
- कोर्ट बोला- ऐसे राक्षसों को सभ्य समाज से दूर रखें
बुलंदशहर : बुलंदशहर जिले में 2016 की उस काली रात की याद आज भी रोंगटे खड़े कर देती है, जब नेशनल हाईवे-91 पर एक परिवार को बंधक बनाकर मां और उसकी 14 साल की नाबालिग बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। करीब साढ़े नौ साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद विशेष पॉक्सो कोर्ट ने आज सभी पांच दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। साथ ही प्रत्येक दोषी पर 1.81 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया, जिसमें से आधी राशि पीड़ित मां-बेटी को मुआवजे के रूप में दी जाएगी।
विशेष पॉक्सो न्यायाधीश ओपी वर्मा ने सजा सुनाते हुए कहा कि ऐसे राक्षसों को सभ्य समाज से दूर रखा जाना जरूरी है। कोर्ट ने इस जघन्य अपराध की गंभीरता को देखते हुए कठोर सजा सुनाई। पीड़ित परिवार ने हालांकि फांसी की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने उम्रकैद को उचित ठहराया। सजा सुनाए जाने के बाद दोषियों ने खुद को बेकसूर बताया और कहा कि निर्दोषों को सजा दी गई है।
क्या थी घटना?
28 जुलाई 2016 की रात नोएडा (अब गौतमबुद्ध नगर) निवासी एक परिवार के छह सदस्य अपनी कार से शाहजहांपुर स्थित पैतृक गांव में तेरहवीं के कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे थे। परिवार में पिता, मां, 14 साल की बेटी, ताऊ, ताई और उनका बेटा शामिल था।
रात करीब डेढ़ बजे बुलंदशहर देहात कोतवाली क्षेत्र में दोस्तपुर फ्लाईओवर के पास बदमाशों ने कार पर लोहे की रॉड फेंककर उसे रोका। हथियारों के बल पर पूरे परिवार को बंधक बनाया गया। पुरुष सदस्यों के हाथ-पैर बांधकर उन्हें पीटा गया, जबकि मां और नाबालिग बेटी को पास के खेत में ले जाकर बारी-बारी से सामूहिक दुष्कर्म किया गया। इसके बाद लूटपाट कर बदमाश फरार हो गए।
यह वारदात जिला मुख्यालय से मात्र 5 किलोमीटर और देहात कोतवाली से 2 किलोमीटर दूर हुई, लेकिन पुलिस को भनक तक नहीं लगी। घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया और महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठाए।
जांच और मुकदमा
शुरुआती जांच में स्थानीय पुलिस की लापरवाही सामने आई। पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन वे निर्दोष पाए गए। मामले में एसएसपी सहित 17 पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हुई। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर अगस्त 2016 में जांच सीबीआई को सौंपी गई।
सीबीआई ने बावरिया गिरोह के सदस्यों को आरोपी बनाया। कुल छह आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई
जुबैर उर्फ सुनील उर्फ परवेज
सलीम उर्फ बीना उर्फ दीवानजी
साजिद
रहीसुद्दीन
जावेद उर्फ शावेज
जबर सिंह
हालांकिएक आरोपी सलीम की जेल में बीमारी से मौत हो गई।
दो आरोपी अलग-अलग एनकाउंटर में मारे गए।
तीन आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया गया।
बचे पांच आरोपी जुबैर, साजिद, धर्मवीर उर्फ जितेंद्र, नरेश उर्फ संदीप बहेलिया और सुनील कुमार उर्फ सागर – को 20 दिसंबर 2025 को दोषी करार दिया गया। मुकदमे में 25 गवाहों के बयान दर्ज हुए। आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 394, 395, 397 (लूट), 376डी (सामूहिक दुष्कर्म), 120बी (साजिश) और पॉक्सो एक्ट की संबंधित धाराएं लगीं।
पीड़ित परिवार की पीड़ा
पीड़िता अब 23 साल की ने बताया कि घटना के बाद परिवार को पहचान छिपाने के लिए कई बार घर और शहर बदलना पड़ा। उन्होंने कहा, “उन्होंने हमसे सब कुछ छीन लिया, लेकिन हम लड़ते रहे।” यह फैसला उनके लिए न्याय की एक किरण है, लेकिन दर्द आज भी ताजा है।
यह मामला महिलाओं और नाबालिगों की सुरक्षा, हाईवे पर पेट्रोलिंग और पुलिस जवाबदेही पर बड़ा संदेश देता है। कोर्ट का फैसला पीड़ितों को न्याय की उम्मीद जगाता है, हालांकि देरी से न्याय की चर्चा भी तेज हो गई है।










