ओबीसी समाज को जोड़ने का अभियान चलाएगी बसपा

  • जातिवादी पार्टियों से सावधान रहे अन्य पिछड़ा वर्ग : मायावती

लखनऊ । बहुजन समाज पार्टी ने विरोधी दलों को जातिवादी करार देते हुए ओबीसी समाज को सावधान किया है। कहा- दलित ही नहीं बल्कि अन्य पिछड़े वर्ग, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक इन ‘बहुजन समाज’ के मामले में कांग्रेस, भाजपा व सपा आदि सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। जिनकी मीठी-मीठी बातों व लुभावने छलावों, वादों एवं दावों से इन वर्गों के लोगों का कभी भी वास्तविक भला होने वाला नहीं है। बसपा ने अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए काफी काम किया है। और यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा। मंगलवार को राज्य स्तरीय विशेष बैठक में ओबीसी को जोड़ने के लिए अभियान शुरू करने का फैसला लिया गया।

बहन कु. मायावती ने कहा कि गांधीवादी कांग्रेस, आरएसएसवादी भाजपा एवं सपा व इनकी पीडीए जिसे लोग परिवार डेवल्पमेन्ट अथारिटी भी कहते हैं इसमें बहुजन समाज व ओबीसी समाज के करोड़ों बहुजनों का हित कभी भी न सुरक्षित था और न ही आगे सुरक्षित रह सकता है।

उन्होंने बहुप्रचारित ‘विकास’ व ‘विकसित भारत’ आदि के बड़े-बड़े वादों-दावों के बावजूद अति गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा व हर प्रकार के पिछड़ापन, शोषण, अत्याचार व तिरस्कार आदि का दंश हर दिन झेल रहे हैं । इनके परिवार का भविष्य भी इसी अंधकार में डूबा हुआ है। उत्तर प्रदेश की तरह ही अम्बेडकरवादी बीएसपी के आयरन लेडी नेतृत्व तले, भाजपा, कांग्रेस, सपा आदि इन जातिवादी पार्टियों को परास्त करके राजनीतिक सत्ता की मास्टर चाबी हासिल करना ही बहुजनों के सामने अपने ‘अच्छे दिन’ लाने का एकमात्र बेहतर विकल्प है।

हमेशा अलग-थलग व बिखरे पड़े रहे अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी समाज) के लोगों को उनका मण्डल आयोग की सिफारिश को लागू कराकर इन्हें पहली बार आरक्षण का संवैधानिक हक दिलाने से लेकर इन्हें जीवन के हर क्षेत्र में समता, न्याय व आत्म-सम्मान के साथ जीने के लिए अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए बी.एस.पी. ने पार्टी व सरकार के स्तर पर जो ऐतिहासिक कार्य किये हैं। उसने देश में ‘सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति’ मूवमेन्ट को नयी शक्ति व मज़बूती दी है, किन्तु जातिवादी पार्टियों की भीतरी व खुली साजिशों के कारण बी.एस.पी. के सन् 2012 में यूपी में सत्ता से बाहर हो जाने के बाद इन्हीं दलित व ओबीसी विरोधी ताकतों के सत्ता में वापस आ जाने से इनके वर्गों के हालात फिर से लगातार बदतर, लाचार व गुलाम होते चले जा रहे हैं, जो किसी से भी छिपा हुआ नहीं है।

लखनऊ में बाबा डॉ. भीमराव ने कहा था ….

इन वर्गों के मसीहा परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने देश में संविधान लागू होने के बाद सन् 1948 में ही लखनऊ में एक विशाल जनसभा में आह्वान किया था कि, “अन्य पिछड़े वर्ग से कहे जाने वाले लोग, जो जाति वर्ण-व्यवस्था के अनुसार चौथे वर्ण अर्थात् शूद्र वर्ण में आते हैं, जिनकी समस्यायें अनुसूचित जाति व जनजाति लोगों के समान ही हैं, मैं नहीं कहता कि वे आपस में रोटी-बेटी का सम्बन्ध करें, परन्तु अपनी समस्याओं के समाधान के लिये उन्हें उनके साथ में मिलकर आगे आना चाहिये।”

अपनी ऐसी सोच से पहले बाबा साहेब डा. अम्बेडकर ने संविधान में धारा 340 का प्रावधान करके अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों को सरकारी नौकरी व शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था को लागू कराने हेतु आयोग गठन का प्रावधान किया और जिस पर सही से उस पर अमल नहीं किये जाने के विरोध में उन्होंने देश के पहले कानून मंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था। इस प्रकार बाबा साहेब ने अपनी कथनी से ज्यादा करनी में विश्वास रखना साबित करके भी दिखाया।

और उन्हीं के नक्शेकदम पर चले हुए बी.एस.पी. ने, संविधान की इसी धारा 340 के अन्तर्गत पिछड़ों के लिए बने मण्डल आयोग द्वारा सरकारी नौकरी व शिक्षा आदि में ओबीसी समाज को 27 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने की सिफारिशों को लागू करने के लिए, दिल्ली में संसद के पास बोट क्लब पर काफी लम्बा आन्दोलन किया और जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सन् 1989 में सरकार बनी तो तब उनको समर्थन देने के बदले बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर को भारतरत्न तथा मण्डल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की शर्त पर बाहर से सरकार को समर्थन दिया, जबकि प्रधानमंत्री वीपी सिंह बीएसपी को सरकार में शामिल करके अहम् मंत्रालय देने के पक्ष में थे।

इतना ही नहीं बल्कि यूपी में सन् 1995 में बहनजी के नेतृत्व में बी.एस.पी. की देश में बनी पहली सरकार से ही उन्होंने सर्वसमाज के साथ-साथ बहुजन समाज के अभिन्न अंगों में से ओबीसी समाज के लिए ठोस और बुनियादी कार्य करने शुरू कर दिए। जिसमें सबसे अधिक महत्व का है दिनांक 12 अगस्त सन् 1995 को, देश में पहली बार, समाज कल्याण विभाग से अलग करके, भरपूर बजट के साथ, अलग से “उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग” की स्थापना की। साथ ही, पिछड़े वर्गों के लिये प्रदेश में पहली बार, उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का भी गठन किया गया।

पिछड़े वर्ग के समग्र विकास एवं उनके कल्याणार्थ योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये जनपद स्तर, मण्डल स्तर एवं राज्य स्तर पर अधिकारियों/ कर्मचारियों की तैनाती व इसके लिए 20 सितम्बर 1995 को पिछड़ा वर्ग कल्याण निदेशालय की स्थापना की गयी। कानपुर विश्वविद्यालय का नया नामकरण छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर किया गया। राज्य पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम लि. द्वारा संचालित टर्मलोन योजना के अन्तर्गत पात्र लोगों को लाभान्वित किया गया।

पहली बार सरकारी छात्रावासों में अन्य पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिये 27 प्रतिशत आरक्षण तथा ओ.बी.सी. वर्गों के लोगों के लिये सरकारी आवासों में 15 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था को बढ़ाकर, बी.एस.पी. के पहले शासनकाल में ही, 27 प्रतिशत आरक्षण की नयी व्यवस्था लागू की गयी। पिछड़े व कमज़ोर वर्गों के शिक्षित बेरोज़गार नवयुवकों को तृतीय श्रेणी की सेवाओं में परीक्षा के पूर्व कोचिंग हेतु ‘छत्रपति शाहूजी महाराज शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान’ की स्थापना की गयी।

पिछड़ा वर्ग आयोग की संस्तुति पर ओ.बी.सी. आरक्षण अधिनियम की अनुसूची-एक में 21 मूल जातियों में 37 उपजाति, उपनाम जोड़े गये। कृषि योग्य भूमि एवं आवासीय भूमि के लिये आवंटन के विशेष कार्य भी किए गए। 21 मार्च सन् 1997 को सत्ता संभालने के तुरन्त बाद, बहनजी की सरकार द्वारा महात्मा ज्योतिबा फुले नगर एवं छत्रपति शाहूजी महाराज नगर के नाम से दो नये ज़िले बनाये गये। ज्योतिबा फुले (रुहेलखण्ड) विश्वविद्यालय का नामकरण किया गया।

पिछड़े वर्गों के लोगों की कल्याणकारी योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर गति प्रदान करने हेतु वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों को प्रत्येक ज़िले में तैनाती तथा स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री की प्रतिमा का ज़िला अलीगढ़ में अनावरण किया गया। 13 और उप-जातियों को अतिरिक्त रूप से अनुसूची-एक में सम्मिलित किया गया व अम्बेडकर ग्रामों के बिजलीकरण के अन्तर्गत इनके गांवों में बिजली पहुंचायी गयी, जो कि यह सिलसिला बी.एस.पी की रही सरकार में जारी रहा।

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