बंगाल का आतंक : पर्यावरण पर आधारित फिल्म जलकुंभी ने दिखाया संकट, पहले दिन विचारोत्तेजक फिल्मों की विविध प्रस्तुति

  • लखनऊ विश्विद्यालय में आज बहुप्रतीक्षित अंतर्राष्ट्रीय तीन दिवसीय फिल्म महोत्सव

लखनऊ । लखनऊ विश्विद्यालय में आज बहुप्रतीक्षित अंतर्राष्ट्रीय तीन दिवसीय फिल्म महोत्सव का शुभारंभ हुआ। जिसमें दर्शकों को अनूठी कथाओं, समृद्ध कहानी कहने की शैली और गहरे सामाजिक प्रभाव वाली फिल्मों की शानदार प्रस्तुति देखने को मिली। पहले दिन कुल छह फिल्मों का प्रदर्शन किया गया, जिनमें कला और संस्कृति से लेकर पर्यावरणीय मुद्दों और नैतिक मूल्यों तक विभिन्न विषयों को समाहित किया गया।

दिन की पहली फिल्म कोलकाता के प्रसिद्ध वेंट्रिलोक्विस्ट प्रबीर कुमार दास के जीवन पर आधारित एक जीवनीपरक डॉक्यूमेंट्री थी। इस लघु फिल्म ने दास और उनके प्रिय कठपुतली साथी माइकल के भावनात्मक और पेशेवर सफर को खूबसूरती से प्रस्तुत किया। डॉक्यूमेंट्री में उनके 50 वर्षों के गहरे संबंध को दर्शाया गया, जहां माइकल केवल एक कठपुतली नहीं बल्कि ज्ञान, हास्य और संगति का प्रतीक बन गया। यह यात्रा ..सत्यजीत रे.. जैसे महान फिल्म निर्माता के सहयोग से लेकर कई उल्लेखनीय कलात्मक उपलब्धियों तक फैली हुई थी।

इसके बाद, महोत्सव ने पर्यावरणीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें जलकुंभी (Water Hyacinth) पर एक डॉक्यूमेंट्री प्रस्तुत की गई। इसे बंगाल का आतंक भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी सुंदरता के बावजूद यह तेजी से जल निकायों पर फैलकर पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाती है। यह फिल्म केवल समस्या को उजागर करने तक सीमित नहीं थी, बल्कि एक दूरदर्शी व्यक्ति की कहानी भी बताई गई, जिसने इस संकट से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए और पर्यावरण पुनर्स्थापन की नई आशा जगाई।

इसके बाद, सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी फिल्म “अবল तबल पॉप्स अप आफ्टर 100 इयर्स” प्रदर्शित की गई। यह फिल्म बांग्ला की प्रसिद्ध हास्य कविता पुस्तक अबल तबल की पहली पॉप-अप संस्करण की रचना पर केंद्रित थी। कहानी छोटी बच्ची मायरा और उसके दादा के इर्द-गिर्द घूमती है, जो इस अनूठी पुस्तक को तैयार करते हैं। फिल्म ने सुकुमार रे की साहित्यिक विरासत को खूबसूरती से दर्शाया, जिससे दर्शक 1920 के दशक के कलकत्ता की दुनिया में डूब गए।

इसी कड़ी में “इनैप्पु (द कनेक्शन)” फिल्म ने ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों को एक संवेदनशील दृष्टिकोण से पेश किया। इस फिल्म में एक युवा लड़के की कहानी थी, जो अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए संघर्ष करता है। गरीबी, अलगाव और कठिन निर्णयों की जद्दोजहद से गुजरते हुए, यह फिल्म मानवीय जिजीविषा और त्याग की मार्मिक झलक प्रस्तुत करती है।

पर्यावरण से जुड़े एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे को उजागर करने वाली डॉक्यूमेंट्री ..प्लास्टिक प्रदूषण के खतरे.. पर केंद्रित थी। फिल्म ने प्लास्टिक कचरे के पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों को दिखाया और कचरे के उचित प्रबंधन की अनिवार्यता पर जोर दिया। दर्शकों को प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रभावों के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से बनाई गई इस फिल्म ने सतत पर्यावरणीय समाधान अपनाने की प्रेरणा दी।

आज के अंतिम प्रदर्शन एक ..नैतिक चिकित्सा अभ्यास पर आधारित व्याख्यान वीडियो.. था। इस फिल्म में डॉक्टर और चिकित्सा प्रतिनिधि के बीच एक आदर्श संवाद को भूमिका-निर्माण (Role Play) के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इसका उद्देश्य युवा चिकित्सा पेशेवरों को फार्मास्युटिकल प्रचार सामग्रियों का समालोचनात्मक विश्लेषण करने और चिकित्सकीय दृष्टिकोण को वैज्ञानिक आधार पर अपनाने के लिए प्रेरित करना था। यह फिल्म राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (National Medical Council) के कंपिटेंसी-बेस्ड मेडिकल एजुकेशन दिशानिर्देशों के अनुरूप चिकित्सा छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए एक उपयोगी संसाधन के रूप में प्रस्तुत की गई।

इस प्रकार, पहले दिन के विविध फिल्मों के चयन ने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया और कला, संस्कृति, पर्यावरण और नैतिक मूल्यों पर सार्थक संवाद को बढ़ावा दिया। आगामी दिनों में इस फिल्म महोत्सव में और भी प्रभावशाली सिनेमा प्रदर्शित किए जाएंगे, जो दर्शकों पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ने का वादा करते हैं।

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