बंगाल भर्ती घोटाला : ड्यूटी जॉइन किए बिना वेतन ले रहे थे अयोग्य उम्मीदवार, शिक्षा विभाग में मचा हड़कंप

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में शिक्षक और गैर-शिक्षक पदों पर हुई कथित भ्रष्टाचारपूर्ण भर्ती को लेकर एक और बड़ा खुलासा हुआ है। अब यह सामने आया है कि राज्य सरकार के स्कूलों में नियुक्त हुए कुछ ‘अयोग्य’ उम्मीदवारों ने ड्यूटी जॉइन किए बिना ही वर्षों तक वेतन प्राप्त किया।

यह मामला स्कूल सेवा आयोग (डब्ल्यूबीएसएससी) द्वारा पहले ही ‘अयोग्य’ के रूप में चिह्नित किए गए उम्मीदवारों से जुड़ा है। शिक्षा विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, इन उम्मीदवारों को ‘ग़ैर-जॉइनिंग’ की श्रेणी में रखा गया था। यानी उन्हें नियुक्ति तो दी गई, लेकिन उन्होंने सेवा ग्रहण नहीं की। इसके बावजूद, उन्होंने वर्षों तक वेतन उठाया —जिससे विभाग में गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

राज्य शिक्षा विभाग के सूत्रों ने बताया कि यह संभव है कि कई उम्मीदवारों ने वास्तव में कार्यभार ग्रहण कर लिया था, लेकिन उनका रिकॉर्ड समय पर अपडेट नहीं किया गया। एक अधिकारी ने कहा, “डब्ल्यूबीएसएससी और शिक्षा विभाग इस मामले की जांच कर रहे हैं।”

हालांकि, इन उम्मीदवारों की वास्तविक संख्या अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन विभाग के भीतर इसे लेकर भारी चिंता और असंतोष है।

राज्य की विपक्षी पार्टियों ने इस खुलासे को लेकर राज्य सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूल-नियुक्तियों के हर स्तर पर भ्रष्टाचार फैला हुआ है, और यह नया मामला उसी भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा है।

उच्चतम न्यायालय द्वारा इस महीने की शुरुआत में दिए गए आदेश के बाद, डब्ल्यूबीएसएससी की 2016 की नियुक्ति सूची से 25 हजार 753 उम्मीदवारों की नियुक्ति रद्द कर दी गई थी। इसके बाद से ‘वास्तविक’ और ‘दागी’ दोनों श्रेणियों के उम्मीदवारों द्वारा डब्ल्यूबीएसएससी कार्यालय के बाहर धरना-प्रदर्शन तेज़ हो गया है।

‘योग्य’ उम्मीदवारों की मांग है कि जल्द से जल्द ‘योग्य’ और ‘अयोग्य’ उम्मीदवारों की अलग-अलग सूची प्रकाशित की जाए। वहीं दूसरी ओर, ‘अयोग्य’ सूची में शामिल कुछ अभ्यर्थियों का दावा है कि उनके ओएमआर शीट में तकनीकी गड़बड़ी के कारण उन्हें गलत तरीके से उस सूची में डाला गया है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति देबांग्सु बसाक और न्यायमूर्ति शब्बर रशीदी के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें डब्ल्यूबीएसएससी की 2016 की पूरी पैनल को रद्द कर दिया गया था।

कोर्ट ने यह भी माना कि राज्य सरकार और डब्ल्यूबीएसएससी की विफलता के कारण ‘वास्तविक’ और ‘दागी’ उम्मीदवारों को अलग-अलग पहचान नहीं दी जा सकी, जिसके चलते पूरे पैनल को रद्द करना अनिवार्य हो गया। अब इस नए वेतन अनियमितता प्रकरण ने पूरे भर्ती घोटाले को और भी गंभीर बना दिया है।

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