देहरादून। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से गुरूवार को अमर शहीद श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस पर उनकी शहादत को याद किया गया। इस दौरान एक काव्य पाठ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सुमन सुधा पत्रिका के 2024 के वार्षिक अंक का अनावरण भी किया गया। साहित्यकार डॉ. मुनिराम सकलानी ने श्रीदेव सुमन के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उन्हें स्वाधीनता आन्दोलन के दौर में राजशाही का प्रतिरोध करने वाला एक महान क्रान्तिकारी बताया।
डॉ. अतुल शर्मा ने अपनी चिर परिचित ओजपूर्ण स्वर में इस कविता को सुनाकर श्रोताओं में जोश भर दिया। “एक उठता हुआ बस चरण चाहिए, जयगीतों का वातावरण चाहिए। ये कला ही उठाती है आवाज को, आसमां को झुकाने का दम चाहिए। ये रसोई भी रोई है सदियों तलक, शब्द के बर्तनों में वजन चाहिए। साहित्यकार डॉ. राजेश पाल ने अपनी कविता ‘पानी हूँ’ की पंक्तियां इस तरह सुनाईं पानी हूं, आग लग जाती है मेरे भी भीतर, मेरी धार पत्थर को काटती है। पानी हूँ मुझमें खेलो पर मुझसे मत करो खिलवाड़ मेरी धार पत्थर को काटती है।
उर्दू के सुपरिचित रचनाकार शादाब मशहदी ने अपनी रचना सुनाते हुए कहा नदियों की अविरल धारा को दुलराया, मैंने तटबंधों का गीत नहीं गाया, जिनसे होती हों स्वतंत्रताएं बाधित ऐसे प्रतिबंधों को मैंने ठुकराया। कवि नीरज नैथानी ने अपनी कविता सुनाते हुए कहा कि लिखूंगा बेशक बदस्तूर बेइंतहा बेहिसाब लिखूंगा मैं, नश्तर नोक, नमक, तेजाब लिखूंगा। वो समझते हैं हौंसले पस्त हैं मेरे, मैं हूं सिपाही कलम का रोज इंकलाब लिखूंगा। इसके बाद अपनी चुटीले अन्दाज में कवि विनीत पंछी ने भी अपनी जोशपूर्ण कविता सुनाकर श्रोताओं की खूब वाहवाही बटोरी। काव्य पाठ के बाद 15 मिनट की अवधि की फिल्म भी दिखाई गई।
कार्यक्रम में प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने स्वागत किया और कार्यक्रम का संचालन निकोलस हॉफलैंड ने किया। इस अवसर पर डॉ.नंद किशोर हटवाल, रविन्द्र जुगरान, शिव मोहन सिंह, शैलेंद्र नौटियाल, शिव जोशी, अम्मार नक़वी, गणनाथ मनोडी, डॉली डबराल, सत्यानन्द बडोनी और सुंदर सिंह बिष्ट, राकेश कुमार व अवतार सिंह आदि मौजूद रहे।