
- रिटायर्ड महिला कर्मचारी के 7000 के बिल मेडिकल रीइंबर्समेंट से हटाए
- बेटे ने की शिकायत, बोला- विभाग के कर्मचारी ही उनका शोषण कर रहे हैं
लखीमपुर खीरी। नगर पालिका परिषद लखीमपुर खीरी में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। नगर पालिका में रिकॉर्ड कीपर के पद पर कार्यरत रहीं और वर्ष 2019 में सेवानिवृत्त हुईं किरण बाला जौहरी को अपने मेडिकल रीइंबर्समेंट के लिए विभागीय अनदेखी और भ्रष्टाचार का शिकार होना पड़ा।
जानकारी के अनुसार, कुछ समय पूर्व किरण बाला जौहरी का हाथ टूट गया था, जिसके चलते उन्हें सर्जरी करानी पड़ी। इलाज के बाद उन्होंने अस्पताल के बिल और अन्य आवश्यक दस्तावेजों के साथ रीइंबर्समेंट की फाइल नगर पालिका कार्यालय में जमा की। नियमों के तहत यह प्रक्रिया अधिकतम 10–15 कार्यदिवसों में पूरी होनी चाहिए थी, लेकिन फाइल कई हफ्तों तक लंबित पड़ी रही।
सहायक लिपिक पर रिश्वतखोरी और दस्तावेज हटाने का आरोप –
परिवार का आरोप है कि नगर पालिका में तैनात लिपिक प्रहलाद ने जानबूझकर फाइल को रोककर रखा और परोक्ष रूप से सुविधा शुल्क (रिश्वत) की मांग की। जब किरण बाला जौहरी के परिजनों ने इस देरी का कारण पूछा और फाइल अग्रसारित करने का दबाव डाला, तब लिपिक ने फाइल से ₹7000 के आसपास के मेडिकल बिल निकाल दिए और अधूरी फाइल को सीएमओ (मुख्य चिकित्सा अधिकारी) कार्यालय भेज दिया।
इस घटना ने रिटायर्ड कर्मचारियों के साथ होने वाले व्यवहार और नगर पालिका में व्याप्त अव्यवस्था को उजागर कर दिया है। किरण बाला के पुत्र अभिषेक जौहरी ने बताया कि उन्होंने मामले को मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर दर्ज करा दिया है और जिलाधिकारी कार्यालय में भी लिखित शिकायत देने की तैयारी कर रहे हैं।
“एक रिटायर्ड महिला कर्मचारी को अपने हक के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है”
अभिषेक जौहरी ने कहा, “मेरी मां 2019 में ईमानदारी से सेवा करके रिटायर हुईं। आज जब उन्हें इलाज के खर्च की वापसी की जरूरत है, तो विभाग के कर्मचारी ही उनका शोषण कर रहे हैं। फाइल से बिल निकाल देना और जानबूझकर देरी करना बहुत गंभीर मामला है। यह साफ दर्शाता है कि विभाग में व्यवस्था पूरी तरह भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है।”
नगर पालिका लिपिक का नहीं उठा फ़ोन –
मामले को लेकर जब नगर पालिका के लिपिक प्रह्लाद बाबू से उनके फोन पर संपर्क किया गया, तो उनका फोन नहीं उठा। वहीं, सूत्रों की मानें तो यह कोई पहला मामला नहीं है—पूर्व में भी रीइंबर्समेंट फाइलों को लेकर ऐसी शिकायतें मिल चुकी हैं, लेकिन किसी पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई।