Bihar : सुनवाई के दौरान डिप्टी सीएम कर रहे तमाशा, राजस्व सेवा संघ ने नीतीश कुमार को लिखा पत्र

Bihar Politics : बिहार में जनता दरबार की कार्यप्रणाली को लेकर एक नया विवाद सामने आया है। उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा द्वारा आयोजित जनता दरबार में अधिकारियों के साथ किए जा रहे व्यवहार को लेकर बिहार राज्य राजस्व सेवा संघ ने गंभीर आपत्ति व्यक्त की है। संघ ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है और कहा है कि सुनवाई के नाम पर अफसरों का सार्वजनिक अपमान किया जा रहा है, जो न केवल प्रशासनिक मर्यादाओं के विरुद्ध है, बल्कि संवैधानिक मूल्यों का भी उल्लंघन है।

संघ ने अपने पत्र में कहा है कि जनता दरबार में अधिकारियों के साथ जिस तरह की भाषा और व्यवहार अपनाया जा रहा है, वह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप नहीं है। आरोप लगाया गया है कि डिप्टी सीएम द्वारा अफसरों को जनता के सामने डांटा जा रहा है, धमकियां दी जा रही हैं और ‘खड़े-खड़े सस्पेंड कर देंगे’ जैसे वाक्य बोले जा रहे हैं। संघ का यह भी कहना है कि इस तरह का रवैया सुनवाई नहीं, बल्कि तमाशा बनता जा रहा है।

यह भी आरोप लगाया गया है कि जनता दरबार के दौरान अधिकारियों को सार्वजनिक मंच पर कठघरे में खड़ा किया जाता है। ‘डीएम सुन रहे हो ना’, ‘एसपी जवाब दो’, ‘अब काम लटकाया तो ठीक नहीं होगा’ जैसी भाषा का प्रयोग किया जा रहा है। इससे अधिकारियों की गरिमा को ठेस पहुंचती है और जनता के बीच प्रशासन की छवि खराब होती है। संघ का तर्क है कि यह तरीका न तो संवैधानिक है और न ही प्रशासनिक अनुशासन के दायरे में आता है।

पत्र में यह भी कहा गया है कि जनता दरबार में ‘ऑन द स्पॉट’ फैसले लेने की बात कही जा रही है। संघ का कहना है कि किसी भी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई का निर्णय एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत होना चाहिए, जिसमें जांच, जवाब और नियमों का पालन आवश्यक है। सार्वजनिक मंच पर तुरंत फैसला सुनाना कानून, संविधान और न्यायिक प्रक्रिया की भावना के विरुद्ध है।

संघ ने यह भी आरोप लगाया है कि यह तरीका प्रशासन सुधार की बजाय व्यक्तिगत लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास प्रतीत होता है। संघ का कहना है कि मंत्री द्वारा मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से अधिकारियों को भ्रष्ट, अयोग्य और नाकारा बताने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे जनता में यह संदेश जाता है कि पूरा राजस्व प्रशासन दोषी है, जबकि सच्चाई इससे कहीं अधिक जटिल है।

संघ ने अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि भूमि विवाद और भूमि सुधार की समस्याएं दशकों पुरानी हैं। स्वतंत्रता के बाद से कई कानून, योजनाएं और अभियान चलाए गए, लेकिन समस्याएं पूरी तरह समाप्त नहीं हो सकीं। इसके बावजूद, जिम्मेदारी फील्ड में काम कर रहे अधिकारियों पर ही जिम्मेदारी का बोझ डालना न न्यायसंगत है और न ही ईमानदार सोच का प्रतीक है।

संघ ने यह भी चिंता जताई है कि इस पूरे मामले में विभाग के कुछ वरीय अधिकारी भी मंत्री के रवैये का समर्थन कर रहे हैं, जिससे यह संदेश जाता है कि संस्थागत संरक्षण के बजाय व्यक्तिगत छवि और लोकप्रियता को प्राथमिकता दी जा रही है। इससे प्रशासनिक ढांचे की निष्पक्षता और मजबूती कमजोर हो सकती है।

संघ ने डिप्टी सीएम की भाषा के प्रति कड़ी आपत्ति जताई है और कहा है कि यदि इस तरह का व्यवहार बंद नहीं किया गया, तो अधिकारी चुप नहीं बैठेंगे। चेतावनी दी गई है कि यदि अधिकारियों के सम्मान और गरिमा की रक्षा नहीं की गई, तो वे सामूहिक कार्य बहिष्कार जैसे कदम उठा सकते हैं, जिसका असर राज्य की राजस्व व्यवस्था और भूमि से जुड़े कार्यों पर गंभीर पड़ सकता है।

संघ ने जनता दरबार की वर्तमान शैली को ‘जन अदालत’, ‘फील्ड ट्रायल’ और ‘ऑन द स्पॉट इंसाफ’ जैसे शब्दों से जोड़ते हुए इसे लोकतांत्रिक शासन के बजाय भीड़तंत्र की ओर संकेत बताया है। संघ ने सवाल उठाया है कि क्या इसी तरह पुलिस, न्यायाधीश, डॉक्टर या अन्य विभागों के अधिकारियों को भी सड़कों पर खड़ा कर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाएगा।

संघ ने मुख्यमंत्री से सीधे हस्तक्षेप की मांग की है। संघ का कहना है कि यदि समय रहते इस स्थिति का सही तरीके से समाधान नहीं किया गया, तो इसका प्रभाव न केवल अधिकारियों के मनोबल पर पड़ेगा, बल्कि आम जनता को मिलने वाली सेवाएं भी प्रभावित होंगी। भूमि रिकॉर्ड, दाखिल-खारिज और अन्य राजस्व संबंधी कार्य भी रुक सकते हैं।

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