जलवायु परिवर्तन की मार से जूझते उत्तराखंड के पशुपालक!

जलवायु परिवर्तन

आज बात करेंगे एक ऐसे मुद्दे की जो न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन चुका है वो है जलवायु परिवर्तन। दरअसल जलवायु परिवर्तन से न सिर्फ केवल आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है, बल्कि उत्तराखंड के पशुपालकों की आजीविका भी संकट में पडती जा रही है. ये अपने आप में देश के लिए सबसे गंभीर मुद्दा बन गया है, ऐसे में मौजूदा सरकार भी असमंजस में है कि इस स्थिति से प्राकृतिक रुप से कैसे निपटा जा सकता है. ऐसे में दुनिया भर के सभी शोधकर्ताओं की अपनी – अपनी राय है। लेकिन प्रकृति की मार से आज तक कोई नही बच पाया है, इन आपदाओं ने न जाने कितने घरों को तबाह कर दिया है, कितने बच्चे अनाथ हो गए हैं।

हम बात करेंगे हिमालयी क्षेत्र में तापमान में वृद्धि की जहां अनियमित वर्षा और बर्फबारी की कमी ने पारंपरिक पशुचारण व्यवस्था को गहरे संकट में डाल दिया है। वहीं पर्वतीय जिलों में छोटे किसान और जनजातीय समुदाय, जो मुख्य रूप से पशुपालन पर निर्भर हैं, अब अपनी रोजी-रोटी को खतरे में देखते हुए नजर आते हैं.

वहीं सूत्रो के मुताबिक बताया जा रहा है कि वहां रह रहें स्थानीय लोग बहुत ज्यादा परेशान हैं, उनका कहना है की पहले जहां मई-जून तक बर्फ जमी रहती थी, अब मार्च में ही बर्फ पिघलने लगती है। इससे ऊंचाई वाले बुग्याल समय से पहले सूख रहे हैं, जिसके चलते चराई का समय कम हो गया है। चारे की कमी से पशु कमजोर हो रहे हैं, और गाय-बकरियों में हीट स्ट्रेस की समस्या बढ़ रही है। इससे दूध उत्पादन में कमी आई है और पशु बार-बार बीमार पड़ रहे हैं।

वहीं सूत्रो से मिली जानकारी के मुताबिक ये भी देखा गया है कि पारंपरिक जल स्रोत जैसे झरने और धाराएं या तो सूख गए हैं या अनियमित हो गए हैं। इससे पशुओं को पानी मिलना मुश्किल हो गया है, और चारे की खेती भी प्रभावित हो रही है। इसके अलावा, ओक के पेड़, जो चारे का प्रमुख स्रोत थे, अब जंगल की आग, सड़क निर्माण और अत्यधिक चराई के कारण कम हो रहे हैं।

चिंता की बात तो यह है कि गढ़वाली बकरी और पहाड़ी गाय जैसी देसी नस्लें, जो कठिन पहाड़ी जलवायु के लिए अनुकूल थीं, अब जलवायु परिवर्तन के कारण कमजोर हो रही हैं। कई किसान मुनाफे के लिए बाहरी नस्लों की क्रॉसब्रीडिंग कर रहे हैं, जिससे इन पारंपरिक नस्लों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।

बता दें की कुल मिलाकर भारी बारिश, भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाएं पशुओं को सीधे नुकसान पहुंचा रही हैं। कई चारागाह बह गए हैं, और रास्ते बंद होने से बाजार तक पहुंचना मुश्किल हो गया है। इससे पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है।

वहीं देखा गया है कि खाद्य की कमी के चलते भालू, तेंदुए और सूअर जैसे जंगली जानवर अब गांवों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे पशुओं को नुकसान हो रहा है। साथ ही, पानी और चारा लाने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों पर है, जिन्हें अब पहले से दोगुना समय देना पड़ रहा है।

तो क्या है इसका समाधान? कुछ अहम सुझाव हैं जिनका पालन कर कुछ हद तक समस्या से निपटा जा सकता है जैसे—आय विविधीकरण, बेहतर जल और चारा प्रबंधन, और पशुधन स्वास्थ्य के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली। इसके अलावा, नीतिगत समर्थन और सामुदायिक लचीलापन बढ़ाने की जरूरत है।

आइए, एक नजर डालते हैं इस चार्ट पर, जो दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन कैसे पशुधन और कृषि को प्रभावित कर रहा है।

यह चार्ट साफ दर्शाता है कि दूध उत्पादन से लेकर पशु स्वास्थ्य और चारे-पानी की कमी तक, जलवायु परिवर्तन का असर कितना व्यापक है। ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2021 के अनुसार, भारत उन दस देशों में शामिल है जो जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। ऐसे में, हमें सामूहिक प्रयासों की जरूरत है, चाहे वह नीतिगत बदलाव हों, सामुदायिक सहयोग हो, या फिर स्थायी प्रबंधन तकनीकों को अपनाना।

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