कांग्रेस का भाजपा सरकार पर आरोप : पहले अच्छी योजना का विरोध करो, बदनाम करो और फिर जनता के दबाव में नीतियों अपना लो

नई दिल्ली। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का मुद्दा भाजपा न सिर्फ हथिया चुकी है बल्कि विपक्ष पर लगातार हमले भी कर रही है। इसी कड़ी में कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाया है। कांग्रेस का कहना है कि पहले तो भाजपा सरकार अच्छी योजना का विरोध करती है, उन्हें बदनाम करती है और फिर जनता के दबाव उन्हीं नीतियों को अपना लेती है।

कांग्रेस महासचिव (प्रभारी संचार) जयराम रमेश ने एक्स पर बोला कि मोदी सरकार के पास न तो अपना कोई दृष्टिकोण है और न समस्याओं को हल करने की कोई दिशा है। वह केवल जनता का ध्यान भटकाने, वास्तविक मुद्दों से भागने और अपने विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने में माहिर है।
उन्होंने एक्स पर कहा कि इसके अलावा उनके पास न तो कोई नीति है और न ही कोई नीयत, केवल झूठ, दुष्प्रचार और नफरत की राजनीति है।

रमेश ने कहा जाति जनगणना-जिसे मोदी सरकार ने बरसों तक दबाने की कोशिश की-आखिरकार विपक्ष के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी और असंख्य सामाजिक कार्यकर्ताओं, संगठनों की अडिग लड़ाई के आगे वह झुक गई। यह सामाजिक न्याय की लड़ाई में एक अहम पड़ाव है।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार, जो कल तक इसके नाम से भी कतराती थी और उपहास उड़ाने, टालमटोल करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी। आज जनता के भारी दबाव और विपक्ष के संघर्ष के आगे झुककर जाति जनगणना कराने पर राजी हो गई है। रमेश ने कहा, असल में यही बीजेपी सरकार का ‘पैटर्न’ रहा है। पहले हर अच्छी योजना या नीति का विरोध करो, उसे बदनाम करो… और जब जनता का दबाव और हकीकत का सामना करना पड़े तो उसी नीति को अपना लो।

कांग्रेस नेता ने याद दिलाते हुए कहा… मनरेगा को लेकर प्रधानमंत्री ने संसद में क्या कहा था- ‘विफलता का स्मारक’। जिस योजना को दुनिया ने ग्रामीण रोजगार और गरीबी उन्मूलन का एक मॉडल कहा, उसी मनरेगा का मजाक उड़ाया गया, कहा गया कि लोग गड्ढे खोद रहे हैं। लेकिन जब कोविड-19 महामारी जैसी आपदा आई तो यही मनरेगा देश के गरीबों की रीढ़ बन गयी। तब क्या हुआ? सरकार ने इसका बजट भी बढ़ाया और खुद इसका श्रेय लेने की कोशिश भी की। रमेश ने कहा कि ऐसा ही ‘आधार’ के साथ हुआ। उन्होंने कहा कि जब बीजेपी विपक्ष में थी तब यही कहती थी कि ‘यह निजता के लिए खतरा है और सिर्फ एक ‘राजनीतिक स्टंट’ है’, लेकिन सत्ता में आते ही उसी आधार को पूरे कल्याणकारी तंत्र की नींव बना दिया। रमेश ने कहा, जीएसटी की कहानी भी अलग नहीं है। कांग्रेस ने जब जीएसटी लाने की पहल की तो बीजेपी ने इसका जोरदार विरोध किया, कहा कि यह राज्यों के हितों के खिलाफ है। लेकिन सत्ता में आते ही, बिना बड़े बदलाव के, इसे लागू कर दिया और फिर इसे ‘गेम चेंजर’ बताकर वे खुद की वाहवाही करने लगे।’ उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) की व्यवस्था कांग्रेस ने बनाई थी ताकि सब्सिडी सीधे जनता के खाते में पहुंचे। रमेश ने कहा, ‘उस समय बीजेपी ने इसे नकारा था और कहा था, ‘यह चलेगा नहीं।’ लेकिन सत्ता में आते ही पूरे देश में इसी डीबीटी को लागू किया और ‘डिजिटल इंडिया’ का ढोल पीटने लगे।’ रमेश ने कहा कि महिलाओं को नकद सहायता देने की नीति कांग्रेस ने शुरू की थी। उन्होंने कहा, बीजेपी ने तब कहा था-‘ये तो बस घोषणाओं की राजनीति है।’ आज वही सरकार महिलाओं के लिए अलग-अलग नकद हस्तांतरण योजनाएं चला रही है।

इंटर्नशिप..अप्रेंटिसशिप स्कीम के बारे में उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव के अपने ‘न्यायपत्र’ में युवा न्याय के तहत ‘अप्रेंटिसशिप स्कीम’ का वादा किया था।
रमेश ने कहा, ‘चुनाव के दौरान बीजेपी ने उस पर भी तंज कसा था। लेकिन बाद में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में इसकी घोषणा की। अफसोस, आज तक वह भी सिर्फ घोषणा बनकर ही रह गई है।’ उन्होंने कहा कि यह लिस्ट (सूची) यहीं खत्म नहीं होती… असल में यह तो बस, कुछ उदाहरण भर हैं। कांग्रेस ने दावा किया कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग के मद्देनजर जाति जनगणना के सरकार के फैसले को ‘ध्यान भटकाने की रणनीति’ बताया।
रमेश ने कहा था कि इस फैसले को लेकर कई सवाल उठते हैं, खासकर सरकार की मंशा पर। उन्होंने पूछा कि जनगणना कराने की ‘समय सीमा क्यों नहीं बताई गई है’। केंद्र ने बुधवार को घोषणा की कि जातिगत गणना अगली जनगणना का हिस्सा होगी, जिसके तहत आजादी के बाद पहली बार जाति विवरण शामिल किया जाएगा। कांग्रेस समेत विपक्षी दल देश भर में जाति जनगणना की मांग कर रहे थे और इसे एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना रहे थे। बिहार, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने इस तरह के सर्वेक्षण किए हैं। राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा लिए गए फैसले की घोषणा करते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि जनगणना केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आती है, लेकिन कुछ राज्यों ने सर्वेक्षण के नाम पर ‘गैर-पारदर्शी’ तरीके से जाति गणना की है, जिससे समाज में संदेह पैदा हुआ है।

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