
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव 2025 से पहले ही इंडिया गठबंधन (Indian National Developmental Inclusive Alliance) बिखरता नजर आ रहा है। लोकसभा चुनाव-2024 में भाजपा को हराने के लिए बने इस महागठबंधन की नींव भी हिल चुकी है। अब बिहार में इंडिया गठबंधन नहीं बल्कि ‘एकला चोल रे’ की राजनीति देखी जा रही है। राजद और कांग्रेस दोनों ही पार्टी अलग-थलग राह पर चल पड़ी हैं।
बिहार में कांग्रेस पार्टी अब खुद अपनी दिशा निर्धारित करने में लगी हुई है और कई राज्यों में अकेले चुनाव लड़ने के संकेत दे रही है। खासतौर पर बिहार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का अलग रास्ता अपनाने की वजह से यह स्थिति और भी जटिल हो गई है।
बिहार में एकला चलो की राह पर कांग्रेस
बिहार में कांग्रेस के सहयोगी दलों के साथ बढ़ते मतभेद और उसकी रणनीतिक स्थिति को लेकर सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनावों में अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। एक महत्वपूर्ण कदम था कन्हैया कुमार की एंट्री, जो बिहार के पहले चर्चित नेता रहे हैं और जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेता रहे हैं। उनकी इस एंट्री से कांग्रेस यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वह अपनी रणनीति पर खुद का नियंत्रण चाहती है और किसी भी प्रकार के समझौते के लिए तैयार नहीं है, खासतौर पर उन दलों के साथ जो कांग्रेस को कमजोर करने के लिए उसकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हैं।
कांग्रेस का यह कदम बिहार के सहयोगी दलों को यह संदेश देता है कि वह अकेले चुनाव लड़ने में सक्षम है और किसी भी स्थिति में अपने आधार को कमजोर नहीं होने देगी। कांग्रेस ने अपने सहयोगी दलों को यह भी संकेत दिया है कि वह चुनावी रणनीतियों में खुद की प्राथमिकता तय करना चाहती है, ताकि भविष्य में पार्टी को अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिले।
बिहार में कांग्रेस की स्थिति विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य में महागठबंधन की प्रमुख पार्टी आरजेडी (राजद) है। हालाँकि, कांग्रेस का कन्हैया कुमार के जरिए नए चेहरे को प्रोत्साहित करना, खासतौर पर एक ऐसे राज्य में जहां बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दल एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं, यह दिखाता है कि कांग्रेस अपने सहयोगी दलों को और आगे बढ़ने के लिए चुनौती दे रही है। कांग्रेस अब यह संकेत दे रही है कि पार्टी खुद को किसी भी गठबंधन में कमजोर नहीं होने देना चाहती है और अपने चुनावी क्षेत्र में स्थिति मजबूत करने के लिए खुद ही निर्णायक भूमिका निभाना चाहती है।
कांग्रेस का बिहार में कन्हैया कुमार के जरिए इन कदमों को उठाने का उद्देश्य यह हो सकता है कि वह अपने भविष्य की योजनाओं में खुद को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाए। यदि कांग्रेस बिहार में अच्छा प्रदर्शन करती है, तो इससे न केवल उसकी स्थिति मजबूत होगी बल्कि अन्य राज्यों में भी उसकी ताकत बढ़ेगी, जहां पार्टी के प्रदर्शन को लेकर आशंका जताई जा रही है।
इस कदम से यह भी साफ हो रहा है कि कांग्रेस अपनी रणनीति में बदलाव करने की तैयारी कर रही है और बीजेपी को सीधे टक्कर देने के लिए अपनी ताकत को मजबूत करना चाहती है। यही वजह है कि कांग्रेस बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य में अपने रास्ते पर चलने का फैसला ले रही है, ताकि वह पूरे विपक्षी गठबंधन को एक संदेश दे सके कि वह अपनी दिशा खुद तय करने के लिए तैयार है।
कांग्रेस का बिहार विधानसभा चुनाव के जरिए अपने सहयोगी दलों को यह संदेश देना कि वह अकेले भी चुनावी मैदान में उतने ही सक्षम हैं, एक प्रकार से यह दर्शाता है कि वह अपने सहयोगी दलों के साथ सख्त रुख अपना रही है। इसका उद्देश्य महज चुनावी हितों से परे, पार्टी की आत्मनिर्भरता और नेतृत्व क्षमता को मजबूत करना है। अगर यह कदम सफल होता है, तो कांग्रेस का आत्मविश्वास और भी बढ़ेगा, लेकिन अगर इस रास्ते में उसे नुकसान होता है, तो विपक्षी गठबंधन में दरारें और गहरी हो सकती हैं।