बादल फटा या जलवायु परिवर्तन? धराली-चसोटी आपदा पर गहराया रहस्य…वैज्ञानिकों की पड़ताल जारी

नई दिल्ली । हिमालयी इलाकों में हमेशा आपदाएं आती रहती हैं, लेकिन इस बार हालात ज्यादा डरावने लग रहे है। सिर्फ नौ दिनों के अंतर में दो जगह उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का धराली गांव और जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ का चसोटी गांव, अचानक आई तेज बाढ़ से तबाह हुए। ये दोनों गांव भले ही सैकड़ों किलोमीटर दूर हों, लेकिन दोनों ही जगहों पर लोगों की जिंदगी और कमाई का जरिया करीब एक जैसा ही है। यहां लोग तीर्थयात्रा और सेब व अखरोट की खेती पर निर्भर रहते हैं। लेकिन अचानक आई बाढ़ ने कुछ ही मिनटों में इनके मंदिर, पुल और खेत सब तबाह कर दिए।

हालांकि, सवाल उठता है कि जब ये दोनों गांव एक-दूसरे से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं, तो दोनों ही जगहों पर एक जैसी त्रासदी कैसे आई? जानकारों का मानना है कि यह सिर्फ बादल फटने से नहीं हुआ है, बल्कि यह ग्लेशियर झील के फटने जैसी बड़ी आपदा हो सकती है।
धराली (उत्तरकाशी): 5 अगस्त को आई बाढ़ ने गांव को तहस-नहस कर दिया। एक की मौत हुई और 68 लोग लापता हुए। इस वजह से गंगोत्री की यात्रा रोकनी पड़ी।

चसोटी (किश्तवाड़): 14 अगस्त को अचानक बाढ़ आई, जिस वजह से गांव के मंदिर और खेत चंद मिनटों में बह गए। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि करीब 70 लोगों की मौत हुई और करीब इतने ही लोग लापता हैं।

आम तौर पर इसतरह के हादसों को “बादल फटना” कहकर लोगों को समझा दिया जाता है। लेकिन इस बार मौसम विभाग के आंकड़े अलग कहानी बता रहे हैं।

धराली में हुई तबाही को लेकर मौसम विभाग ने बताया कि उस दिन बहुत हल्की बारिश हुई थी। इतनी कम बारिश से इतनी बड़ी बाढ़ आना संभव नहीं। वहीं, चसोटी जिले में करीब 4–5 मिमी हल्की बारिश दर्ज हुई। यह बाढ़ लाने के लिए पर्याप्त नहीं थी। इसलिए इस विरोधाभास ने वैज्ञानिकों को सोचने पर मजबूर किया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि ये आपदाएं “ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड यानी ग्लेशियर की झील फटने से आई होंगी। जब पिघलते ग्लेशियरों की झीलें या कमजोर बर्फ/मलबे की दीवार टूट जाती है, तब अचानक पानी और चट्टानों का बड़ा सैलाब नीचे की ओर आता है। दोनों जगहों पर भारी-भरकम चट्टानों और बड़े-बड़े पत्थरों का बहकर आना इस बात का संकेत देता है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में कई खतरनाक ग्लेशियर झीलों की पहचान की है। लेकिन निगरानी बहुत सीमित है और चेतावनी ज्यादातर प्रभावित गांवों तक नहीं पहुंच पाती। डॉप्लर रडार सिर्फ बारिश पकड़ सकते हैं, ग्लेशियर टूटने या ढलान खिसकने का अंदाजा नहीं लगा सकते।

वहीं केंद्र सरकार यहां पर भी बड़े-बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट ला रही है, जैसे पड्दर–जांस्कर सड़क की योजना, जो जम्मू को लद्दाख से जोड़ेगी। इसतरह चसोटी–मचैल–सूमचन–जोंगखुलम तक 45 किमी सड़क बनाने का प्रस्ताव है। इसके अलावा, 31 किमी सड़क मंजूर हुई है और साथ ही 8 किमी सुरंग की योजना भी शामिल है।

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