
बच्चे के सीखने में परिस्थितियों (और कुछ जन्मजात क्षमताओं) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अगर परिस्थितियाँ सीखने के अनुकूल हैं, तो बच्चा बेहतर ढंग से सीख पाएगा, और प्रतिकूल परिस्थितियाँ होने पर उसका सीखना कठिन होगा। बच्चों के सीखने-सिखाने के दौरान कक्षा में विविध तरह की स्थितियाँ देखने को मिलती हैं, जिनमें बच्चे आपस में बात कर रहे हैं, चुपचाप शिक्षक को सुन रहे हैं, शिक्षक के पीछे-पीछे दोहरा रहे हैं, बोर्ड से कॉपी कर रहे हैं, चुपचाप अकेले पढ़ रहे हैं आदि। इनमें कुछ स्थितियाँ सीखने के लिए अनुकूल होती हैं, जबकि कुछ सीखने में सहयोगी नहीं होतीं।
इसके अलावा भी बहुत-सी अन्य चीज़ें हैं जो बच्चे कक्षा में सीख रहे होते हैं, चाहे उन्हें सिखाने की शिक्षक की मंशा हो या न हो। ध्यान से विचार करने पर आप पाएँगे कि ‘सीखना’ या ‘अधिगम’ असल में वह सब कुछ है जो बच्चे का दिमाग अपने आप अनुभवों से आत्मसात कर लेता है।
सीखने के कुछ सामान्य सिद्धांत और सीखने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ
- कक्षा में दंड और भय रहित वातावरण का होना।
- कार्य को करने में बच्चे का शारीरिक रूप से समर्थ होना।
- पूर्व अनुभव या पूर्व-समझ को नए सीखने का आधार बनाना।
- सीखने में सहयोग देना (स्कैफोल्डिंग)।
- बच्चों को विविध तरह के समूहों में कार्य करने के अवसर देना।
- बच्चों के घर की भाषा और परिवेशीय अनुभव को शिक्षण में पूरी तवज्जो देना।
- सीखना-सिखाने की प्रक्रिया का सतत आकलन करते रहना।
- शिक्षाविद् बताते हैं कि सीखने के नाम पर तीन तरह की चीज़ें सीखी जाती हैं –
ज्ञान (Knowledge) – इसमें सारी समझ, बनावट, अवधारणाएँ, वर्णन, चीज़ों के अंतर्संबंध, बारीकियाँ आदि शामिल हैं।
दक्षताएँ (Skill) – इसमें सारे कौशल शामिल हैं, जैसे कैसे बोलें, कैसे पढ़ें, कैसे लिखें, ज्ञान का कैसे विश्लेषण या प्रयोग करें आदि।
मनोवृत्तियाँ (Attitude) – इनमें वे सभी वृत्तियाँ शामिल हैं जो किसी भी वस्तु, परिस्थिति या ज्ञान के बारे में मन में बन जाती हैं।
जो भावनाएँ हम लगातार महसूस करते हैं, वे हमारी मनोवृत्ति बन जाती हैं। अगर बच्चे को कक्षा में बोलने से बार-बार भय महसूस होता है, तो यह उसकी मनोवृत्ति के रूप में स्थापित हो जाएगा। बच्चे अक्सर ऐसी प्रवृत्तियाँ अचेतन रूप में आत्मसात कर लेते हैं, जैसे डर, तनाव, मज़ा, रुचि, उत्सुकता, बोरियत, पढ़ाई से चिढ़ आदि।
ज्ञान, क्षमताओं व मनोवृत्तियों के इस समूह को ASK (Attitude, Skills and Knowledge) कहा जाता है। यह शिक्षकों को सोचने में काफी मदद कर सकता है कि हम इन तीन वर्गों में से क्या सचेत रूप से सिखाना चाहेंगे या फिर बच्चे किसी विशेष शिक्षण गतिविधि में क्या सीख रहे होंगे।
यह बिल्कुल आवश्यक नहीं कि जो शिक्षक ने सोचा हो, बच्चे वही सीखें। अगर बच्चों को डर है कि ध्यान न देने पर उन्हें सज़ा मिलेगी, तो वे आसानी से सुनने का नाटक करना सीख लेते हैं। क्या आप ऐसी चीज़ें उन्हें सिखाना चाहेंगे? ज़ाहिर है, नहीं।
एक शिक्षक होने के नाते आप यह सोच सकते हैं कि यदि बच्चे ऐसी प्रवृत्तियाँ सीख लेते हैं जो मैंने जानबूझकर नहीं सिखाई, तो इनके लिए मैं कैसे ज़िम्मेवार हो सकता/सकती हूँ। सच बात तो यह है कि सीखने–सिखाने के मनोविज्ञान व सिद्धांत को समझकर हम ऐसे परिणामों को काफी हद तक कम कर सकते हैं, जो हम नहीं चाहते।
सुविख्यात शिक्षाविद् जॉन हॉल्ट ने एक बार छोटे बच्चों के बारे में कहा था,
“उनके लिए सीखना बिल्कुल साँस लेने जितना ही स्वाभाविक है।”
जीवन के पहले दो वर्षों में बच्चे इतनी चीज़ें सीख लेते हैं कि हमें हैरानी होती है। लेकिन जब तक वे स्कूल पहुँचते हैं, हम उन्हें इस प्रकार सीखने पर मजबूर कर देते हैं जो उनके जीवन से बिलकुल जुड़ा नहीं है, अमूर्त है और जड़ है।
बच्चों के सीखने के संदर्भ में कुछ सामान्य निष्कर्ष
- सीखना वह प्रक्रिया है जिसके ज़रिए हम नए अनुभव लेते हैं, अपने मस्तिष्क में अनुभवों को दर्ज करते हैं, और पुराने अनुभवों के साथ तुलना व विश्लेषण करके नई समझ बनाते हैं।
- हम हर समय कुछ-न-कुछ अनुभव कर ही रहे होते हैं; हम हर समय सीखते रहते हैं।
- बच्चों को ऐसे अनुभव मिलने चाहिए, जिनमें उन्हें कुछ करने, सोचने, अभिव्यक्त करने और चर्चा करने के अवसर मिलें।
- बच्चे तभी बेहतर सीखते हैं जब वे सीखने-सिखाने की प्रक्रिया से सक्रिय रूप से जुड़े हों।
- कक्षा में शिक्षण को बच्चों की दुनिया, उनके अनुभवों और सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश से जोड़ना चाहिए।
- बच्चों के सीखने का बहुत बड़ा हिस्सा दूसरों के ज़रिए आता है। बच्चों की आपस में और शिक्षक के साथ बातचीत, जोड़ों में और समूहों में काम करने के अवसर उनके सीखने को बढ़ावा देते हैं।
- कक्षा में खुशनुमा और सौहार्दपूर्ण वातावरण बच्चों के सीखने में बहुत मदद करता है।
- सभी बच्चे सीख सकें, इसके लिए शिक्षक को सीखने में संघर्ष कर रहे बच्चों पर अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
- बच्चों को सोचने, तर्क करने, कल्पना करने और अपनी बात कहने को प्रेरित करने के लिए कक्षा में चर्चा करना और खुले छोर वाले प्रश्न पूछना जैसी विधियाँ उपयोगी होती हैं।
- सतत आकलन शिक्षण के साथ चलने वाली तथा शिक्षण के प्रभाव का जायज़ा लेने वाली प्रक्रिया है। इससे शिक्षक को बच्चों के सीखने में कमियाँ पता चलती हैं। इसका लाभ तब मिलता है, जब बच्चों की कमियों पर तुरंत फ़ीडबैक दिया जाए और आवश्यकता अनुसार शिक्षण प्रक्रिया में बदलाव किया जाए।
अलीमुद्दीन खान, वरिष्ठ शैक्षणिक विशेषज्ञ
लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन (एलएलएफ), नई दिल्ली
(अलीमुद्दीन खान लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन (एलएलएफ) में वरिष्ठ शैक्षणिक विशेषज्ञ हैं। एलएलएफ एक गैर-लाभकारी संस्था है, जो बच्चों की बुनियादी शिक्षा में सीखने की समस्याओं को दूर करने के लिए काम करती है। अलीमुद्दीन खान पिछले करीब 25 वर्षों से पाठ्यक्रम और शिक्षण सामग्री बनाने, शिक्षकों की क्षमता बढ़ाने और साहित्य से जुड़े कामों में सक्रिय रहे हैं।)















