Basant Panchami 2025 : बसंत पंचमी का पर्व हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, जो माता सरस्वती की पूजा का विशेष दिन होता है। इस दिन को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा का महत्व अत्यधिक है, और इसके साथ ही माता सरस्वती और भगवान विष्णु के बीच हुए युद्ध की एक रोचक कथा भी जुड़ी हुई है। आइए, सत्यार्थ नायक की पुस्तक ‘महागाथा’ से इसे विस्तार से जानते हैं।
एक बार माता सरस्वती ने ब्रह्मा जी से पूछा कि, “आपके अनुसार, मैं, माता लक्ष्मी और माता पार्वती में से कौन सबसे शक्तिशाली और विशेष हैं?” इस पर ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया, “हम तीनों की तुलना क्यों करें? भृगु ने भी त्रिदेव का आकलन करने का प्रयास किया था, लेकिन उसका अंत अच्छा नहीं हुआ। तुम तीनों ही शक्ति के अलग-अलग रूप हो। प्रकृति की जननी होने के कारण, तुम मेरी पत्नी हो, जबकि मां लक्ष्मी श्री हरि की पत्नी हैं, और शक्ति के लिए माता पार्वती महादेव की पत्नी हैं। सभी तीनों ही पवित्र नारियां हैं, जिनके कारण हमें दिव्यता प्राप्त होती है।”
माता सरस्वती ने उत्तर को सही समझा, लेकिन फिर भी अपनी पसंद जानना चाही। ब्रह्मा जी ने कहा, “अगर मुझे चुनना पड़े, तो मैं माता लक्ष्मी को चुनूंगा।” यह सुनकर माता सरस्वती शांत हो गईं। अगले दिन, वह कहीं नहीं मिलीं। ब्रह्मा जी ने हर जगह उनका पता लगाने की कोशिश की, लेकिन कुछ भी नहीं मिला।
कुछ दिनों बाद, सभी देवता एक यज्ञ में सम्मिलित हो रहे थे, और वहां ब्रह्मा जी ने एक सप्तकोणीय वेदी तैयार की, जिसमें हर कोण पर सप्तऋषि विराजमान थे। यज्ञ के दौरान एक संगीत की ध्वनि गूंजने लगी, और माता सरस्वती प्रकट हुईं। उनकी वीणा की ध्वनि इतनी तीव्र थी कि सभी देवता घबराए हुए थे। माता सरस्वती की आंखें दहक रही थीं, और उनकी उंगलियों से खून बह रहा था। उन्होंने अपनी वीणा को अस्त्र में बदल दिया, और संगीत ने सभी को भयभीत कर दिया।
ब्रह्मा जी ने उन्हें शांत करने का प्रयास किया, लेकिन माता सरस्वती ने गुस्से में आकर कहा, “आपने मुझे सार्वजनिक रूप से अपमानित किया है, और अब मुझे यही दिखाना है कि मैं इस यज्ञ को नष्ट कर दूंगी।” ब्रह्मा जी ने कहा, “हम इस यज्ञ से ब्रह्मांड की भलाई चाहते हैं, और मुझे विश्वास है कि आप भी यही चाहती थीं।”
माता सरस्वती ने फिर भगवान विष्णु को चुनौती दी, और दोनों के बीच युद्ध शुरू हो गया। विष्णु जी ने तुरंत अपनी माया-शक्ति से माता सरस्वती की शक्ति को निष्क्रिय किया। इस युद्ध ने पूरे ब्रह्मांड को हिला दिया। अंत में, विष्णु जी ने माता सरस्वती को बताया कि उनके अशुद्ध राग और गुस्से ने सृष्टि के माधुर्य को नष्ट कर दिया है, और वह इस यज्ञ को संकट में डालने का प्रयास नहीं कर सकते।
यह कथा दर्शाती है कि कभी-कभी, गुस्से और अहंकार के कारण शक्तिशाली देवता भी अपने रास्ते से भटक सकते हैं, लेकिन अंततः संतुलन और समझ का महत्व अधिक होता है।