
पटना : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मतदाता ने साफ संदेश दिया है कि वह केवल जाति और सोशल मीडिया के चक्कर में नहीं फंसता। एनडीए गठबंधन अब 200 से अधिक सीटों पर बढ़त के साथ प्रचंड बहुमत की ओर बढ़ रहा है, जबकि महागठबंधन केवल 28 सीटों पर सीमित दिख रहा है।
जाति आधारित राजनीति को खारिज
चुनावी विश्लेषकों की सोच थी कि बिहार में वोट जाति पर आधारित होते हैं। लेकिन चुनावी नतीजों ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया। यादव बहुल 126 सीटों में महागठबंधन केवल 20 सीटें जीत सका, जबकि एनडीए ने इनमें से 102 सीटें हासिल कीं। वहीं, कथित ‘सन ऑफ मल्लाह’ मुकेश सहनी और पीके की पार्टी का प्रभाव नगण्य रहा।
एनडीए की जीत, महागठबंधन की हार नहीं
विशेषज्ञों का कहना है कि महागठबंधन में तालमेल की कमी थी और कई रणनीतिक निर्णय सही नहीं हुए। लेकिन जो नतीजे आए हैं, वह केवल महागठबंधन की हार नहीं, बल्कि एनडीए की जीत को दर्शाते हैं। पूरे चुनाव में एनडीए ने ‘जंगलराज बनाम सुशासन’ का मुद्दा उठाया और यह रणनीति कारगर साबित हुई।
बिहार का वोटर बदलाव चाहता है
मतदाता ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह सरकार बदलने के बजाय अपनी जिंदगी में सुधार चाहता है। महागठबंधन के जुमलों और नकारात्मक प्रचार के विपरीत एनडीए ने विकास, सुशासन और सकारात्मक बदलाव का संदेश दिया।
महिलाओं ने भी अपने फैसले से दिया संदेश
एनडीए की सरकार की महिलाओं के लिए योजनाओं ने सशक्त प्रभाव डाला। डेढ़ करोड़ महिलाओं को 10-10 हजार रुपये देने के अनुभव और वादा किए गए विकास ने तेजस्वी की 30 हजार की योजना के मुकाबले अधिक भरोसा बनाया।
सोशल मीडिया जाल में मतदाता नहीं फसा
पीके और अन्य सोशल मीडिया अभियान काफी दिखाई दे रहे थे, लेकिन बिहार के वोटरों ने इसे नजरअंदाज किया। वे सिर्फ वादों पर नहीं, बल्कि ठोस बदलाव और बेहतर जीवन के लिए मतदान करना चाहते हैं। पलायन, रोजगार और राज्य के विकास के मुद्दे वोटरों के लिए प्रमुख रहे।
इस प्रकार बिहार का मतदाता साफ कर चुका है कि उसका चुनाव किसी पार्टी या नेता के पक्ष या विपक्ष के आधार पर नहीं, बल्कि विकास, सुशासन और सकारात्मक बदलाव के आधार पर होता है।















