
उत्तर प्रदेश की राजनीति में सोमवार को एक बड़ी हलचल देखने को मिली, जब बीजेपी के पूर्व सांसद और पूर्वांचल के कद्दावर नेता बृजभूषण शरण सिंह ने लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके सरकारी आवास (5, कालीदास मार्ग) पर मुलाकात की। यह मुलाकात करीब तीन साल बाद हुई, जिसने सियासी गलियारों में कई सवाल और अटकलें खड़ी कर दी हैं। दोनों नेताओं के बीच लगभग एक घंटे तक बंद कमरे में बातचीत हुई, जिसके बाद बृजभूषण ने इसे “शिष्टाचार मुलाकात” करार दिया। लेकिन सियासी पंडित इसे 2027 के विधानसभा चुनाव की रणनीति से जोड़कर देख रहे हैं।
बृजभूषण शरण सिंह, जो कैसरगंज से छह बार सांसद रहे और भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं, पिछले कुछ समय से बीजेपी में हाशिए पर थे। 2023 में उन पर महिला पहलवानों द्वारा यौन शोषण के गंभीर आरोपों के बाद पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव 2024 में टिकट नहीं दिया। उनके बेटे करण भूषण सिंह को कैसरगंज से टिकट मिला, जो अब सांसद हैं। बृजभूषण ने कई बार योगी सरकार की नीतियों, खासकर बुलडोजर नीति और अफसरशाही पर सवाल उठाए थे। उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव को “छोटा भाई” कहकर भी सियासी तूफान खड़ा किया था।
इसके बावजूद, बृजभूषण का पूर्वांचल के गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती, और बलरामपुर जैसे जिलों में मजबूत जनाधार है। उनकी सियासी ताकत को नजरअंदाज करना बीजेपी के लिए जोखिम भरा हो सकता है, खासकर 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए। हाल ही में योगी आदित्यनाथ ने बृजभूषण के धुर विरोधी और केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह के पिता राजा आनंद सिंह को श्रद्धांजलि देने उनके घर गए थे, जिसके बाद बृजभूषण की नाराजगी की खबरें उड़ी थीं।
मुलाकात के सियासी मायने
सूत्रों के मुताबिक, बृजभूषण ने यह मुलाकात मुख्यमंत्री के साथ अपनी दूरी कम करने और पार्टी में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए की। बीजेपी, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी में उम्मीद से कम सीटें जीत पाई, अब 2027 के लिए रणनीति बना रही है। योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से दिल्ली में मुलाकात की थी, जहाँ यूपी में संगठन और सरकार में फेरबदल पर चर्चा हुई। बृजभूषण की मुलाकात को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, ताकि पूर्वांचल में पार्टी का जनाधार मजबूत हो।
मुलाकात के बाद बृजभूषण ने मीडिया से कहा, “योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, मुलाकात तो होनी ही चाहिए। यह कोई खास बात नहीं, बस शिष्टाचार मुलाकात थी।” हालांकि, उनके चेहरे की बॉडी लैंग्वेज और संक्षिप्त जवाबों से संकेत मिले कि मुलाकात में उनकी अपेक्षाएँ पूरी नहीं हुईं। कुछ सूत्रों का कहना है कि बृजभूषण को मुख्यमंत्री कार्यालय से बुलाया गया था, लेकिन बातचीत में कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला।
पिछले बयानों का संदर्भ
बृजभूषण का एक पुराना वीडियो भी वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था, “मैं सीएम से मिलने नहीं जाता, मेरे बेटे और परिवार वाले जाते हैं। योगी जी से मेरे रिश्ते खराब नहीं हैं, बस मुलाकात नहीं होती।” इस बयान के बाद उनकी यह मुलाकात सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन गई। उन्होंने पहले यह भी कहा था कि वे और योगी दोनों गोरखनाथ मठ के महंत अवैद्यनाथ के शिष्य हैं, और उनका रिश्ता पुराना है। फिर भी, देवीपाटन मंडल में ठेकों और पट्टों पर बृजभूषण के प्रभाव को लेकर योगी की नाराजगी की खबरें थीं।
2027 के लिए रणनीति?
पूर्वांचल में बीजेपी को 2022 के विधानसभा चुनाव में झटका लगा था, और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी सीटें घटी थीं। ऐसे में पार्टी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। बृजभूषण का गोंडा, बलरामपुर, और आसपास के क्षेत्रों में प्रभाव उन्हें एक महत्वपूर्ण सियासी खिलाड़ी बनाता है। उनकी नाराजगी बीजेपी के लिए नुकसानदायक हो सकती थी, खासकर तब जब समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दल पूर्वांचल में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
सियासी विश्लेषकों का मानना है कि यह मुलाकात बीजेपी की रणनीति का हिस्सा हो सकती है, जिसमें पुराने और नाराज नेताओं को साधने की कोशिश की जा रही है। योगी आदित्यनाथ पिछले कुछ महीनों से विधायकों और प्रभावशाली नेताओं से नियमित मुलाकात कर रहे हैं, जिसे 2027 की तैयारी से जोड़ा जा रहा है।
विवादों से भरा रहा है बृजभूषण का करियर
बृजभूषण शरण सिंह का सियासी सफर विवादों से भरा रहा है। राम मंदिर आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका रही, लेकिन 2023 में महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपों ने उनके करियर को झटका दिया। जंतर-मंतर पर हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद उनकी सियासी स्थिति कमजोर हुई थी। फिर भी, उनके बेटे प्रतीक भूषण सिंह गोंडा सदर से बीजेपी विधायक हैं, और करण भूषण सिंह कैसरगंज से सांसद हैं, जो उनके प्रभाव को दर्शाता है।
यह मुलाकात भले ही “शिष्टाचार” बताई जा रही हो, लेकिन इसके सियासी निहितार्थ गहरे हैं। क्या बृजभूषण बीजेपी में अपनी पुरानी ताकत हासिल कर पाएँगे? क्या योगी और बृजभूषण के बीच की दूरी पूरी तरह खत्म होगी? या यह मुलाकात 2027 के लिए एक बड़ी सियासी पटकथा का हिस्सा है? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में साफ हो सकते हैं।
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