Basti : वाल्टरगंज ‘रिश्वतकांड’- दीवान जेल की राह पर, ‘दागी’ एसएचओ को बचाने में चली रातभर कसरत

Basti : वाल्टरगंज थाने में हुआ रिश्वतकांड यूपी पुलिस की कार्यशैली पर एक गहरा धब्बा है। यहां दीवान की गिरफ्तारी और एसएचओ का फरार होना केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि विभाग के भीतर जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार के सिंडिकेट का आईना है।

प्रदेश की योगी सरकार एक ओर ‘जीरो टॉलरेंस’ का नारा बुलंद कर रही है, तो वहीं बस्ती पुलिस के कुछ जिम्मेदार अधिकारी इस दावे की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वाल्टरगंज थाने में एंटी करप्शन टीम की छापेमारी ने यह साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार अब थानों की दहलीज पार कर साहब के ‘बेडरूम’ तक जा पहुंचा है। ​इस मामले का सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि रिश्वत की रकम कहीं बाहर नहीं, बल्कि एसएचओ के सरकारी आवास पर ली गई। 15 हजार रुपये की यह घूस कोई इत्तेफाक नहीं, बल्कि एक तयशुदा ‘मंथली’ का हिस्सा थी। मिट्टी लदी गाड़ियों को पास कराने के नाम पर प्रति गाड़ी 5000 रुपये की डिमांड करना बताता है कि खाकी अब रक्षक नहीं, बल्कि सड़कों पर ‘वसूली एजेंट’ की भूमिका में आ गई है।

एंटी करप्शन टीम ने गुरूवार की शाम तीन बजे दीवान को रंगेहाथ पकड़ा, लेकिन एफआईआर दर्ज होने में रात के 11:49 बज गए। यह 8 घंटे का विलंब बस्ती पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े करता है। आखिर वह कौन सा ‘दबाव’ था जो देर रात तक कोतवाली में बैठकर एसएचओ को ‘पाक-साफ’ बचाने की जुगत भिड़ा रही थी। जब साक्ष्य इतने पुख्ता थे कि एंटी करप्शन टीम ने अपनी रिपोर्ट में एसएचओ का स्पष्ट नाम लिखा, तब जाकर मजबूरी में मुकदमा दर्ज किया गया। वाल्टरगंज की खाकी का ‘मंथली’ पर्दाफाश होते ही शहर कोतवाली में कई थानों के एफआईआर के जानकार एसओ और एसएचओ अपनी पूरी ‘बुद्धि’ आरोपी को बचाने में लगाते रहे। लेकिन ​एंटी करप्शन टीम की ‘फर्द’ सोशल मीडिया में वायरल होने की वजह से सबकी बुद्धि ‘हरी’ हो गई। लिहाजा थकहार कर रात 11:49 पर सबने हथियार डालते हुए भरे मन से एफआईआर दर्ज किया।

गुरूवार को ​जैसे ही पाप का घड़ा फूटा, आरोपी एसएचओ ‘मेडिकल लीव’ का बहाना बनाकर चंपत हो गए। चर्चा है कि आरोपी एचएचओ सरकारी काम से खुद को इलाहाबाद रवानगी दिखाया और वापसी में कप्तानगंज सीएचसी में ‘बैक पेन’ दिखाकर दो दिन का मेडिकल लीव बनवा लिया। एक थाना प्रभारी का कानून से इस तरह भागना उसकी संलिप्तता पर मुहर लगाता है। सवाल यह है कि क्या पुलिस विभाग अपने ही दागी अफसर को गिरफ्तार करने की हिम्मत दिखाएगा या ‘वांछित’ का काला ठप्पा लगाकर फाइल ठंडे बस्ते में डाल देगा।

गौरतलब है कि ​मिट्टी का कारोबार करने वाले मनीष चौधरी की आपबीती सुनकर यह स्पष्ट है कि थानों में अब कानून नहीं, बल्कि ‘रेट लिस्ट’ चलती है। गरीब और मध्यम वर्ग के कारोबारी पुलिस की इस अवैध उगाही से त्रस्त हैं। यदि एक पीड़ित को एंटी करप्शन के पास जाना पड़ रहा है, तो इसका सीधा मतलब है कि जिले के आला अधिकारियों का अपने मातहतों पर कोई नियंत्रण नहीं है। वाल्टरगंज ही नहीं जिले के कई थानों में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह खुलासा पुलिस विभाग की ‘हफ्ता संस्कृति’ का हिस्सा है जिसे सिस्टम ने अपनी मूक सहमति दे रखी है।

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