
- मेडिकल कॉलेज बस्ती का गायनी विभाग चरमराया, क्षमता से अधिक मरीज भर्ती
- 60 बेड की क्षमता के सापेक्ष 85 प्रसूताएं भर्ती
- गलियारे और बरामदों के फर्श पर सो रहे तीमारी, यहां पैदल चलना मुहा
Basti : मेडिकल कॉलेज के गायनी विभाग की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। ओपीडी से लेकर लेबर रूम और ऑपरेशन थियेटर तक मरीजों की भीड़ बेकाबू हो गई है। बुधवार को 60 बेड की क्षमता वाले विभाग में 85 प्रसूताएं भर्ती थीं। यह स्थिति पिछले पखवाड़े से बनी हुई है। मरीजों की भीड़ के कारण कई गर्भवतियां भर्ती होने के लिए बेड खाली होने का इंतजार करती दिख रही हैं।
मेडिकल प्रशासन ने समस्या को देखते हुए बरामदों और गलियारों में 25 अतिरिक्त बेड लगाए हैं। इसके बावजूद स्थिति सामान्य नहीं हो पा रही है। रोजाना 200 से अधिक गर्भवतियां ओपीडी में आ रही हैं। चिकित्सकों पर दबाव इतना अधिक है कि कई बार उन्हें केवल पर्चे पर दवा लिखकर औपचारिकता पूरी करनी पड़ रही है। गायनी विभाग में कुल 9 गायनोलॉजिस्ट तैनात हैं। इनमें से पांच ओपीडी देखते हैं जबकि चार डॉक्टर ऑपरेशन थियेटर और लेबर रूम की जिम्मेदारी संभालते हैं। विभाग में रोजाना औसतन 15 से 20 सीजर डिलेवरी और 7 से 10 सामान्य प्रसव हो रहे हैं। चौबीसों घंटे ऑपरेशन थियेटर व्यस्त रहता है।
देखभाल में आ रही कमी
- वार्ड फुल होने से कई प्रसूताओं को खुले बरामदे में भर्ती किया जा रहा है। न तो मरीजों की ड्रेसिंग समय पर हो पा रही है और न ही उचित देखभाल। परिणामस्वरूप कई प्रसूताओं का टांका पकने की शिकायत सामने आई है। मरीजों के परिजनों का कहना है कि अस्पताल में गुणवत्तापूर्ण एंटीबॉयोटिक इंजेक्शन न होने के कारण उन्हें बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है।
तीमारदारों की दुश्वारी
- मरीजों की संख्या बढ़ने से उनके तीमारदारों की भी हालत खराब है। सभी वार्ड फुल होने से उन्हें बरामदों और गलियारों के फर्श पर चादर-दरी बिछाकर लेटना पड़ रहा है। कुछ तीमारदार बाहर इंतजार कर रहे हैं, जिससे विभाग का माहौल बेहद अव्यवस्थित हो गया है।
टांका पकने की बढ़ रही शिकायत
- लहुरादेवा के दिनेश ने बताया कि उनकी पत्नी का सीजर डिलेवरी के बाद टांका से पस आने लगा, जिस कारण उन्हें समय पूरा होने के बावजूद डिस्चार्ज नहीं कराया गया।
- राधिका ने बताया कि उनकी बहू का टांका भी पकने लगा है। संगीता ने बताया कि उनकी ननद भी भर्ती है और ऑपरेशन के बाद टांका से पस आ रहा है।
- मरीजों के परिजन डॉक्टर को बताते हैं तो उन्हें बाहर से एंटीबॉयोटिक इंजेक्शन मंगाकर लगवाना पड़ता है।










