बरेली : अस्पताल में मौत का सच दबाया जा रहा ! परिजनों का आरोप लापरवाही से गई जान

  • घायल मरीज को समय पर इलाज न देकर टालमटोल करता रहा स्टाफ
  • मौत के बाद परिजनों का गुस्सा फूटा तो बना दिया आरोपित
  • अस्पताल की लापरवाही पर पर्दा डालने की साजिश
  • सीसीटीवी की आड़ में पीड़ित परिवार को बनाया जा रहा निशाना
  • लापरवाही की शुरुआत, मौत का जिम्मेदार कौन ?

बरेली। शहर का नामी कहे जाने वाला भास्कर अस्पताल एक बार फिर सवालों के घेरे में है। बुधवार की सुबह अस्पताल में एक सड़क दुर्घटना में घायल मरीज की मौत के बाद जो कुछ हुआ, उसने निजी अस्पतालों के अमानवीय चेहरे को फिर उजागर कर दिया। परिजनों का साफ आरोप है कि अस्पताल प्रशासन ने न केवल मरीज के इलाज में देरी की, बल्कि उसकी हालत गंभीर होने के बावजूद पर्याप्त उपचार देने के बजाय जल्दबाजी में रेफर कर जान बचाने की जिम्मेदारी से हाथ खींच लिया।

मीरगंज थाना क्षेत्र के गांव मुलडिया निवासी रिजवान को सड़क हादसे में गंभीर चोटें आई थीं। परिजन उसे भास्कर अस्पताल लेकर आए, यह मानकर कि शहर का यह नामी संस्थान बेहतर इलाज देगा। लेकिन अस्पताल में मौजूद स्टाफ ने न तो गंभीरता दिखाई, न ही त्वरित चिकित्सा व्यवस्था की।

परिजनों का आरोप है कि लगभग आधे घंटे तक डॉक्टरों ने मरीज को जांच के नाम पर स्ट्रेचर पर ही रखा रखा। ना ICU में शिफ्ट किया गया, न ही जीवनरक्षक प्रणाली से जोड़ा गया। जब मरीज की हालत और बिगड़ने लगी, तब जाकर आनन-फानन में राममूर्ति मेडिकल कॉलेज रेफर करने का बहाना बनाया गया। यह सवाल उठता है—क्या यह रेफर एक जिम्मेदारी से भागने की कोशिश थी ?

परिजन रिजवान को हायर सेंटर लेकर निकले, लेकिन बीच रास्ते में उसने दम तोड़ दिया। गुस्से और आक्रोश में डूबे परिजन जब शव लेकर भास्कर अस्पताल लौटे तो उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें कोई जवाब मिलेगा, कोई माफी, कोई मानवीयता दिखाई जाएगी। लेकिन इसके उलट, अस्पताल प्रशासन ने उन्हें चुप कराने और मामले को दबाने की कोशिश की।

जैसे ही परिजन जवाब मांगने लगे, अस्पताल प्रशासन ने पूरा घटनाक्रम अपने पक्ष में मोड़ने दिया। सीसीटीवी कैमरे में कैद फुटेज की आड़ लेकर आरोपियों की सूची बना दी गई, और वही परिवार जो अपने बेटे की मौत का शोक मना रहा था, आज कानून के घेरे में खड़ा कर दिया गया।

परिजन राशिद जान, शानू खान, ईशा खान और मोबीन खान पर अस्पताल प्रबंधक विनोद कुमार ने हमला करने और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया है। लेकिन सवाल ये है—क्या कोई पिता, भाई या दोस्त जो अभी अपने प्रियजन को खो चुका हो, वह जानबूझकर किसी पर हमला करेगा?
वह खड़े कुछ लोगों का कहना है कि अस्पताल प्रशासन ने ही पहले तीखे शब्दों में बात की, संवेदनशील माहौल को और उकसाया। एक ओर मरीज की जान चली गई, दूसरी ओर अपमान और उपेक्षा के घाव पर नमक छिड़का गया। जैसे कोई संवेदना बची ही नहीं थी।

भास्कर अस्पताल प्रबंधन ने पूरे मामले को पलटते हुए खुद को निर्दोष और “कानून के रक्षक” के रूप में पेश करने की कोशिश की है। अस्पताल प्रबंधक विनोद कुमार ने इज्जतनगर थाने में तहरीर देकर चार लोगों के खिलाफ FIR की मांग की है। जबकि अस्पताल प्रशासन का कहना है कि उन्होंने “समय पर सही सलाह दी थी” और मरीज की हालत गंभीर होने के चलते रेफर किया।

लेकिन ये बात किसी के गले नहीं उतर रही। अगर मरीज की हालत इतनी ही गंभीर थी तो क्या उसे ICU में भर्ती नहीं किया जाना चाहिए था? क्या रेफर करने से पहले CPR और ऑक्सीजन सपोर्ट जैसी बुनियादी चिकित्सकीय सुविधाएं नहीं दी जानी चाहिए थीं?

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