बिहार चुनाव रिजल्ट : खेसारी लाल यादव जीत रहे सीट? इस सीट पर भाजपा लगाएगी हैट्रिक

Bihar Election 2025 Result : बिहार विधानसभा चुनाव -2025 का आज परिणाम घोषित हो रहा है। महागठबंधन और एनडीए के बीच कांटे का टक्कर होता दिख रहा है। इस बीच बिहार की छपरा विधानसभा सीट पर सबकी नजरें हैं, क्योंकि इस सीट पर राजद उम्मीदवार खेसारी लाल यादव खड़े हैं।

छपरा विधानसभा सीट पर एनडीए की छोटी कुमारी और महागठबंधन के खेसारी लाल यादव के बीच मुकाबला है। जीत किसकी होगी, यह जल्द ही स्पष्ट हो जाएगा। छपरा की जनता ने विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं को मौका दिया है। पिछले दो चुनावों में यह सीट भाजपा के पास रही है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से यहां कांग्रेस का भी दबदबा रहा है। इस बार की चुनावी नतीजों को लेकर सभी की नजरें टिक गई हैं, क्योंकि भाजपा इस सीट पर अपनी जीत की हैट्रिक लगाने के प्रयास में है।

1957 में गठन के बाद से अब तक छपरा विधानसभा सीट पर कुल 17 बार चुनाव हो चुके हैं। 1957 के पहले चुनाव में यहां कांग्रेस के राम प्रभुनाथ सिंह विजेता रहे थे। कांग्रेस ने इस सीट पर कुल चार बार जीत हासिल की है, जिसमें अंतिम बार 1972 में प्राप्त हुई। छपरा की जनता ने 2005 के चुनाव में जदयू के राम परवश राय को विजय दिलाई। 2010 में यह सीट भाजपा के खाते में गई, लेकिन 2014 के उपचुनाव में राजद के रणधीर कुमार सिंह ने जीत हासिल की। फिर 2015 के आम चुनाव में भाजपा ने वापसी की और 2020 में भाजपा के सीएन गुप्ता लगातार दूसरी बार विधायक बने।

छपरा विधानसभा सीट पर मुख्य रूप से वैश्य, यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अतिरिक्त ब्राह्मण, राजपूत, कुशवाहा, पासवान और ईबीसी वर्ग के मतदाताओं की भी अच्छी-खासी संख्या है, जो चुनाव परिणामों को प्रभावित करती है। यह सीट सारण लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और छपरा न सिर्फ एक प्रमुख शहरी केंद्र है, बल्कि यह सारण प्रमंडल का मुख्यालय भी है। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती है। घाघरा नदी के उत्तरी तट पर बसी इस नगर का गोरखपुर-गुवाहाटी रेलमार्ग पर स्थित होना इसे व्यापार और आवागमन का एक मुख्य केंद्र बनाता है, जिससे इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है।

इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि छपरा का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है। यह क्षेत्र कभी कोसल साम्राज्य का हिस्सा रहा है। 9वीं शताब्दी के महेंद्र पाल देव के शासनकाल से इस क्षेत्र का पहला लिखित उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि यहां के दाहियावां मुहल्ले में ऋषि दधीचि का आश्रम था, और रिविलगंज में गौतम ऋषि का आश्रम स्थित है, जहां कार्तिक पूर्णिमा को मेले का आयोजन होता है। इसके अलावा, अंबिका भवानी मंदिर से जुड़ी धार्मिक कथा भी यहां प्रचलित है। कहा जाता है कि यहीं राजा दक्ष का यज्ञकुंड था, जिसमें देवी सती ने भगवान शिव के अपमान के बाद आत्मदाह किया था। यह ऐतिहासिक और धार्मिक परंपराएं इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।

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