
बिहार विधानसभा चुनाव में अब केवल डेढ़ से दो महीने का समय शेष है। चुनावी अधिसूचना जारी होने से पहले ही राज्य की राजनीति गरमा गई है। एसआईआर और “मां का अपमान” जैसे मुद्दों पर राजग और महागठबंधन एक-दूसरे पर हमलावर हो गए हैं। हालांकि सबसे बड़ी चुनौती दोनों गठबंधनों के लिए सीट बंटवारे की है।
महागठबंधन की अगुवाई कर रहा राजद अपने सहयोगियों की “सम्मानजनक हिस्सेदारी” की मांग पूरी करने में उलझा है। कांग्रेस पिछली बार की तरह 70 सीटों से कम पर मानने को तैयार नहीं है। तीन वाम दलों ने पिछली बार की 29 सीटों के बजाय इस बार 40 सीटों की मांग रखी है। विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) 60 सीटों के साथ उपमुख्यमंत्री पद की भी दावेदार है। इसके अलावा राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी 10 और झामुमो 5 सीटें मांग रहा है। अगर राजद सभी की मांग मान ले, तो उसके हिस्से में केवल 58 सीटें ही बचेंगी। यही नहीं, कांग्रेस और राजद दोनों चाहते हैं कि अन्य सहयोगी दलों के लिए समझौता दूसरा पक्ष करे।
इस बार राजद के लिए मुश्किलें और भी बढ़ी हैं क्योंकि पहले जहां गठबंधन में पांच दल थे, अब आठ हो गए हैं। राजद नेतृत्व चाहता है कि कांग्रेस अपनी मांग घटाकर 40 सीटों पर चुनाव लड़े। इससे बची 30 सीटें वीआईपी, झामुमो और राष्ट्रीय एलजेपी को दी जा सकें। लोकसभा चुनाव में वीआईपी को तीन सीटें मिली थीं, इसलिए उसका 20 सीटों पर दावा स्वाभाविक माना जा रहा है।
राजग में भी हालात आसान नहीं हैं। जदयू सबसे ज्यादा सीटें पाकर गठबंधन में “बड़े भाई” की भूमिका निभाना चाहता है। भाजपा और जदयू के बीच 200 से 205 सीटों पर सहमति बनी है। लोजपा (आर) के लिए 20-25 सीटें छोड़ी गई हैं, लेकिन चिराग पासवान इससे संतुष्ट नहीं हैं। वहीं, हम और आरएलएम भी 12-12 सीटों की मांग कर रहे हैं।