
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक नए विवाद में फंसते हुए नजर आ रहे हैं। दरअसल, हाल ही में सामने आए तथाकथित ‘टोपी कांड’ ने जेडीयू की सियासत को मुश्किलों में डाल दिया है। हालही में सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में दावा किया जा रहा है कि नीतीश कुमार ने खुद टोपी पहनने से इनकार कर दिया और इसके बजाय बिहार सरकार के मंत्री मोहम्मद जमा खान को टोपी पहना दी। ये दृश्य बिहार की जातीय और धार्मिक राजनीति के बीच बड़ा असर डाल सकती है। खासकर मुस्लिम वोट बैंक को लेकर यह विवाद जेडीयू के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में सियासी नुकसान का कारण बन सकता है।

2020 में JDU का प्रदर्शन – मुस्लिम प्रत्याशियों की हार
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में JDU ने 115 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिनमें 11 मुस्लिम प्रत्याशी थे, जो कुल उम्मीदवारों का लगभग 10% थे। हालांकि, इनमें से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर पाया। यह JDU के लिए एक बड़ा झटका था, खासकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में, जहां पार्टी को पहले मुस्लिम मतदाताओं का मजबूत समर्थन मिलता था। 2015 तक JDU को मुस्लिम वोटों का खुला समर्थन प्राप्त था, लेकिन 2020 में NDA (BJP) के साथ गठबंधन के कारण मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा टूटा, जिसका असर JDU के मुस्लिम उम्मीदवारों की हार के रूप में सामने आया।
‘टोपी कांड’ का सियासी मायने

‘टोपी कांड’ का यह विवाद मदरसा बोर्ड की 100वीं वर्षगांठ के मौके पर हुआ। वायरल वीडियो में नीतीश कुमार को मोहम्मद जमा खान को टोपी पहनाते देखा गया, जबकि उन्होंने खुद इसे पहनने से इनकार कर दिया। आलोचकों का कहना है कि यह घटना नीतीश की सेक्युलर छवि को धक्का पहुंचा सकती है। बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने इसे नीतीश के समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों पर सवाल उठाने का मौका बताया। उन्होंने कहा, “पीएम मोदी के बिहार दौरे से ठीक दो दिन पहले यह घटना मुस्लिम समाज में संदेश दे रही है कि नीतीश अब बीजेपी और आरएसएस के दबाव में हैं। उनकी सेक्युलर छवि अब केवल दिखावा है।”
वहीं, बिहार लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के प्रवक्ता रंजन सिंह ने इसे निजी आस्था का मामला करार दिया। उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार 20 साल से मुख्यमंत्री हैं और हमेशा सभी धर्मों का सम्मान करते रहे हैं। टोपी पहनना या न पहनना उनका निजी फैसला हो सकता है। इसे राजनीति से जोड़ना ठीक नहीं।” रंजन ने यह भी याद दिलाया कि पीएम मोदी ने भी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए टोपी पहनने से इनकार किया था, लेकिन इसका उनके चुनावी प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ा।
मुस्लिम वोट बैंक….JDU के लिए चुनौती
बिहार में मुस्लिम वोट बैंक किसी भी पार्टी की जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाता है। 2020 में JDU के मुस्लिम प्रत्याशियों की हार ने यह साफ कर दिया था कि मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा पार्टी से कम हो रहा है। NDA के साथ गठबंधन और बीजेपी के प्रभाव को इसका मुख्य कारण माना गया। अब ‘टोपी कांड’ ने विपक्षी दलों, खासकर राजद और कांग्रेस, को एक नया हथियार दे दिया है। ये दल इसे मुस्लिम समुदाय की अस्मिता और धार्मिक भावनाओं से जोड़कर प्रचारित कर सकते हैं, जिससे JDU का मुस्लिम वोट बैंक और कमजोर हो सकता है।
नीतीश की सेक्युलर छवि पर सवाल
नीतीश कुमार को बिहार में हमेशा एक संतुलित नेता के रूप में देखा गया, जो सभी समुदायों को साथ लेकर चलता है। लेकिन यह घटना उनकी इस छवि को नुकसान पहुंचा सकती है। अगर विपक्ष इस कांड को नीतीश के बीजेपी के दबाव में झुकने के प्रतीक के रूप में पेश करता है, तो उनकी सेक्युलर और समाजवादी छवि को गहरा झटका लग सकता है। बिहार की राजनीति में प्रतीकवाद का असर गहरा होता है, और ‘टोपी कांड’ जैसे मुद्दे मतदाताओं की भावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं।
2025 के विधानसभा चुनाव में JDU के लिए यह विवाद एक बड़ी चुनौती बन सकता है। विपक्षी महागठबंधन इसे नीतीश की सेक्युलर छवि को कमजोर करने और मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करने का मौका मानेगा। दूसरी ओर, JDU को अपनी रणनीति में सावधानी बरतनी होगी ताकि मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा दोबारा जीता जा सके। नीतीश को यह साबित करना होगा कि वे अभी भी सभी समुदायों के लिए भरोसेमंद नेता हैं।
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