जोर मार रही लोजश अध्यक्ष चिराग पासवान की महत्वकांक्षाएं
-विरासत को लेकर नहीं थम रही लालू के लालों में आपसी जंग
-वर्चस्व के चलते यूपी में अखिलेश पहले ही कर चुके है मटियामेंट
योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। घर को आग रही घर के चिराग से। उत्तर प्रदेश के बाद अब बिहार में लालू परिवार के बाद यही स्थिति वहां के सियासी दिग्गज रामविलास पासवान के परिवार में देखने को मिल रही है। बिहार में पहले से ही सबसे बड़े राजनीतिक घराने लालू परिवार में जहां राजनीतिक विरासत को लेकर घर में ही अन्र्तद्वन्द मचा हुआ हुआ है तो कमोबेश यही स्थिति पासवान के परिवार के साथ भी है। लंबे समय से राजग का हिस्सा रहे लोकजनश्ािक्त पार्टी के संस्थापक रामबिलास पासवान के पुत्र और वर्तमान लोजश के अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार के चुनाव में राजग के सहयोगी दल जनता दल(यू) से अलग रहकर चुनाव लडऩे का एलान किया है।
हालांकि जेडीयू से अलग होकर उनके चुनाव लडऩे के निर्णय से फौरी तौर पर भले महागठबंधन को लगे इस फूट से उसे कुछ फायदा हो सकता है लेकिन उसकी यह सोंच कितना कारगर होगी यह तो चुनाव नतीजे ही बतायेंगे। लोजश के अलग होने से जेडीयू को कोई हैरानी नहीं है। उसका मानना है कि भाजपा के साथ होने से लोजश जैसे दलों के साथ रहने न रहने का कोई मतलब नहीं है। चिराग पासवान के अकेले दम पर चुनाव लडऩे के निर्णय को लेकर उनकी पार्टी के ही लोगों में एक राय नहीं है। उनका मानना है कि लोजश के इस निर्णय से जहां पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है वहीं भविष्य में जेडीयू से भी दूरियां बढ़ेगी।
लोजश ने जेडीयू से किनारा करते हुए केवल भाजपा के साथ रहने का निर्णय लिया है। अस्वस्थता के चलते रामबिलास पासवान इस समय सक्रिय नहीं है इसलिए सारे निर्णय चिराग पासवान ही ले रहे है। अपनी अस्वस्थता के चलते ही पासवान ने पहले ही चिराग को पार्टी की बागडोर सौंप दी थी। पार्टी की बागडोर हांथ आने के बाद से उनका यह पहला निर्णय है कि वे राजग में रहते हुए जेडीयू से अलग रहकर चुनाव लड़ेगे। उनकी यह राजनीति निर्णय कितना सूझबूझ वाला होगा। यह दस नवंबर को ही पता चलेगा।
पासवान परिवार की ही तरह बिहार के बड़े राजनीतिक घराने लालू परिवार की भी अन्र्तकलह किसी से छिपी नहीं है। लालू के जेल में होने और राबड़ी देवी की पहले जैसी सक्रियता न होने से उनके परिवार में विरासत को लेकर जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। चुनाव में भले पूरा परिवार एकजुटता दिखा रहा है। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। लालू परिवार में विरासत को लेकर तेजेस्वी यादव और तेजप्रताप यादव और मीसा यादव में राजनीतिक विरासत को लेकर मची अन्र्तकलह सदन से सड़कों तक दिखाई दे रही है। लालू परिवार की कलह और महागठबंधन में दलों आम सहमति न होना ही कहीं न कहीं भाजपा जेडीयू गठबंधन की राह तो आसान बना रहा है। तेजेस्वी यादव को सीएम चेहरा बनाए जाने को लेकर उनके घर में इसी बात को लेकर जंग छिड़ी हुई है।
तेजप्रताप की भी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं कम नहीं है। वर्तमान में बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के नेता तेजेस्वी प्रताप यादव जेडीयू महागठबंधन सरकार में डिप्टीसीएम रहे है। लिहाजा वे सीएम पद पर अपनी दावेदारी पेश कर रहे है। राजनीतिक जानकारों की माने तो महागठबंधन में भले तेजेस्वी के नाम को लेकर सहमति बन रही हो लेकिन इस मुद्दे पर लालू परिवार में एकजुटता यह सहमति होती नहीं दिख रही है।
राजनीति विरासत को लेकर बिहार के दो परिवारों में वर्चस्व और विरासत को लेकर जो पटकथा लिखी जा रही है। इसकी शुरूआत यूपी में चार साल पहले ही हो चुकी है। जिसकी परिणीत यह है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों में समाजवादी पार्टी को खासे नुकसान का सामना करना पड़ा।
वृद्वावस्था के चलते पार्टी में मुलायम सिंह यादव की ढीली पकड़ के चलते उनके पुत्र और सीएम रहे अखिलेश यादव ने स्वयं को राष्टï्रीय अध्यक्ष घोषित कर लिया। इस मुद््दे पर उनके चाचा शिवपाल यादव से उनके मतभेद इतने गहराये कि शिवपाल ने सपा से अलग होकर प्रसपा नाम की पार्टी ही बना डाली। २०१५-१६ से मुलायम परिवार में शुरू हुए झगड़े की परिणीत यह रही कि २०१७ के विधानसभा चुनाव और २०१९ के लोकसभा चुनाव में पार्टी को खासे नुकसान का सामना करना पड़ा। परिवार को एकजुट रखने की मुलायम की सारे क ोशिशे नाकाम हुई। २०२२ के चुनाव से पूर्व एक बार फिर परिवार में एकजुटता के प्रयास होते दिख रहे है। देखना यह होगा कि इस मकसद में पार्टी को कितनी सफलता मिलती है।