
भास्कर ब्यूरो
बरेली। थाना बारादरी क्षेत्र जोगी नवादा मोहल्ले में 32 वर्षीय युवक इमरान की मौत ने पूरे मोहल्ले को झकझोर कर रख दिया। लेकिन उससे भी बड़ा झटका तब लगा, जब यह सामने आया कि उसकी लाश पांच दिनों से उसी के घर में फंदे पर लटकी हुई थी और किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। आखिर ये लापरवाही किसकी थी? मोहल्ले की? पुलिस की? समाज की? या पूरे सिस्टम की?यह कोई आम आत्महत्या का मामला नहीं है, बल्कि उस सामाजिक और प्रशासनिक संवेदनहीनता की मिसाल है जिसमें इंसान की मौत भी तभी नोटिस में आती है जब बदबू उठने लगे। इमरान पिछले कुछ दिनों से अपने घर में अकेला रह रहा था। जब पड़ोसियों को उसके घर से दुर्गंध आने लगी तो शक हुआ। खिड़की से झांकने पर उन्हें जो मंजर दिखा, उसने सबके होश उड़ा दिए। इमरान की लाश पंखे की कुंडी से लटकी हुई थी और शव काफी हद तक सड़ चुका था।
घटना की सूचना पुलिस को दी गई। थाना बारादरी की टीम मौके पर पहुंची और दरवाजा तोड़कर अंदर दाखिल हुई। अंदर का नजारा दिल दहला देने वाला था। कमरे में भारी बदबू थी और शव की हालत देखकर यह स्पष्ट था कि मौत को कई दिन बीत चुके हैं। पुलिस की शुरुआती जांच में यह सामने आया कि युवक की मौत लगभग पांच दिन पहले हुई थी। शरीर पूरी तरह सड़ चुका था, जिससे यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं था कि शव लंबे समय से लटका हुआ था।
यह सवाल उठता है कि क्या मोहल्ले में किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया? क्या पुलिस की निगरानी व्यवस्था इतनी कमजोर हो गई है कि पांच दिन तक एक घर बंद रहता है और किसी को खबर नहीं होती?मृतक के पास से एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ है। बताया जा रहा है कि उसमें उसने आत्महत्या के कारणों का उल्लेख किया है। लेकिन पुलिस ने अब तक उस सुसाइड नोट की सामग्री को सार्वजनिक नहीं किया है।क्या उसमें किसी पर आरोप है? क्या किसी से प्रताड़ना का जिक्र है? या किसी आर्थिक या मानसिक समस्या का हवाला? पुलिस इस पर मौन है। ऐसे मामलों में पारदर्शिता जरूरी होती है, ताकि अगर कोई जिम्मेदार है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सके।
जब कोई अकेला व्यक्ति फांसी लगाकर आत्महत्या करता है और उसकी लाश पांच दिन बाद मिलती है, तो सवाल सिर्फ खुदकुशी तक सीमित नहीं रह जाते। क्या कोई मानसिक प्रताड़ना थी? क्या कोई साजिश थी? कहीं ये हत्या को आत्महत्या दिखाने की कोशिश तो नहीं?
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