
- ट्रांसफॉर्मर फेल, लेकिन सिस्टम पहले से ही फेल था,
- प्रशासन को ‘सूचना’ भेज दी गई, लेकिन समाधान नहीं,
- सिर्फ ट्रांसफॉर्मर ही नहीं, जवाबदेही भी जल चुकी है
भास्कर ब्यूरो
बरेली। ‘यह सिर्फ बिजली नहीं, व्यवस्था का वॉल्टेज डाउन है।’ इस कड़वे सच से नवाबगंज, हाफिजगंज, क्योलड़िया, रिठौरा और चुनुआ जैसे इलाके बुरी तरह जूझ रहे हैं। 22 अप्रैल की दोपहर 3 बजे, जैसे ही नवाबगंज स्थित 132/33 केवी उपकेंद्र का दूसरा 40 एमवीए पावर ट्रांसफॉर्मर भी फेल हुआ, छह विद्युत उपकेंद्रों की बिजली व्यवस्था एक साथ ध्वस्त हो गई। लेकिन सवाल यह नहीं कि ट्रांसफॉर्मर फेल हुआ, असली सवाल यह है कि जब 9 अप्रैल को पहला ट्रांसफॉर्मर फेल हुआ था, तब विभाग ने 13 दिनों तक क्या किया?
9 अप्रैल को पहला ट्रांसफॉर्मर फटने के बाद, विभाग ने सिर्फ एक 40 एमवीए ट्रांसफॉर्मर के बल पर 6 बिजली उपकेंद्रों को “काट-काट कर” बिजली देने की नीति अपनाई। नवाबगंज तहसील, हाफिजगंज, नवाबगंज ग्रामीण, रिठौरा, क्योलड़िया और चुनुआ जैसे इलाकों में बारी-बारी से बिजली सप्लाई की जा रही थी- वह भी सिर्फ ‘मैनेजमेंट’ के नाम पर, न कि किसी सुनियोजित व्यवस्था के तहत। अब जब दूसरा ट्रांसफॉर्मर भी ठप हो गया है, तो पूरा नवाबगंज और उससे जुड़े छह विद्युत उपकेंद्रों का क्षेत्र पांच दिनों तक अंधेरे में डूबा रहेगा, क्योंकि विभाग कह रहा है कि लखनऊ से नया ट्रांसफॉर्मर 27 अप्रैल तक ही ऊर्जीकृत हो पाएगा।
शर्मनाक यह है कि विभाग ने पहले ट्रांसफॉर्मर फेल होने के बाद वैकल्पिक व्यवस्था के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए। यह जानते हुए भी कि सभी छह उपकेंद्र एक ही उप स्रोत पर निर्भर हैं, बिजली विभाग ने कोई बैकअप प्लान तैयार नहीं किया। यह घोर लापरवाही है। क्या विभाग का यह रवैया दर्शाता है कि जनता को पांच दिन तक अंधेरे में रखना उनके लिए मामूली बात है? क्या यही ‘स्मार्ट ग्रिड’ का सपना दिखाकर वोट मांगने वाले जनप्रतिनिधियों का वास्तविक चेहरा है?
यह एक तकनीकी गड़बड़ी नहीं, बल्कि नीति और नीयत की गड़बड़ी है। एक नहीं, दो-दो पावर ट्रांसफॉर्मर एक ही महीने में फेल हो जाना यह दर्शाता है कि या तो उपकरण घटिया गुणवत्ता के हैं या फिर रख-रखाव में भ्रष्टाचार छिपा है। क्या किसी ने इन उपकरणों की गुणवत्ता की जांच की? क्या ठेकेदार और आपूर्तिकर्ताओं से जवाबदेही तय की गई? या फिर ट्रांसफॉर्मर भेजने वाला ठेकेदार किसी ‘ऊंची पहुंच’ का हिस्सा है, जिसकी वजह से सब चुप हैं?
बिजली विभाग ने बड़े गर्व से लिखा है कि माननीय सांसद, विधायक, जिलाधिकारी, उपजिलाधिकारी, क्षेत्राधिकारी और पत्रकारों को “सूचित कर दिया गया है।” सवाल है, सूचना देकर विभाग ने कौन सा तीर मार लिया? क्या सूचनाओं से बिजली आ जाएगी? क्या अखबारों में छपवाने से रिठौरा के किसानों की पंपिंग चालू हो जाएगी? क्या क्योलड़िया की स्कूल की पढ़ाई पटरी पर लौट आएगी? छह उपकेंद्रों को एक ही स्रोत से जोड़ देना और कोई वैकल्पिक स्रोत न रखना, यह बिजली विभाग की सबसे बड़ी रणनीतिक चूक है। यह मान लिया गया कि कभी कुछ फेल नहीं होगा। और जब हुआ, तो विभाग के पास सिर्फ “लखनऊ से ट्रांसफॉर्मर मंगवाया जा रहा है” जैसी घिसी-पिटी सफाई है।
क्या विभाग के अफसर यह जवाब दे सकते हैं कि इतने बड़े नेटवर्क के लिए दूसरा या तीसरा विकल्प पहले से क्यों नहीं रखा गया? क्या नवाबगंज की जनता सेकेंड क्लास नागरिक है, जो पांच दिन तक अंधेरे में रह सकती है? अब बात करें उस असर की, जो इस बिजली संकट से पड़ा है। अस्पतालों की बिजली कट गई है, छोटे व्यापारी बर्बाद हैं, इनवर्टर और सोलर पैनल जवाब दे चुके हैं। किसान अपनी फसलों को पानी नहीं दे पा रहे। घरों में पीने का पानी नहीं, बच्चों की पढ़ाई ठप और बुजुर्गों की दवा-रेफ्रिजरेशन तक बंद हो गई है।