गड़बड़ी हो या लाइफ़स्टाइल से जुड़ी समस्या। साफ़ जानकारी मिलने पर दंपत्ति यह भी समझदारी से तय कर पाते हैं कि उन्हें किसी इलाज की ज़रूरत है या नहीं।
एक व्यावहारिक दृष्टिकोण
‘खुद से कोशिश करना’ और ‘जाँच करवाना’ दो अलग-अलग रास्ते नहीं हैं। ये एक-के-बाद-एक उठाए गए कदम हो सकते हैं, जहाँ दूसरी कड़ी सही समय पर शुरू हो, ताकि जब भी मदद की ज़रूरत पड़े, वह सही समय पर मिले।














