सावधान ! नमक और चीनी में भी माइक्रोप्लास्टिक

  • विश्व पर्यावरण दिवस आज, डॉ. सूर्यकान्त ने ‘सेव द प्लेनेट’ लेख में प्लास्टिक को लेकर चेताया

लखनऊ। हमारी गंदी हरकतों से माइक्रोप्लास्टिक वातावरण में इस कदर घुल मिले गए हैं कि ये खानपान से सीधे हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं। हवा, भोजन, पानी सब दूषित हो रहे हैं। एक शोध के अनुसार समुद्री नमक, रॉक साल्ट, टेबल साल्ट, स्थानीय कच्चे नमक सहित 10 प्रकार के नमक और ऑनलाइन तथा स्थानीय बाजारों से खरीदी गई पांच प्रकार की चीनी की जांच की गई तो निष्कर्ष सामने आया कि नमक और चीनी के सभी नमूनों में अलग-अलग तरह के माइक्रोप्लास्टिक्स थे। माइक्रोप्लास्टिक्स का आकार 0.1 मिमी से 0.5 मिमी था। एक किलो नमक में माइक्रोप्लास्टिक्स के लगभग 90 टुकड़े मिले हैं और एक किलो चीनी के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा 11.85 से 68.25 टुकड़े पाई गई।
राष्ट्रीय अध्यक्ष, ऑर्गनाइजेशन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ एनवायरनमेंट एंड नेचर (ओशन) और किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्य कान्त बताते हैं कि प्लास्टिक जीवन का अभिन्न अंग बन गया है, लेकिन इससे होने वाला प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या है। इससे न केवल पर्यावरण प्रभावित होता है, बल्कि स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
डॉ. सूर्यकान्त के इंडियन जर्नल ऑफ़ इम्यूनोलॉजी एंड रेस्पिरेटरी मेडिसिन में प्रकाशित लेख ‘सेव द प्लेनेट’ के अनुसार – प्लास्टिक प्राकृतिक रूप से संशोधित प्राकृतिक चीजों जैसे प्राकृतिक रबर, नाइट्रोसेल्यूलोज, कोलेजन, गेलाईट आदि से विकसित हुआ है।


प्लास्टिक तब तक जहरीली गैस और पदार्थ रिलीज करता रहता है, जब तक यह विघटित नहीं हो जाता है। जिसके कारण भूमि की उर्वरक क्षमता खत्म हो सकती है और यदि फसल पैदा भी होती है, तो उसमें विषैले पदार्थ होते हैं जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। साल 2040 तक जलीय पारिस्थितिक तंत्र में 23-37 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा होने का अनुमान है। साल 1950 से 2017 तक लगभग 9.2 बिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन किया गया है।
प्लास्टिक अपने उत्पादन से लेकर विघटन तक, अपने जीवन चक्र के हर चरण में लोगों और पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। मनुष्य सांस लेने, निगलने और सीधे त्वचा के संपर्क के माध्यम से कई प्रकार के विषैले रसायनों और माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आते हैं। प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के टूटने या प्लास्टिक के उत्पादन के दौरान माइक्रोप्लास्टिक बनते हैं, जिनका आकार पांच मिमी से कम होता है।
डॉ. सूर्य कान्त के अनुसार – प्लास्टिक से हार्मोनल असंतुलन, कैंसर और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। बच्चों पर इसका गंभीर असर देखने को मिलता है। समय से पहले बच्चे का जन्म, मृत बच्चे का जन्म, जन्मजात प्रजनन अंगों में दोष, तंत्रिका संबंधी कमजोरी, फेफड़ों के विकास में बाधा और बचपन में कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।
वो बताते हैं कि हम अपने जीवन में कुछ आदतें सुधार कर इतनी सुंदर धरती को बचा सकते हैं। पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस है। इस साल इस दिवस की थीम है – ‘एंडिंग प्लास्टिक पॉल्यूशन’ अर्थात प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करना। इस थीम का उद्देश्य है – प्लास्टिक के दुष्प्रभाव के बारे में लोगों को जागरूक करना। यही वो समय है हम लोगों को जागरूक कर अपनी पृथ्वी को बचाएं और गंभीर बीमारियों से भी लोगों को बचाएं। धरती हमारी माँ है और हम इसकी संतान है। प्लास्टिक का उपयोग बंद करें। घर से बाजार जाते समय कपड़े का झोला लेकर जाएं। प्लास्टिक के बजाय कपड़े, पेपर से बने उत्पादों आदि का उपयोग करें। प्लास्टिक को न कहें और विकल्पों को बढ़ावा दें।
लेख में डॉ. सूर्य कान्त ने बताया है कि पर्यावरण संरक्षण के लिये प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने साल 2022 में पर्यावरण के लिए जीवन अर्थात लाइफ फार एनवायरनमेंट (लाइफ) आन्दोलन शुरू किया। राज्य सरकार ने एक जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें