
Bihar Election 2025 : बिहार में पहले चरण की वोटिंग से पहले राजनीतिक ध्रुवीकरण के संकेत स्पष्ट हो रहे हैं। नेता कैश, कोस्ट, करप्शन जैसे मुद्दों पर तो पहले ही दांव खेल रहे थे, लेकिन अब अचानक से हिंदू-मुस्लिम, वक्फ बोर्ड कानून, बुर्का, और महिलाओं के अलग से स्कीम जैसे मुद्दे प्रमुखता से उठने लगे हैं। कहीं ‘नमक हराम’ जैसी बातें हो रही हैं, तो कहीं कह रहे हैं कि सरकार बनी तो वक्फ बोर्ड कानून खत्म कर देंगे, और कहीं मुसलमान महिलाओं के लिए नई योजनाओं का हवाला दे रहे हैं।
इसी बीच, मुसलिम डिप्टी सीएम का मुद्दा भी गरमाया हुआ है, जिससे साफ हो रहा है कि इस चुनाव के केंद्र में मुसलमान क्यों अहम हो गए हैं?
बिहार में जातिगत समीकरण और भाई-भतीजावाद का वर्चस्व इतना गहरा है कि सही मुद्दे चुनाव की मुख्यधारा में कभी नहीं आए। एनडीए हर चुनाव में जंगलराज की कहानी लेकर जनता को भयभीत करने की कोशिश करता है, जबकि 20 साल से सत्ता में मौजूद वहीं पार्टियां विकास की बातें भी दबाव में डाल दी जाती हैं। महागठबंधन के पिछले कर्म भी जनता को सताने का काम कर रहे हैं। रोजगार, बिजली, सड़क, पानी जैसे मुद्दों के बजाय चुनाव अधिकतर हिंदू-मुस्लिम के नाम पर ही हो रहे हैं।
मुस्लिम नेताओं का राजनीतिक शोर-शराबा भी तेज है। असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता मुस्लिम समुदाय के लिए उप-मुख्यमंत्री की मांग कर रहे हैं, तो वहीं कांग्रेस नेता राशिद अल्वी कहते हैं कि बिहार में मुसलमानों को उप-मुख्यमंत्री जरूर बनना चाहिए, क्योंकि उनके पास 19 प्रतिशत वोट हैं। दूसरी ओर, चिराग पासवान ने 2005 में अपने पिता की सरकार में मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने का उदाहरण दिया, और कहा कि आज भी मुसलमान सिर्फ वोट बैंक हैं। तेजस्वी यादव और पप्पू यादव जैसे नेता भी मुस्लिम प्रतिनिधित्व को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं, और कह रहे हैं कि संभव है कि मुसलमानों को ही डिप्टी सीएम पद मिले।
वहीं, नेताओं की बयानबाजी के बीच बुर्का, घूंघट जैसी बातों का भी मुद्दा उठ रहा है। वोट डालने के समय बुर्का और घूंघट की पहचान पर सवाल उठाए जा रहे हैं, और कहा जा रहा है कि यदि वोटर कार्ड से पहचान हो सकती है, तो बुर्का क्यों नहीं? इस तरह की बातें चुनावी मतदाता प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास हैं। गिरिराज सिंह जैसे नेता भी ‘नमक हराम’ का तमगा लगाते हुए, मुस्लिम वोट पर नफरत भरी भाषा बोल रहे हैं, जिससे चुनावी माहौल गर्म हो रहा है।
बिहार में मुसलमान 18% हैं, और सीमांचल जैसे इलाके में इनकी आबादी 30-40% तक है। 2020 के चुनाव में महागठबंधन को 70% मुस्लिम वोट मिले थे, जिसने 75 सीटें जीतीं। अब, एसआईआर जैसी रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि मुस्लिम वोटरों के 20 लाख मतदाता कट गए हैं, और स्विंग सीटों पर 40-60% तक नतीजे पलट सकते हैं। AIMIM जैसी पार्टी 10-15 सीटों पर सेंध लगाने की कोशिश कर रही है, जिससे एनडीए को लाभ हो सकता है।
इस चुनाव में मुस्लिम समुदाय का वोट बैंक, उनकी पहचान और राजनीतिक भागीदारी को लेकर तीव्र प्रतिस्पर्धा और ध्रुवीकरण की स्थिति बनती जा रही है।
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