Bihar Election : बिहार में बुजुर्ग और यंग उम्मीदवार में किसे चुनेंगे युवा वोटर?

Bihar Election : बिहार के चुनावी इतिहास में युवाओं की भागीदारी अपेक्षाकृत कम रही है। 40 वर्ष से कम उम्र के प्रत्याशियों का जीत प्रतिशत बहुत ही मामूली है, क्योंकि मतदाता अनुभव और स्थापित राजनीतिक परिवारों को प्राथमिकता देते हैं। टिकट वितरण में भी युवा नेताओं का हिस्सा सीमित रहता है। युवा मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं, लेकिन विधानसभा में उनकी समस्याओं को उठाने वाले युवाओं की संख्या बहुत कम है।

पिछले वर्षों के आंकड़ों से पता चलता है कि 40 वर्ष से कम उम्र के प्रत्याशियों का जीत प्रतिशत न के बराबर है। 2010 में, इस आयु वर्ग के मात्र 13 प्रतिशत प्रत्याशी ही विजयी हो पाए थे। 2015 में 1,416 युवाओं ने चुनाव लड़ा, जिनमें से केवल 30 ही जीत सके। 2020 में भी संख्या बढ़ी, लेकिन सफलता का प्रतिशत अभी भी बहुत कम रहा।

स्थानीय स्तर पर बुजुर्ग नेताओं का वर्चस्व इतना मजबूत है कि युवा प्रत्याशियों को पहचान बनाने में कठिनाई होती है। इस कारण, विधानसभा में युवा विधायकों की संख्या सीमित है। बिहार की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा युवा है, लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व में उनका हिस्सा बहुत ही कम है।

मतदाता सूची में युवाओं की हिस्सेदारी लगभग 21 प्रतिशत है, यानी 30 वर्ष से कम उम्र के मतदाता चुनाव परिणाम को निर्णायक बना सकते हैं। खास बात यह है कि लगभग आठ लाख पहली बार मतदान करने वाले युवा हैं, जो चुनावी रुझानों और मुद्दों पर बड़ा प्रभाव डालते हैं। आज के युवा पारंपरिक प्रचार के बजाय सोशल मीडिया, फेसबुक, इंस्टाग्राम, वाट्सएप जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म से अधिक प्रभावित होते हैं।

ग्रामीण इलाकों में अभी भी “अनुभव बनाम जोश” की सोच प्रबल है। बुजुर्ग मतदाता मानते हैं कि उम्र के साथ परिपक्वता आती है, इसलिए वे युवा प्रत्याशियों पर भरोसा कम करते हैं। यही कारण है कि कई युवा, पढ़े-लिखे और ऊर्जावान चेहरे चुनाव लड़ने के बावजूद सफलता नहीं पा पाते।

युवाओं की हार का सबसे बड़ा कारण संगठन और संसाधन की कमी है। बड़े दलों में टिकट बंटवारे के समय युवा नेताओं को हाशिए पर रखा जाता है। उनके पास व्यापक जनाधार और धनबल की कमी होती है। वहीं, पुराने नेताओं का मजबूत नेटवर्क और कार्यकर्ताओं का समर्थन चुनावी नतीजों को प्रभावित करता है।

हालांकि, इस तस्वीर में बदलाव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। युवा मतदाता और युवा नेताओं के बीच से जुड़ी उम्मीदें बढ़ रही हैं, और डिजिटल मीडिया के जरिए युवा अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। यदि राजनीतिक दल युवा नेतृत्व को सही मंच और संसाधन प्रदान करें, तो बिहार की राजनीति में नए बदलाव की शुरुआत हो सकती है।

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