
Moradabad : शिक्षा जगत की साख को हिला देने वाला सनसनीखेज खुलासा हुआ है। यहां फर्जी मार्कशीट और डिग्री बेचने का संगठित धंधा चल रहा था। लाखों रुपये ऐंठकर बेरोजगार युवाओं को झूठी डिग्रियां थमाई जा रही थीं। इस गोरखधंधे ने न केवल छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ किया है, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
हरदोई निवासी पीड़ित अमरेंद्र शर्मा ने पुलिस और एसएसपी को दिए शिकायती पत्र में चौंकाने वाला खुलासा किया है। उनका आरोप है कि चंद्र मोहन सक्सेना नामक व्यक्ति ने उनसे बीएमएस की डिग्री दिलाने के नाम पर 6 लाख रुपये, डी-फार्मा के लिए डेढ़ लाख रुपये और एएनएम डिग्री के लिए 2 लाख रुपये वसूले। कुल मिलाकर 22 लाख रुपये की ठगी की गई।
धमकी और दबाव की शिकायत
पीड़ित का कहना है कि 21 तारीख को उन्हें आरोपी ने बुलाया, जहां पहले से ही संजय गोस्वामी समेत 3-4 लोग मौजूद थे। जब उन्होंने पैसे लौटाने की मांग की तो आरोपी ने न सिर्फ गाली-गलौज की, बल्कि धमकी भी दी कि “पैसे नहीं मिलेंगे, जो करना है कर लो।”
फर्जी डिग्रियों का भंडाफोड़
सबसे बड़ा खुलासा तब हुआ जब जांच में पता चला कि आरोपी द्वारा दी गईं सभी डिग्रियां और मार्कशीट्स फर्जी थीं। आगरा स्थित अटल बिहारी पैरामेडिकल संस्थान की जांच में यह प्रमाणित हो गया कि पूरे कागज़ात नकली हैं।
अमरेंद्र शर्मा का कहना है कि करीब 40–50 बच्चों की फर्जी मार्कशीट तैयार की गई। उन्होंने बताया कि ऑनलाइन भुगतान के जरिए लाखों रुपये ऐंठे गए हैं और इस पूरे रैकेट में चंद्र मोहन सक्सेना, उनकी पत्नी और संजय गोस्वामी की संलिप्तता है।
कई जिलों तक फैला नेटवर्क
पीड़ित ने दावा किया कि फर्जी डिग्री गिरोह केवल मुरादाबाद तक सीमित नहीं है, बल्कि जौनपुर समेत कई जिलों में इनके नकली सेंटर संचालित हो रहे हैं। पहले इनके 22 सेंटर सक्रिय थे, जिनमें से अब 5 सेंटर संचालित बताए जा रहे हैं।
सरकार और विभाग में खलबली
सूत्रों के मुताबिक मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने तीन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। वहीं, समाज कल्याण विभाग में भी इस घटना के बाद खलबली मच गई है। खास बात यह है कि जिस अटल बिहारी वाजपेयी पैरामेडिकल स्कूल का नाम सामने आया, उसे 80 करोड़ की लागत से युवाओं के भविष्य सुधारने के लिए खोला गया था। लेकिन यहां छात्रों से लाखों रुपये लेकर फर्जी डिग्रियां थमाई गईं।
बेरोजगार युवाओं के करियर पर संकट
जानकारी मिली है कि इन फर्जी डिग्रियों के सहारे कई छात्र अन्य जिलों में नौकरी करने गए और वहां पकड़े भी गए। यह मामला केवल एक छात्र का नहीं, बल्कि सैकड़ों-हजारों युवाओं का है जिनका भविष्य ऐसे गिरोह अंधकार में धकेल रहे हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि शिक्षा विभाग और प्रशासन की नाक के नीचे इतने बड़े स्तर पर यह रैकेट कैसे चलता रहा? आरोपी अभी तक खुले आम क्यों घूम रहे हैं? और क्या पुलिस इस पूरे गिरोह पर अब शिकंजा कस पाएगी या यह मामला भी कागज़ों में दबकर रह जाएगा?
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