
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने जूनियर स्तर पर उम्र में गड़बड़ी को रोकने के लिए आयु सत्यापन कार्यक्रम (AVP) में अहम बदलाव किए हैं। नए नियमों के तहत अब जिन खिलाड़ियों की हड्डी की उम्र (बोन एज) तय सीमा से अधिक पाई जाएगी—लड़कों के लिए 16 वर्ष और लड़कियों के लिए 15 वर्ष—उन्हें एक बार और बोन टेस्ट कराने का मौका मिलेगा।
अब तक क्या था नियम?
बीसीसीआई 14 से 16 साल के लड़कों और 12 से 15 साल की लड़कियों का हड्डी परीक्षण कराता रहा है।
- यदि किसी खिलाड़ी की हड्डी की उम्र 14.8 साल पाई जाती है, तो उसमें एक साल जोड़कर गणितीय उम्र 15.8 साल मानी जाती है।
- अगर ये उम्र 16 साल से कम होती है, तो खिलाड़ी को अंडर-16 वर्ग में खेलने की अनुमति मिलती है।
- अगले साल वह खिलाड़ी उस वर्ग के लिए स्वतः अयोग्य हो जाता है, भले ही उसका जन्म प्रमाण पत्र उम्र कम दिखाता हो।
अब क्या बदला?
नई नीति के अनुसार, अगर कोई खिलाड़ी अपने जन्म प्रमाण पत्र के हिसाब से 16 साल से कम है, लेकिन हड्डी की उम्र ज्यादा पाई गई है, तो उसे दूसरी बार बोन टेस्ट कराने की इजाजत होगी।
- अगर दोबारा टेस्ट में उसकी बोन एज 16 साल से कम निकलती है, तो उसे अंडर-16 में खेलने की अनुमति मिल जाएगी।
- लड़कियों के लिए यह नियम 15 साल की उम्र सीमा के साथ लागू होगा।
क्यों हुआ बदलाव?
बीसीसीआई ने यह निर्णय हड्डी परीक्षण की वैज्ञानिक सीमाओं को मान्यता देते हुए लिया है। एक्स-रे आधारित यह परीक्षण हर बार पूरी तरह सटीक नहीं हो सकता। ऐसे में दूसरी बार टेस्ट कराना एक न्यायपूर्ण विकल्प माना जा रहा है।
फर्जीवाड़ा रोकने के सख्त उपाय
हाल के वर्षों में सामने आया कि कुछ माता-पिता छोटे बच्चों को असली खिलाड़ी बताकर टेस्ट कराने भेज देते थे ताकि उम्र कम दर्शाई जा सके।
- अब बीसीसीआई प्रतिनिधि आधार कार्ड जैसे फोटोयुक्त दस्तावेज की सख्ती से जांच करते हैं।
- हर राज्य संघ को साल में एक निश्चित विंडो दी जाती है जिसमें ये परीक्षण होते हैं।
- औसतन एक राज्य में 40–50 लड़के और 20–25 लड़कियाँ परीक्षण में भाग लेती हैं।