ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल ने फिलिस्तीन को दी औपचारिक मान्यता : इजराइल के लिए बढ़ा अंतरराष्ट्रीय दबाव

लंदन : ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के रविवार को फिलिस्तीन राज्य को औपचारिक मान्यता देने की घोषणा के बाद पुर्तगाल ने भी ऐसे ही कदम का ऐलान कर दिया। इन देशों ने यह घोषणा अंतरराष्ट्रीय आक्रोश के बीच गाजा में अभियान जारी रखने वाले इजराइल पर दबाव बनाने के लिए की है। इजराइल ने कहा कि इससे उसकी रणनीति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया दशकों से इजराइल के मजबूत सहयोगी रहे हैं। पोलैंड के साथ इन तीनों देशों ने द्वि-राष्ट्र समाधान की दिशा में प्रगति न होने पर गहरी निराशा भी व्यक्त की है।

सीएनएन चैनल की रिपोर्ट्स के अनुसार, पुर्तगाल ने कहा कि द्वि-राष्ट्र समाधान ही “न्यायसंगत और स्थायी शांति का एकमात्र मार्ग” है। अब फ्रांस व अन्य देशों के कदमों का इंतजार है। उम्मीद है कि फ़्रांस और कई अन्य देश इस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र महासभा में ऐसा ही करेंगे। इससे इजराइल का अलगाव और गहरा होगा। इजराइल के प्रमुख सहयोगी संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ उनके मतभेद और बढ़ेंगे। इन कदमों पर इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कड़े शब्दों में कहा, “कोई फिलिस्तीनी राज्य नहीं होगा।”

नेतन्याहू ने कहा, “सात अक्टूबर के भयानक नरसंहार के बाद फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले नेताओं के लिए मेरा एक स्पष्ट संदेश है-आप आतंक को बहुत बड़ा इनाम दे रहे हैं।” नेतन्याहू ने कहा, “हमारी धरती के मध्य एक आतंकवादी राज्य को थोपने की इस ताजा कोशिश का जवाब मेरे अमेरिका से लौटने के बाद दिया जाएगा। इंतजार कीजिए।”

इजराइल के राष्ट्रपति इसाक हर्ज़ोग ने कहा कि इस कदम से “एक भी फिलिस्तीनी को मदद नहीं मिलेगी। एक भी बंधक को छुड़ाने में मदद नहीं मिलेगी। इससे हमें इजराइलियों और फिलिस्तीनियों के बीच कोई समझौता करने में मदद नहीं मिलेगी।” उन्होंने एक्स पर कहा, “यह उन लोगों के लिए एक दुखद दिन है जो सच्ची शांति चाहते हैं।” उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र के 140 से ज्यादा अन्य सदस्य पहले ही फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। यह संख्या गाजा में इजराइल के बढ़ते हमले को लेकर बढ़ती चिंता के बीच बढ़ी है।

कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने एक्स पर कहा, “उनका देश फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देता है। साथ ही फिलिस्तीन राज्य और इजराइल राज्य के लिए एक शांतिपूर्ण भविष्य के निर्माण में अपनी साझेदारी की पेशकश करता है।” कनाडा सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस घोषणा से कुछ समय पहले कहा, “फिलिस्तीनी प्राधिकरण ने हिंसा का त्याग कर दिया है। इजराइल को मान्यता दे दी है और द्वि-राज्य समाधान के लिए प्रतिबद्ध है।” हम शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व चाहने वालों को सशक्त बनाने और हमास को हाशिए पर डालने के लिए फिलिस्तीन राज्य को मान्यता दे रहे हैं।” ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने तो जुलाई में यह वादा किया था कि वह फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देंगे।

स्टारमर आदि नेताओं के इन कदमों से बेपरवाह इजराइल के प्रधानमंत्री ने कहा, “कब्जे वाले पश्चिमी तट पर यहूदी बस्तियों की संख्या दोगुनी कर दी गई है हम इसी रास्ते पर चलते रहेंगे।” स्टार्मर ने वीडियो संबोधन में कहा, “मध्य पूर्व में बढ़ते आतंक के मद्देनजर हम शांति की संभावना को जीवित रखने के लिए काम कर रहे हैं।” उधर, ब्रिटेन के विदेश कार्यालय के यात्रा सलाह वेबपेज को रविवार को स्टार्मर की घोषणा के अनुरूप अपडेट किया गया, जिसमें “अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों” का उल्लेख बदलकर “फ़िलिस्तीन” कर दिया गया।

फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने जुलाई में यह प्रमुख पहल की थी। उन्होंने देशों से संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपनी मान्यता की घोषणा में फ़्रांस के साथ शामिल होने का आह्वान किया था। रविवार को एक साक्षात्कार में मैक्रों ने सोमवार को फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने के फ़्रांस के इरादे की पुष्टि की। साथ ही कहा कि गाजा में शेष बंधकों की रिहाई “उदाहरण के लिए, फिलिस्तीन में दूतावास खोलने से पहले” एक अनिवार्य शर्त होगी। उधर,

बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग और सैन मैरिनो भी इस सप्ताह फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की घोषणा कर सकते हैं।

इस बीच, फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास ने कहा कि ब्रिटेन की यह घोषणा “न्यायपूर्ण और स्थायी शांति प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण और आवश्यक कदम” है। अब्बास के अनुसार, यह कदम द्वि-राज्य समाधान के कार्यान्वयन का मार्ग प्रशस्त करेगा। हमास के राजनीतिक कार्यालय के वरिष्ठ सदस्य बासम नईम ने कहा कि ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया का यह स्वागत योग्य कदम है। लेकिन इसके साथ जमीनी स्तर पर व्यावहारिक उपाय भी किए जाने चाहिए।

फिलिस्तीनी राजनीति की अग्रणी हस्ती डॉ. हनान अशरावी ने कहा कि यह कदम “दुनिया में एक बड़े बदलाव” का संकेत है। इन देशों के पास नरसंहार रोकने और इजराइल के खिलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई करने के लिए कई रास्ते खुले हैं। अब परीक्षा इस बात पर है कि वे ऐसा करेंगे या नहीं।” फिलिस्तीन को पूर्ण सदस्य बनाने के लिए सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में से कम से कम नौ का पक्ष में मतदान आवश्यक है। यह भी जरूरी है कि पांच स्थायी सदस्यों ब्रिटेन, चीन, फ़्रांस, रूस और अमेरिका में से किसी का भी वीटो न हो। अगर यह मुद्दा सुरक्षा परिषद के समक्ष आता है तो अमेरिका से अपनी वीटो शक्ति का प्रयोग करने की अपेक्षा की जाएगी।

चूंकि चीन और रूस ने 1988 में एक फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दी थी, इसलिए अमेरिका जल्द ही सुरक्षा परिषद का एकमात्र स्थायी सदस्य रह जाएगा जो फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता नहीं देगा। यह इस बात को पुष्ट करता है कि वाशिंगटन किस तरह इजराइल और बढ़ते अंतरराष्ट्रीय अलगाव के बीच एक मजबूत दीवार की तरह खड़ा है। और अन्य देशों ने भी फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने का कोई संकेत नहीं दिया है। कनाडा और ब्रिटेन फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले पहले जी-7 देश हैं, लेकिन अन्य सदस्य जापान, इटली और जर्मनी इस कदम का विरोध कर रहे हैं।

सीएनएन के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में वैश्विक नेताओं की वार्षिक सभा में अपने दूसरे कार्यकाल का पहला संबोधन देंगे। इस दौरान गाजा में युद्ध और फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना की संभावना को लेकर उनके प्रमुख सहयोगियों सहित आधे से अधिक सदस्य देशों के साथ उनके मतभेद बढ़ चुके होंगे। अमेरिका के अलग-थलग पड़ने का स्पष्ट उदाहरण सोमवार को देखने को मिलेगा, जब फ्रांस और सऊदी अरब संयुक्त रूप से दो-राज्य समाधान सम्मेलन की मेजबानी करेंगे। इसे संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 142 का समर्थन प्राप्त है। अमेरिका इस सम्मेलन में भाग नहीं ले रहा है। वह उन 10 देशों में से एक है जिन्होंने इस उच्च-स्तरीय सम्मेलन का समर्थन करने वाले महासभा के प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया था।

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