
What is Black Box: गुजरात के अहमदाबाद में 12 जून को एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 उड़ान भरने के कुछ ही देर में मेधानी नगर में क्रैश हो गई. इस फ्लाइट में 242 यात्री और चालक दल के 10 सदस्य सवार थे. यह फ्लाइट लंदन के गैटविक जा रही थी. फ्लाइट की कमान कैप्टन सुमित सभरवाल और फर्स्ट ऑफिसर क्लाइव कुंदर संभाल रहे थे.
नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) के मुताबिक, विमान ने रनवे 23 से दोपहर 1 बजकर 39 मिनट पर उड़ान भरी थी . एक तरफ जहां जिंदा बचे लोगों को बचाने के लिए रेस्क्यू अभियान जारी है तो वहीं अधिकारी ब्लैक बॉक्स की तलाश में जुटे हुए हैं. आइए, जानते हैं कि हादसे के बाद ब्लैक बॉक्स की खोज को क्यों प्राथमिकता दी जा रही है…
ब्लैक बॉक्स क्या होता है?
ब्लैक बॉक्स वास्तव में दो उपकरणों से मिलकर बना है. पहला Flight Data Recorder (FDR), जो विमान के तकनीकी डेटा—स्पीड, ऊँचाई, इंजन स्टेटस, वगैरह रिकॉर्ड करता है. दूसरा, Cockpit Voice Recorder (CVR), जो पायलटों की बातचीत, रेडियो कम्युनिकेशन, अलार्म आवाज़ और रडार चेतावनियां रिकॉर्ड करता है. जब भी कोई विमान हादसा होता है, तो ‘ब्लैक बॉक्स’ सबसे महत्वपूर्ण सबूत बनकर सामने आता है. धातु–टाइटेनियम की बनी यह इकाई इतनी मजबूत होती है कि यह 3400 g तक का झटका और 1000 °C तापमान सह सकती है. साथ ही समुद्र तल पर लंबे समय तक सुरक्षित रहती है. इन्हें सबसे नुकसान पहुंचने वाले विमानों के पिछले हिस्से,पूंछ या टेल सेक्शन में रखा जाता है.
दुर्घटना के बाद डाटा कैसे मिलता है?
इन ब्लैक बॉक्सों में उच्च आवृत्ति वाला फ्लैश मेमोरी होता है (पुराने मॉडल में मैग्नेटिक टेप हुआ करते थे). समुद्र में संभावित क्रैश की स्थिति में, इनमें लगे बीकन 30 दिनों तक ‘पिंग’ का संकेत भेजते हैं, जो 20,000 फुट गहराई तक सुनाई देता है.
विमान हादसों में ब्लैक बॉक्स क्यों होता है सबसे अहम सबूत?
ब्लैक बॉक्स यानी फ्लाइट रिकॉर्डर किसी भी विमान हादसे की जांच में सबसे निर्णायक भूमिका निभाता है. ये उपकरण पायलटों की बातचीत और विमान के हर सेकंड की तकनीकी गतिविधियों को रिकॉर्ड करते हैं, जिससे दुर्घटना के पहले और दौरान के पलों की पूरी तस्वीर सामने आती है. ठीक उसी तरह जैसे आपराधिक मामलों में डीएनए सबूत होता है, वैसे ही एविएशन में ब्लैक बॉक्स सबसे विश्वसनीय और निष्पक्ष गवाह माना जाता है. खासकर तब जब चश्मदीद गवाह मौजूद न हों.
2015 के Germanwings हादसे से लेकर मलेशिया एयरलाइंस जैसी अंतरराष्ट्रीय दुर्घटनाओं और भारत के 2020 कोझिकोड क्रैश में भी ब्लैक बॉक्स की रिकॉर्डिंग ने सटीक कारण पता लगाने में अहम भूमिका निभाई थी. कई बार जब विमान के अवशेष नष्ट हो जाते हैं या कोई जीवित यात्री नहीं बचता, तब यही उपकरण अंतिम सच बयान करते हैं. इन रिकॉर्डिंग्स से सिर्फ हादसे की वजह ही नहीं, बल्कि विमानन उद्योग की सुरक्षा नीतियों में सुधार, नई ट्रेनिंग प्रक्रियाएं और एयरक्राफ्ट डिज़ाइन में बदलाव भी किए जाते हैं, जो भविष्य में इसी तरह की घटनाओं को रोकने में मदद करते हैं.
ब्लैक बॉक्स की सीमाएं और चुनौतियां
कभी-कभी ब्लैक बॉक्स बहुत गहरे पानी में खो जाता है. शानदार उदाहरण है- Air France फ्लाइट 447, जिसका बॉक्स दो साल बाद मिला. कुछ क्रैश में CVR/FDR क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे डाटा खो सकता है.
अहमदाबाद हादसे में ब्लैक बॉक्स की भूमिका
अहमदाबाद हादसे में ब्लैक बॉक्स के डेटा से यह साफ हो सकेगा कि दुर्घटना का कारण इंजन फेलियर, तकनीकी खराबी, बर्ड स्ट्राइक, विमान में आग, या मानव त्रुटि थी. फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) बताएगा कि टेक-ऑफ के बाद इंजन ने कैसी प्रतिक्रिया दी, फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम और चेतावनियों की स्थिति क्या थी. कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (CVR) पायलटों के बीच बातचीत, MAYDAY कॉल का संदर्भ, आपातकालीन चेकलिस्ट और किसी तकनीकी गड़बड़ी पर की गई चर्चा को सामने लाएगा.
एक बार जब ये दोनों रिकॉर्डर मलबे से निकाले जाएंगे, उन्हें DGCA या विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) की फॉरेंसिक लैब में भेजा जाएगा. यहां विशेषज्ञ इनकी मेमोरी को डिकोड करेंगे, वॉयस और डेटा को सिंक्रनाइज़ करेंगे, और एयर ट्रैफिक कंट्रोल व रडार लॉग से उसका मिलान करेंगे. हालांकि पूरा विश्लेषण कई हफ्तों तक चल सकता है, लेकिन प्राथमिक निष्कर्ष अक्सर 24 घंटे के भीतर मिल जाते हैं, जो जांच की दिशा तय करने में मदद करते हैं.
कुल मिलाकर, ब्लैक बॉक्स न सिर्फ विमान हादसों के पीछे की वजहें सामने लाता है, बल्कि भविष्य की उड़ानों को और अधिक सुरक्षित बनाने की नींव भी रखता है. अहमदाबाद क्रैश में भी, यही उपकरण बताएगा कि उन आखिरी पलों में वास्तव में क्या हुआ था.