
Bihar Chunav : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में गदर जैसा देखने को मिल रहा है। चुनाव भले ही दो गठबंधन के बीच हो रहा हो लेकिन बिहार की जनता के लिए मुख्य चुनाव लालू यादव की राजद और नीतीश कुमार की जदयू के बीच देखा जा रहा है। बिहार में इस बार भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जलवा देखने को मिल रहा है लेकिन फिर भी एक सीट ऐसी है, जहां जदयू का दबदबा कम हो चुका है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब बिहार की राजनीति में एक स्थापित नाम बन चुके हैं। उन्होंने बिहार की जनता के बीच जनता दल (यूनाइटेड) के रूप में अपनी पहचान बनाई और लंबे समय तक बिहार के प्रमुख नेताओं में से एक रहे हैं। उन्होंने 2005 से 2013 तक मुख्यमंत्री रहकर बिहार के विकास के लिए काफी काम किया। मगर, नीतीश कुमार बिहार की जनता के बीच सबसे ज्यादा ऊपर तब उठे जब उन्होंने 2015 में मोदी-लहर के दौरान भाजपा के साथ गठबंधन तोड़कर महागठबंधन बनाया। यहां बता दें कि पहले महागठबंधन की अगुवाई नीतीश कुमार ही कर रहे थे। मगर, फिर बीच में नीतीश कुमार ने अपना मन बदल लिया और वापस भाजपा के साथ गठबंधन कर एनडीए के दल बन गए।
नीतीश कुमार को बिहार की जनता ने क्यों ठुकरा रही है?
हालांकि, लोकसभा चुनाव-2024 में भाजपा के साथ गठबंधन के बाद भी नीतीश कुमार का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। एक नेता के वर्चस्व के रूप में नीतीश की छवि कुछ हद तक धूमिल हो गई है। जिसकी वजह है कि भाजपा के साथ गठबंधन करने के मुख्य कारण से पीछे हटना। जी हां, नीतीश कुमार ने बिहार की जनता से वादा किया था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाएंगे। इसी वादे के साथ ही वह भाजपा के साथ गठबंधन के लिए राजी हुए थे।
हालांकि केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद खुद नीतीश कुमार अपने बिहारवासियों से किए गए वादे को भूल गए। जिसके चलते बिहार की जनता के बीच जदूय प्रमुख नीतीश कुमार का जलवा फीका पड़ गया है। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कई सर्वे रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि इस बार बिहार की जनता राजद और जदयू के बीच बंटती नजर आ रही है। इसके अलावा, कुछ मतदाता भाजपा, कांग्रेस, हम, लोजपा, लोजपा-आर में बंट सकते हैं। ऐसे में बिहार में वोटों का समीकरण बदलने की आशंका है।
किस सीट पर नीतीश का दबदबा कम हुआ?
बिहार में इस बार जदयू प्रमुख नीतीश कुमार का दबदबा कम हुआ है। सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, इस बार के विधानसभा चुनाव में उत्तर बिहार के कुछ प्रमुख सीटों पर उनका वर्चस्व कमजोर दिख रहा है। यहाँ पर भाजपा का प्रभाव मजबूत होने से नीतीश का प्रभाव कम हुआ है। जातीय समीकरण और नए गठबंधनों ने नीतीश के प्रभाव को इन सीटों पर चोट पहुंचाई है। ये सीटें अररिया, मधेपुरा, किशनगंज में नीतीश कुमार की पार्टी काफी कमजोर पड़ गई।